हा! हा! किसान, छोड़ूँ निशान
जगन्नाथ शुक्ल…✍ (प्रयागराज) खोलो खोलो अपनी पलकें; क्यों प्रगति देख जियरा धड़के? तू उगा कर अन्न बना दाता; फिर भी ना ब्याज़ चुका पाता। जो देता हूँ ले पकड़ दाम; मत व्यर्थ प्रगति का चक्र […]
जगन्नाथ शुक्ल…✍ (प्रयागराज) खोलो खोलो अपनी पलकें; क्यों प्रगति देख जियरा धड़के? तू उगा कर अन्न बना दाता; फिर भी ना ब्याज़ चुका पाता। जो देता हूँ ले पकड़ दाम; मत व्यर्थ प्रगति का चक्र […]