एक अभिव्यक्ति : आँखों में उग आये बबूल के काँटे
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय अब हथेली पर सूरज उगाता हूँ मैं, अपनी आँखों में चन्दा बसाता हूँ मैं। सीने में दहकता है आग का गोला, भूख लगने पर उसको चबाता हूँ मैं। आँखों में उग आये […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय अब हथेली पर सूरज उगाता हूँ मैं, अपनी आँखों में चन्दा बसाता हूँ मैं। सीने में दहकता है आग का गोला, भूख लगने पर उसको चबाता हूँ मैं। आँखों में उग आये […]