दरोदीवार मे अपना हम नाम ढूँढ़ते हैँ
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेख़ुदी का हश्र कैसा, हम जाम ढूँढ़ते हैँ,ज़ख़्म बूढ़ा ही रहे, हम आराम ढूँढ़ते हैँ।चेहरोँ मे छिपा चेहरा, जाने बैठा है कहाँ,रावण के घर मे, हम ‘राम’ ढूँढ़ते हैँ।नख-शिख अत्याचार […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेख़ुदी का हश्र कैसा, हम जाम ढूँढ़ते हैँ,ज़ख़्म बूढ़ा ही रहे, हम आराम ढूँढ़ते हैँ।चेहरोँ मे छिपा चेहरा, जाने बैठा है कहाँ,रावण के घर मे, हम ‘राम’ ढूँढ़ते हैँ।नख-शिख अत्याचार […]
अश्वनी पटेल– खो गया था कहीं मैं एक मोड़ पर।चल पड़ा साथ एक अजनबी जोड़ कर।कुछ दूर चलकर देखे उसके नयन।लग रहा था मिला एक बहार-ए-चमन l थी कली एक खिली कुसुम की कोई।मैं था […]
किसी के पासजब कुछ बचता नहीं।बुलाए तब कोईमैं इतना सस्ता नहीं। माना कि प्रेम चाहिएजीवन में।मगर मांगना पड़ेभीख की तरह,वो भी जँचता नहीं। माना कि जीवन मेंकुछ चीजेंहासिल नहीं हुई।फिर भीदेखकर औरों की तरक्कीमैं कभी […]
गिर रही है नये जो आसमा से तड़पती बूंदेकभी तुम इनसेमज़ा लेते होतो कभी ये डूबकरतुम्हारे अस्तित्व का मज़ा लेती है। बह रही हैं न ये नदियाँकभी खुद बहती हैअपनी ही मस्ती मेंतो कभी तूफ़ान […]
यह देश है हमारा ,हम सब वतन के रखवाले हैं। हम भारत के शूरवीर हैं ,जनचेतना कर्मवीर हैं । हम सब में अपनत्व नहीं ,हममें बंधुत्व की भावना है। हममें भेद नहीं ,बैरी की खैर […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–नफ़्रत की है आग लगी, घी डालें हर ओर।महँगाई डायन दिखे, कोई ओर न छोर।।दो–कैसा अनुरागी बना, जनता पूजे पाँव।हरियाली बीहड़ बनी, उजड़ रहा हर गाँव।।तीन–मक्कारी हर सू दिखे, दिखे […]
बड़े अहंकारी या व्यस्तज़िन्दगी के ताने-बाने हैं।ये हकीकत हैंया एकांतवास जीने कीहठी आकांक्षादायरे के परिधी में कौन हैं ?सुलझा रहे ज़िन्दगी कीमौन चेष्टा!आदि से उपजी अंत चेतनाचिंता के मूल में। आकांक्षा मिश्रा
आदित्य त्रिपाठी, सहायक अध्यापक बे०शि०प० भला कब कौन समझा है! भला कब कौन समझेगा! हृदय की वेदना तेरे सिवा अब कौन समझेगा? मैं तुझको आजमा लेता मगर क्या आजमाऊँगा, तुम्हारे प्यार से दीपित दिये दिल […]
Pawan Kashyap- तेरी इन झील सी आंखों में, जो ये नूर दिखता है । तेरे चेहरे की मदहोशी में, ये मन चूर दिखता है । कहीं जुल्फों का गिर जाना, कहीं अधरों का खुल जाना […]
● अधोलिखित वाक्यों को शुद्ध हिन्दी-भाषा मे बदलें :–(१) शिकायत के लह्जे मे उसने मुझसे कहा था।(२) उसकी चुनौती क़ाबिले रह्म नहीं है।(३) उसकी ईमानदारी ग़ौरतलब है।(४) उसकी आशंकाएँ बेवज्ह नहीं हैं।(५) उसकी तैयारियाँ मुकम्मल […]
कल (९ जनवरी) रविवार रहेगा और आप कल के ‘दैनिक जागरण’, ‘नव दुनिया’ तथा ‘नई दुनिया’ के रविवासरीय ‘झंकार’ परिशिष्ट मे ‘हिंदी हैं हम’ के अन्तर्गत ‘भाषा की पाठशाला’ मे यह अध्ययन करेंगे कि ‘देवियों […]
जीवन के पथ परयहां से वहां जा रहा हूं,समझ नहीं आताक्या कर रहा हूंऔर क्या नहीं कर रहा हूं।जीवन की डगमग करतीनाव में बैठकरज़िंदगी का सफरतय कर रहा हूं।कभी तूफानों कामंजर देख रहा हूंतो कभी […]
फिर से, तुमको जीवन कीमर्यादा के लिएउठना होगा।तुमको मानवता कीउदारता के लिएफिर सेउस ईश्वर के आगेझुकना होगा।तुम्हें असत्य कोहराने के लिएफिर सेसत्य से जुड़ना होगा।तुमको मानवता कीरक्षा के लिएफिर सेहार कर भी जीतना होगा। राजीव […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ख़ता क़ुबूल हो तो कहो! नफ़ासत लिख दूँ,पयामे इश्क़ के नाम इक वरासत लिख दूँ।न झुकाओ निगाहें चिलमन उठाकर आज,सलामे इश्क़ के नाम कहो! बग़ावत लिख दूँ।बला हो, हूर हो […]
मैं फकीर हूँ,तेरे दर का खुदामेरी आजमाइश न कर।तू पीर है मेरा,मेरे खुदामेरी जग हंसाई न कर।मैं कमजोर लाचार हूँ,मेरे खुदामेरा तू हम राही बन।मैं अनजान हूँ,तेरी इस कायनात सेमेरे खुदातू मेरा हमराज बन।मैं मुरीद […]
राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’ जीवन क्या है ?एक बहती हुई नदी है ।कंकरीले और पथरीले रास्तोंपर बहती हुई,सर्दी और गर्मी सहती हुई।जैसे नदी चलना नहीं छोड़ती है ऐसे ही ये जिन्दगी है ।अनेक रूकावटें और अनेक […]
लगभग चार वर्षों से देश के शीर्षस्थ हिन्दी-दैनिक समाचारपत्र ‘दैनिक जागरण’ समाचारपत्र में हमारी ‘भाषा की पाठशाला’ अनवरत प्रकाशित होती आ रही है। पहले यह पाठशाला ‘प्रति शनिवार’ को सप्तरंग पृष्ठ पर अपना भाषिक आकार […]
आरती जायसवालकथाकार, समीक्षक धरती और गगन कहे,सुख शांति चहुँ ओर रहेजय भारत-जय भारत।सद्भाव के बीज उगे ,उन्नति का आशा जगे,खुशियों की फ़सल लगे ,तन-मन झूमे और कहेजय भारत-जय भारत।लहराता हुआ ध्वज कहे,वीरभूमि की रज कहे,जय […]
भवानीमंडी :- अखिल भारतीय साहित्य परिषद भवानीमंडी द्वारा प्रकाशित साहित्य दर्शन ई पत्रिका का ऑनलाइन विमोचन समारोह गुरुवार को आयोजित किया गया जिसमें साहित्य दर्शन ई पत्रिका वर्ष 02,अंक 26 दोहा विशेषांक का ऑनलाइन विमोचन […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय स्याह परछाइयाँ :–वक़्त-बेवक़्त कीचुपके से दाख़िल होती हैं,मन के अँधेरे घर में।घर के भार सेलहूलुहान नीवँकब दम तोड़ देगीइसे वक़्त भी नहीं जानता;क्योंकि वह जी रहा होता है,अपना वर्तमान।वह सहला […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय गंगाजल ले घूमता, अपराधी के देश।साधु बनाता संग ला, बना-बना के वेश।।दानव-जैसा दिख रहा, देव बहुत हैं दूर।शैतानों-सा बोलता, दिखता मानो सूर।।अधिनायक बन घूमता, मन से दिखता हीन।आतंकी का रूप […]
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती (31 जुलाई, 1880 लमही, काशी) सत्य, निष्ठा और न्याय के पथ पर,मैं जीवन भर चलती जाऊँ।सादा जीवन हो उच्च विचार,मैं महापुरुषों से ऐसी सीख लाऊँ। आदर्श यथार्थ भरी […]
माँ के आँचल में जो सुकून है वो सुकून कहीं और कहाँ? सुना था मैंने, उसने सुनी जब मेरी पहली किलकारी तो आँखें उसकी नम सी हुई थीं पाकर मुझे अपनी गोद में उसने तो […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–माना तू सरकार है, सीमा अपनी जान।मत छेड़ तू हम सबको, खोयेगा तू मान।।दो–मन आन्दोलित है यहाँ, रोक सके तो रोक।ज्वाला से मत खेल तू! बोल रहा है लोक।।तीन–जन-जन जागो […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय शाम ढली दीये को जलने दो,नींद में सपनों को पलने दो।बढ़ती है प्यास तो बढ़ जायेबर्फ़ को पानी में गलने दो।दम तोड़ ले ख़्वाहिश कहीं,आदत है, नींद में चलने दो।सरे-बाज़ार […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय समय आया, कर विचार।देश की जनता है लाचार।समय-बाण से बेधो इतना,राजनीति बदले आचार।खद्दर शर्म से पानी-पानी,नहीं कहीं सुख का आधार।महँगाई से त्रस्त है जनता,सरकारें धरती पर भार।नेताओं से त्रस्त है […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–तुम बहार बनकर छाते रहो,ख़ुद को पतझर मुबारक करता हूँ।दो–ले गये सब यहाँ से रजनीगन्धा,मेरे हक़ में नागफनी छोड़ आये हैं।तीन–आँखों में आँखें डाल बातें सीखो,मुखौटा हटाओ तो कोई बात […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय यक़ीं नहीं आताख़ुद को देख रहा हूँ।अतीत, वर्तमान तथा भविष्य के गलियारों मेंढूँढ़ रहा हूँअपने न होकर भी हो जाने के साक्ष्य कोपर हर बारख़ुद को ख़ुद सेठगा हुआ पा […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय आदमीयत का यह रोना हो गया है,देश का किरदार बौना हो गया है।हासिल क्या उन्हें हस्पताल-पार्क से,‘ब्यूटी पार्लर’ कोना-कोना हो गया है।शेर-मानिन्द देश जो गरजता था,अब वह जयचन्दों का छौना […]