दौड़ गया जो कठिन डगर पर, यहाँ विजेता बना वही

December 27, 2023 0

राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’– चलने वाले ही गिरते हैं, डरने वाला चला नहीं।हार गया जो देख मुसीबत, यहाँ अपाहिज बना वही। मेहनत का फल मीठा होता, राह किन्तु थोड़ी है मुश्किल।दौड़ गया जो कठिन डगर […]

लगती हैं क्यों सबको परायी बेटियाँ

December 17, 2022 0

ग़ज़ल : बह्र- 2212 2212 2212 निहाल सिंह, झुञ्झनू, राजस्थान फूलों के जैसे मुस्कराई बेटियाँभंवरों के जैसे गुनगुनाई बेटियाँ। माँ, बेटी, अनुजा और तिय के रूप मेंरिश्ता वो सब से ही निभाई बेटियाँ। बेटे की […]

वफ़ा ने फज़ा से पूछा सनम की आँखों का नूर कैसा है

May 8, 2022 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- वफ़ा ने फज़ा से पूछा सनम की आँखों का नूर कैसा है। फज़ाने जवाब दिया कसम से जन्नत के हूर जैसा है।। महबूबा की आँखों में अश्कों का समन्दर छुपा है बैठा। […]

ग़ज़ल : गाँव सारे शहर में समाने लगे हैं

October 30, 2019 0

जगन्नाथ शुक्ल…✍ (प्रयागराज) बुझे थे दीये जगमगाने लगे हैं। गाँव सारे शहर में समाने लगे हैं।। आँगन की सिसकी समझने से पहले; दहलीज़ घर की गिराने लगे हैं। पिछले बरस ही तो पैदा हुए थे; […]

ग़ज़ल : खुद को सँभालो बुलाने से पहले

May 29, 2019 0

जगन्नाथ शुक्ल..✍(प्रयागराज)- दिल के अरमाँ दबाने से पहले। मोहब्बत छुपाया ज़माने से पहले।। कहीं लग न जाए खुद की नज़र ही; सवाली बनाया निभाने से पहले। ख़तम हो रही है, साँसों की सियाही; लिखो ख़त, […]

आँखों में सँभालता हूँ पानी, आया है प्यार शायद

April 12, 2019 0

आँखों में सँभालता हूँ पानी आया है प्यार शायद ख़ुशबू कैसी, झोंका हवा का घर में बार बार शायद । रात सी ये ज़िंदगी और ख़्वाब हम यूँ बिसार गए बार बार नींद से जागे टूट गया है ए’तिबार शायद । सिमटके सोते हैं अपने लिखे ख़तों की सेज बनाकर माज़ी की यादों से करते हैं ख़ुद को ख़बरदार शायद […]

किताब में बारहा मेरा नाम आया भी होगा

April 8, 2019 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’- मचलती तमन्नाओं ने आज़माया भी होगा बदलती रुत में ये अक्स शरमाया भी होगा । पलट के मिलेंगे अब भी रूठ जाने के बाद लड़ते रहे पर प्यार कहीं छुपाया भी […]

गज़ल- मैं औरत हूँ तो औरत हूँ

March 8, 2019 0

राघवेन्द्र कुमार “राघव”-  तपिश ज़ज़्बातों की मन में, न जाने क्यों बढ़ी जाती ? मैं औरत हूँ तो औरत हूँ, मग़र अबला कही जाती । उजाला घर मे जो करती, उजालों से ही डरती है […]

ग़ज़ल : बन्द कर चोंच को चहचहा तक न पाये

February 25, 2019 0

जगन्नाथ शुक्ल…✍(प्रयागराज) इश्क़  के   शह्र   से , हो  रिहा  तक न पाये।साँस  से साँस  को हम तहा  तक  न पाये।। इस   क़दर  अश्क़   से    है  मोहब्बत   हुई;दिल सिसकता रहा और बहा तक न पाये। बह  […]

नाम बदलना ही है, बदल दो भूख का

October 29, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल..✍ (इलाहाबाद) तीरगी का कह्र नित बढ़ा जा रहा है। रोज़ जुम्ला नया इक गढा जा रहा है।। माना हलचल नहीं है शहर में तिरे; दूर कोई बवण्डर चला जा रहा है। नाम बदलना […]

गज़ल : सिसकियों की गूँज में, हिचकियों को तरसे

October 26, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद) चौंक  उठता  हूँ  मैं अक़्सर  रातों में; ज़िस्म तड़पता  मिलता , जज़्बातों में। मन  में उठता  गुबार परेशां करता; क्या से क्या हो गये बातों -बातों में? दिल तो कचोटता होगा तुम्हारा […]

ग़ज़ल : ख़ुद का कहा करने की नहीं क़ुव्वत

October 19, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद) निरा झूठ को सच बताया न जाये; काँच से पर्वत को डराया न जाये। ख़ुद के दामन का दाग़ धोने  को ; दूसरों  के अरमां डुबोया न जाये। हठ को उम्मीद का […]

ग़ज़ल : मेरे अन्तस से……

October 17, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद) आज  दर्पण  का  जीवन  लगा दाँव में; सच दिखाया था क्यों झूठ की छाँव में? आँखों  में  दर्द था, दिल में थी शिकन ; पथ  में  काँटा  चुभा  जब  तेरे पाँव में। […]

ख़मोशी में भी उनके कितनी अदब है

October 13, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद) ख़मोशी में भी उनके कितनी अदब है, यही  तो मोहब्बत का पहला सबब है। न बहके   क़दम  जिनके  तन्हाइयों  में , तभी दिल  को  बस उन्हीं की तलब है। पलटते  हैं चिलमन […]

ग़ज़ल- यकीं का यूँ बारबां टूटना 

September 26, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ यकीं का यूँ बारबां टूटना आबो-हवा ख़राब है मरसिम निभाता रहूँगा यही मिरा जवाब है । मुनाफ़िक़ों की भीड़ में कुछ नया न मिलेगा ग़ैरतमन्दों में नाम गिना जाए यही ख़्वाब है । दफ़्तरों की खाक छानी बाज़ारों में लुटा पिटा रिवायतों में फँसा ज़िंदगी का यही हिसाब है । हार कर जुदा, जीत कर भी कोई तड़पता रहा नुमाइशी हाथों से फूट गया झूँठ का हबाब है । धड़कता है दिल सोच के हँस लेता हूँ कई बार  तब्दील हो गया शहर मुर्दों में जीना अज़ाब है । ये लहू, ये जख़्म, ये आह, फिर चीखो-मातम तू हुआ न मिरा पल भर इंसानियत सराब है । फ़िकरों की सहूलियत में आदमियत तबाह हुई  पता हुआ ‘राहत’ जहाँ का यही लुब्बे-लुबाब है ।

गजल संग्रह : हर घर में उजाला जाए 

September 17, 2018 0

जनमंचों पर अपनी साहित्य विधा के हर रंग का जादू बिखेरने वाले वरिष्ट कवि प. अरविन्द त्रिवेदी “सनन ” यूँ तो जन -जन में लोकप्रिय है उतनी ही उनकी धार्मिक एवम साहित्यिक  कर्म में रूचि […]

व्यंग्यात्मक ग़ज़ल :- पति की अभिलाषा

September 8, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’  सुन्दर डीपी लगा रखी है मोहतरमा अब तो चाय पिला दें सुबह उठते से ही देखो की है तारीफ़ अब तो चाय पिला दें । सोच रखा है छुट्टी का दिन […]

वक़्त का मिज़ाज बहुत गरम है यहाँ

August 7, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय किसी की बात पर न जाइए हुज़ूर ! किसी की बात पर न आइए हुज़ूर ! दीगर बात है कोई बात ही नहीं, भरा हो पेट तो मत खाइए हुज़ूर ! ज़ख़्मों […]

कुछ ख़्वाब बुन लेना

August 6, 2018 0

 डॉ रूपेश जैन ‘राहत’, ज्ञानबाग़ कॉलोनी, हैदराबाद कुछ ख़्वाब बुन लेना जीना आसान हो जायेगा दिल की सुनलेना मिज़ाज शादमान हो जायेगा मुद्दत लगती है दिलकश फ़साना बन जाने को हिम्मत रख वक़्त पे इश्क़ मेहरबान हो जायेगा टूटना और फिर बिखर जाना आदत है शीशे की हो मुस्तक़िल अंदाज़ ज़माना क़द्रदान हो जायेगा लर्ज़िश-ए-ख़याल में ज़र्द किस काम का है बशर जानें तो हुनर तिरा मुल्क़ निगहबान हो जायेगा मंज़िल-ए-इश्क़ में बाकीं हैं इम्तिहान और अभी ब-नामें मुहब्बत ‘राहत’ बेख़ौफ़ क़ुर्बान हो जायेगा ॥  

मैं क्या मेरी आरज़ू क्या

August 5, 2018 0

‘डॉ रूपेश जैन ‘राहत’, ज्ञानबाग़ कॉलोनी, हैदराबाद मैं क्या मिरी आरज़ू क्या लाखों टूट गए यहाँ तू क्या तिरी जुस्तजू क्या लाखों छूट गए यहाँ । चश्म-ए-हैराँ देख हाल पूँछ लेते हैं लोग मिरा क़रीबी […]

जब ज़िन्दा था

July 24, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन- जब ज़िन्दा था तो काश तुम सीख लेती जीने का क़ायदा शम-ए-तुर्बत१ की रौशनी में ग़मज़दा होने का क्या फ़ायदा । इख़्लास-ओ-मोहब्बत२ जुरूरी है मुख़्तसर३ सी ज़िंदगी में अपना बनाने को शर्त-ए-मुरव्वत४ रखने का क्या फ़ायदा । सर-ए-दीवार५ रोती […]

ग़ज़ल: उम्र भर सवालों में उलझते रहे

July 21, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’, ज्ञानबाग़ कॉलोनी, हैदराबाद उम्र भर सवालों में उलझते रहे, स्नेह के स्पर्श को तरसते रहे फिर भी सुकूँ दे जाती हैं तन्हाईयाँ आख़िर किश्तोंमें हँसते रहे । आँखों में मौजूद शर्म […]

ग़ज़ल: क्या रखा है तेरी याद में

July 20, 2018 0

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत” क्या रखा है तेरी याद में उम्र भर बे-सुकून क्यों जीते रहें उम्र भर दिल-लगाया-ओ-इश्क़-आजमाया तमन्ना क्यों सताती रहे उम्र भर हँसता हूँ ख़्याल पे कि तुम मेरे हो ग़ैरों को क्यों तड़पते रहें […]

एक अभिव्यक्ति :- रफ़्ता-रफ़्ता पा गया हूँ, मंज़िले मक़सूद

June 27, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय फ़नकार हो तो अपना फ़न दिखाओ न, महज़ बातों में मुझको अब उलझाओ न। देखो! मंज़िल आर्ज़ू अब है कर रही मेरी मुझे बढ़ने दो, अब मुझको फुसलाओ न। कुछ बातें हैं […]

एगो भोजपुरी गजल

May 24, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- जे-जे रहे दोस्त सब दुसमन होइ गइले, हमारा रहतिया में काँटा बोई गइले! बड़ा हँसी आवेला ‘बाबू’ के चल्हकिया पर, जे सुरूज के गोला के चनरमा समुझि गइले! डूबत उ खूब देखइहें […]

‘गज़ल’ : काँटों पे चलते – चलते  थक से गये हैं

March 29, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल, (इलाहाबाद) अब नवाबों के शहर से ज़वाब आना है, शायद!  हकीक़त  में  रुआब आना है। आज क्यूँ धड़कने नब्ज़ टटोल रही हैं? बदलाव आएगा या नया हिज़ाब आना है। लबों की गुज़ारिश शायद! […]

कौन यक़ीन करेगा आख़िर माझी ने ख़ुद नाव डुबोयी

March 17, 2018 0

नीलेश सिंह- जब सारी दुनिया थी सोयी जाग रहा था तब भी कोई । उलझा-उलझा है हर कोई कौन करे किसकी दिलजोई । सबकुछ खो बैठी है शायद यूँ रहती है खोयी-खोयी । कौन यक़ीन […]

ग़ज़ल- कोई इंसान, पैदाइश से बागी नहीं होता

January 25, 2018 0

दिवाकर दत्त त्रिपाठी –  वो लेकर गोद में बच्चे को मुहब्बत सिखाती है । वो माँ, जो रोजमर्रा की हमें आदत सिखाती है । ये हिंदुस्तान की तहजीब सिखाती है मुहब्बत , किसी को कब […]

गज़ल : अब कहाँ हंसना हँसाना रह गया

January 22, 2018 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद अब केवल खाना कमाना रह गया। अब कहाँ हँसना हँसाना रह गया । मुश्किलें जीवन को ,हरपल निचोड़तीं, अब तो केवल , रोना रुलाना रह गया। जो हमेशा ख़ुद को मेरा हमदर्द […]

एक ग़ज़ल : मंज़िल की जुस्तजू में भटकता रहा

January 19, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- सदा देकर भी, सदा दे न सका, मुलाक़ात हुई, पर मिल न सका। जो सौग़ात उनकी हथेली पे रखा था, देकर भी उन्हें, कुछ दे न सका। आँखों के सवाल नामुराद रह […]

आओ! इस सवाल पर अब ग़ौर करें हम..

January 18, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय सब कुछ उनका मुआफ़ हो गया, मौसम बेचारा अब साफ़ हो गया। कल तक गिलासभरी चाय पीते थे, नोटबन्दी चलते वह भी हाफ हो गया। उलफ़त का तक़ाज़ा समझ न सका, जाने-अनजाने […]

एक ग़ज़ल : सलीक़ा सीखकर भी वे ‘सीख’ न सके

January 18, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय आँखों-आँखों में, सलाम ले लिये, बन्द होठों से वे, पयाम ले लिये। लब थरथरा गये, मंज़र को देखते, नज़रें ज्यों झुकीं, वे सलाम ले लिये। होठ खुले, अधखुले, बन्द हो गये, जाने […]

रूठो, जीभर रूठो, मनाऊँगा नहीं

January 12, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय –  रूठो, जीभर रूठो, मनाऊँगा नहीं, रोओ, जीभर रोओ, हँसाऊँगा नहीं। दोनेभर जलेबी लिये दूर क्यों खड़े? पास आ जाओ, फुसलाऊँगा नहीं। ज़ख़्म बूढ़े देखते, तुम जवान हो गये, घबराओ मत, तुमसे […]

ग़ज़ल : उन्हें फ़िक्र क्यों रही ?

January 10, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय – हम रहगुज़र हैं अपने, उन्हें फ़िक्र क्यों रही, मंज़िल बनी है अपनी, उन्हें फ़िक्र क्यों रही ? घर-बार अपना छोड़कर, वीराने में आ गये, रिश्तों की दुहाई की, उन्हें फ़िक्र क्यों […]

ग़ज़ल – ऐ मेरे ज़मीर! उठ

January 8, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बरबादी लाने को बैठा, देश में शैतान है, इन्सां क्या, भगवान् भी, हरदम परेशान है। नीति कुछ, नीयत कुछ, कर्त्तव्य भी अलग, उसकी ही दुनिया में, शौकत और शान है। सबक़ सिखायें […]

ग़ज़ल- अन्धों का शहर है यहाँ जागते रहो

November 28, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद हर आँख है उनींदी सी आँकते रहो। अन्धों का शहर है यहाँ जागते रहो।। आँखों में है मुहब्बत या है नुमाईश, हर पल निगाहें उनकी भाँपते रहो। कैसा है दस्तूर और कैसा […]

एक अभिव्यक्ति : निगाहों को गुनहगार हो जाने दो

November 1, 2017 0

— डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- निगाहों को गुनहगार हो जाने दो, होठों को गुलरुख़सार* हो जाने दो। * गुलाबफूल-जैसे पतझर का ज़ख़्म अब भी ताज़ा है, कैसे कहूँ, मौसमे बहार हो जाने दो। नज़रें बात बना […]

जिन्हें रौशनी से डर था वो भी मुस्कुराने लगे

October 29, 2017 0

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद अँधेरा ग़र बढ़ा तो जुगनूं टिमटिमाने लगे, जिन्हें रौशनी से डर था वो भी मुस्कुराने लगे। एक मुक़म्मल दिया को न जलता देख कर, लोग जुगनूं की हैसियत को आजमाने लगे। फ़िक्र […]

चिन्दी-चिन्दी रातें पायीं, फाँकों में मुलाक़ातें पायीं

October 5, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- चिन्दी-चिन्दी रातें पायीं, फाँकों में मुलाक़ातें पायीं | मुरझायीं पंखुरियाँ देखीं, कही-अनकही बातें पायीं | बेमुराद आँसू छलके जब, याद पुरानी घातें आयीं | दुलराते बूढ़े ज़ख़्मों को, यादों की रातें घहरायीं […]

ग़ज़ल : कोई कट गया उनकी नज़रों से

October 2, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय कोई कट गया उनकी नज़रों से, परदा हट गया उनकी नज़रों से | झुकीं निगाहें क़हर बरपाती रहीं, मन फट गया उनकी नज़रों से | ग़ैरों में शामिल थे और अपनों में, […]

है मुक़द्दर साथ पर कौन जाने क्या लिखा है

September 6, 2017 0

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’, लखनऊ- ज़िन्दगी इक मर्ज़ है मौत ही बस इक दवा है | ज़िक़्र तेरा यूँ लगा हो रही जैसे दुआ है || मंज़िलों को छोड़कर रास्तों की ख़ाक छानी | वो […]

इश्क़ की गलियों में जाना सोच कर, रह गए कितने ही हो बदनाम से

August 26, 2017 0

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’, लखनऊ- दिल दहल जाएगा मेरे नाम से | सब बदल जाएगा मेरे काम से || दुश्मनों से जा के कह दो आज तुम | मैं नहीं डरता हूँ अब अंजाम से […]

ग़ज़ल- रूहों में पाक़ीज़गी ले आइए

August 24, 2017 0

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’ लखनऊ- उसका ग़र अहसास ख़ुद में चाहिए | रूहों में पाक़ीज़गी ले आइए || काशी क़ाबा हैं बसे दिल में कहीं | दिल को लेकर रौशनी में जाइए || लगता है […]