कल का गुरु ‘ज्ञान’ कराता था; आज का ‘Sir’ ‘उत्पाद’ (Product) बेचता है
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय आज के अधिकतर गुरु अर्थात् तथाकथित ‘Sir’ अपने गर्हित आचरण की स्थापना ‘स्वयं’ कर चुके हैं। वे स्वयं को बाज़ार मे ‘विक्रेता’ के रूप मे उतार चुके हैं और ‘ज्ञान’ को […]