आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय का संदेश
नदी अपनी स्वाभाविक गति में (‘गति से’ अशुद्ध है।) बहती रहती है। एक ढेला फेंकने के बाद कुछ क्षण तक जलान्दोलन बना रहता है, तदनन्तर वह अपनी पूर्व-गति पुन: प्राप्त कर लेती है। वह ढेले […]
नदी अपनी स्वाभाविक गति में (‘गति से’ अशुद्ध है।) बहती रहती है। एक ढेला फेंकने के बाद कुछ क्षण तक जलान्दोलन बना रहता है, तदनन्तर वह अपनी पूर्व-गति पुन: प्राप्त कर लेती है। वह ढेले […]