मौन अस्त्र है बड़ा इसको साध लीजिए
राघवेन्द्र कुमार राघव– विश्वास से बड़ी कोई ताक़त नहीँ।सन्देह से बड़ी कोई आफ़त नहीँ।इच्छाओं से बड़ा कोई रोग नहीँ।सत्यान्वेषण से बड़ा कोई योग नहीँ।मन मुक्त न हो तो अपना ही शत्रु है।स्वाधीन मन सबसे बड़ा […]
राघवेन्द्र कुमार राघव– विश्वास से बड़ी कोई ताक़त नहीँ।सन्देह से बड़ी कोई आफ़त नहीँ।इच्छाओं से बड़ा कोई रोग नहीँ।सत्यान्वेषण से बड़ा कोई योग नहीँ।मन मुक्त न हो तो अपना ही शत्रु है।स्वाधीन मन सबसे बड़ा […]
गमनागमन (‘आवागमन’ अशुद्ध है।) ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–संग-साथ चलता रहा, वर्ष-हुआ अवसान।मन-मंथन मथता रहा, कहाँ मान-अपमान?दो–घूँघट काढ़े मौन है, अवगुण्ठन-सी देह।सहमे-सकुचे धर रहे, पाँव-पाँव अब गेह।।तीन–मलय मन्द मुसकान ले, बढ़े जोश के साथ।जन-जन […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–गहरी है संवेदना, भीतर-बाहर घाव।सिसकी सहमी दिख रही, उजड़े मन के भाव।।दो–तन का मन घायल यहाँ, बिसुर रहा है मोह।ममता जर्जर दिख रही, विकल दिख रहा छोह।।तीन–आँखेँ कहतीँ नज़र से– […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••• जब स्वयं से स्वयं कोउतार फेँकता हूँ,एक चमकती थाली मेसम्भावनाओँ के व्यंजनआँखोँ मे चमक भर देते हैँ।भूत-वर्तमान-भविष्यत् की अँगुलियोँ पर,नये-नये समीकरणबनाने और मिटाने मे लग जाता हूँ।कभी ऋण (-) को […]
Raghavendra Kumar Raghav– Easiest way to achieve excellence is simplicityWhere any person is praised for his humility. We get peaks of progress only by polite nature.Everyone’s desires vanish after reaching there. Be humble and service-minded […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–हिरणी कनखी ताकती, चण्ट व्याध की ओर।सोच डूबता प्रश्न मे, होगी कब अब भोर।। दो–चंचरीक-चितवन चतुर, डोल रहा हर छोर।चपल चंचरी लख रही, प्रणय-सूत्र की ओर।। तीन–धर्मयुद्ध अब है कहाँ, […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• साँप!तुम इतने भी असभ्य नहीँ,जो गाँव से शहर आ जाते हो।तुम गाँव-से-गाँव जाते होऔर वहाँ की संस्कृतिशहरोँ मे ले आते हो,तभी प्रतिवर्ष–नागपंचमी पर पूजे जाते हो।तुम रोज़गार के एक साधन […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• चमकता चाँद-सा बदन,न चुरा अनकहा कथन।पतंगी रूप अब अपना,उड़ाये कब कहाँ पवन? तेरा चुप भी इक सवाल है,हमे अब न कोई मलाल है।यहाँ हर ख़याल है सो रहा,अब यहाँ बोल […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• जी हुजूर! मै एक सम्पादक हूँ;तरह-तरह का सम्पादक हूँ;किसिम-किसिम का सम्पादक हूँ।पूर्वग्रह से सहित सम्पादक हूँ।सवाल है–रूप-रुपये-रुतबे का;तलाश है, ऐसे दाताओँ की,फिर तो आपको फ़ीचर-पेज कास्तम्भकार बना दिया।आप इसे ‘कदाचार’ […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••• बेशर्म निगाहोँ की नज़र, तोड़िए हुजूर!बेईमान नज़रोँ की नीयत, छोड़िए हुजूर!मर रहा आँखोँ का पानी, देखिए एक बार,इंसानियत से नज़रेँ, न मोड़िए हुजूर!आँखेँ हैँ थक चुकीँ, सब्ज़बाग़ देखकर,फ़र्क़ कथनी-करनी मे, […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• सुनो न!तुम्हारी पूर्णताभाती नहीँ मुझे;क्योँकि तुम मुझसेद्रुत गति मे चलायमान हो।हाँ, मै अपूर्ण हूँ।तुम मुग्ध हो, अपनी पूर्णता परऔर मुझे गर्व है, अपनी अपूर्णता पर;क्योँकि आज मुझेएहसास हो रहा है […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• ज़िन्दगी मे अर्थ की परिव्याप्तिसुरसुरी-सी लगने लगी है।देह की खुरचनसायास-अनायास,केंचुल की भाँतिउतरती आ रही है।कालखण्डस्थितप्रज्ञ की भूमिका मेअनासक्त योगी-सदृश“एकोहम् सर्वेषाम्” को अभिमन्त्रित कर,लोकजीवन को जाग्रत् कर रहा है।प्रार्थना–स्वीकृति-अस्वीकृति की धुरी […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–अत्याचारी देश मे, दिखते हैँ चहुँ ओर।उनके पापाचार का, कोई ओर-न-छोर।। दो–रक्त उबलता देखकर, उनका नित्य कुकृत्य।दिखते हैँ पथभ्रष्ट सब, दिखता हर दुष्कृत्य।। तीन–शुष्क हुई संवेदना, मरता भाव-विभाव।मन चेतन से […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–जीवन अब अनुवाद है, मूल रह गया भूत।भाव अर्थ से हीन है, कथ्य बना अवधूत।।दो–दृष्टि-परे दर्शन हुआ, योग-क्षेम अभिशाप।परे परा अपरा हुई, जल से जैसे भाप।।तीन–कुन्द प्रखरता ठोस है, प्रतिभा […]
राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’– अगर जज़्बातों का ये समन्दर न होताआदमजादे भी यहाँ जानवर बन जाते।कोई भी किसी के लिए परेशान न होताकिसी भी काम के न होते रिश्ते-नाते।न दिल मे किसी के लिए नफ़रत […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• पानी पर ठहरा सम्बन्ध,जाने कैसा क्योँ प्रतिबन्ध?होठोँ पर मृदु हास-रेखाएँ,हृदय दिखाता है अनुबन्ध।चिरसंचित अभिलाष खड़ा है,प्रश्न उठाता है सम्बन्ध।उम्र है घटती-कटुता बढ़ती,अनदेखी कर लेता अन्ध।अनाचार है आँख दिखाता,मुक्त दिख रहे […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• छन्द :– चौपाईमंगल भवन अमंगल हारी। देश लुट रहा बारी-बारी।।जनता फिरती मारी-मारी। असर न होता अत्याचारी।।आपस मे है मारा-मारी। पापी दिखते सब पर भारी।।पाप घड़ा पापी भर आया। भगतोँ को […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–कैसा भाई दूज है, लिये प्रथा को संग।प्रेम-नेह दिखता नहीँ, रिश्ते होते तंग।।दो–छिटक रहे भाई-बहन, भौतिकता ले साथ।रोता भाई दूज भी, झुका-झुकाकर माथ।।तीन–बचपन बूढ़ा हो रहा, लकुटी ही अब साथ।बिछड़ […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–जन का तेल निकाल कर, भरेँ दीप मे तेल।परवश कैसा राम है, खेल रहा है खेल।।दो–दृष्टि सयानी दिख रही, बढ़ा रही है प्रीति।घायल करती राज को, बना रही है नीति।।तीन–संविधान […]
Raghavendra Kumar Raghav– On the sacred festival of light, we come with open hearts, Seeking beauty’s true reflection, where the soul’s essence starts. Not in fleeting worldly forms, but in light that never fades, Shining bright, deep within—our […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• कहो!चित्त कोक्योँ ले गये संश्लिष्ट विचार-गह्वर मे?निर्द्वन्द्व करो अपने भाव को;शिथिल करो शब्द-बन्धन को;शब्द-शब्द होगा,करबद्ध मुद्रा मे;नतमस्तक हो,तुम्हारे आदेश की प्रतीक्षा मे।पात्रता ग्रहण करो;रिक्त रहकर,उद्विग्न रहोगे स्वयं से;अपरिपक्व विचारों से,फिर […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–संदेही इस जगत् मे, दिखते हैँ चहुँ ओर।समय दिखे शंकालु है, मोहग्रस्त है भोर।।दो–चतुर-सुजान सुभग यहाँ, कोई ओर-न-छोर।माया-सम सब दिख रहे, अभिधा करती शोर।।तीन–यही जगत् की रीति है, साधु बन […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–कोण दृष्टि का बदलकर, लक्ष्य करो संधान।आडम्बर को त्यागकर, कर लो ग्रहण अपान (आत्मज्ञान)।।दो–कौन सनातन है यहाँ, क्षणभंगुर है कौन?न्यायी दिखता कौन है, अधिनायक है कौन?तीन–ब्रह्म सनातन एक है, जीव […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–चिन्ता-चिन्तन शब्द हैँ, शब्द बने अविराम।शब्द-शब्द मन्थन करो, मानस हो अभिराम।।दो–शब्द-शब्द अश्लील है, शब्द बनाये श्लील।शब्द समादरयुक्त है, हरण है करता शील।।तीन–लोचन आलोचन लगे, दृष्टिबोध है मर्म।कटुता कण्टक-सा चुभे, औषध […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–आग ‘आग’ से कह रही, दु:ख से मत हो दूर।सुख तो औरों के लिए, दु:ख जीना भरपूर।।दो–तिनका-तिनका जोड़कर, महल बनाया एक।आधी घड़ी न सुख मिला, रहने लगे अनेक।।तीन–कष्ट मिटाओ लोक […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेख़ुदी का हश्र कैसा, हम जाम ढूँढ़ते हैँ,ज़ख़्म बूढ़ा ही रहे, हम आराम ढूँढ़ते हैँ।चेहरोँ मे छिपा चेहरा, जाने बैठा है कहाँ,रावण के घर मे, हम ‘राम’ ढूँढ़ते हैँ।नख-शिख अत्याचार […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–रूप-रंग की हाट मे, भाँति-भाँति-तस्वीर।राँझा बिकते हैँ कहीँ, कहीँ बिक रहीँ हीर।।दो–धर्म-पंथ औ’ जाति की, बिगड़ गयी है रीति।ऐसे मे कैसे भला, गले मिलेगी प्रीति।।तीन–रुपया-रुतबा-रूपसी, बहुत भयंकर रोग।सत्ता-धर्म गले मिलेँ, […]
बुराई के अन्त का पर्व है विजयादशमी।मन के पापों का शमन है विजयादशमी।विजय-हेतु कौशल तथा मन की शक्ति सर्वोपरि है। स्वयं की जय से विजय का मार्ग है विजयादशमी।राम हैं पावन प्रकाश कालकूट विष रावण […]
सदा प्रसन्ना मां जगदंबामम हृदय तुम वास करो।लेकर खड्ग त्रिशूल हाथ मेंमाँ शत्रुदल संहार करो।चंड-मुंड के मुंड धारियेमम संकट का भी हरण करो।तंत्र विद्या की प्रारंभा देवीशत्रु तंत्र मंत्र यंत्र का शमन करो।चौसठ योगिनी संगी […]
वक़्त के थपेड़े यहाँ जीना सिखा देते हैं।वक़्त पर इंसान की पहचान करा देते हैं।दोग़लों को पहचानना आसान बहुत है।ज़रूरत के वक़्त ही ये लोग दगा देते हैं। गद्दारी आजकल रग-रग मे मानो भर गयी।बेहयाई […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••` चिन्दी-चिन्दी रातेँ पायीँ,फाँकोँ मे मुलाक़ात रही।मुरझायीँ पंखुरियाँ देखीँ,सहमी-सकुची बात रही।बेमुराद हो आँसू छलके,याद पुरानी घात रही।बूढ़े ज़ख़्म कुरेद रहे थे,बची-खुची बस रात रही।दौड़ा-धूपा; हाथ न आया,परवशता की लात रही।पेट था […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••• ठेहुनाव;केहुनाव;पहुँनाव।आ केकर-केकर झँकब,होने से हेने आव।तनी खइनी बनाव,आ हे चुनौटिया-उठाव।मल भा मीज,आ धीरे से फटक।जीभिया के उठाव,आ खइनिया दबाव।आ धीरे-धीरे भीतरा,रसवा के घुलाव।आ माजा ना मिले–त मुँहवा फुलाव। (सर्वाधिकार सुरक्षित– […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–तक़दीर लिखने का हुनर हमे है मालूम,सलाहीयत पर यक़ीँ करने को फ़ुर्सत ही नहीँ।दो–हम वो खिलाड़ी हैँ, जो हारना नहीँ जानेँ,वह खेल ही क्या, जिसमे हमारी जीत न हो।तीन–हमारा हक़ […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• ऐ हवा!मेरी देह पर तुम्हारा दृष्टि-अनुलेपनसम्मोहन के पाश मेआबद्ध कर रहा है।तुम्हारा संस्पर्श–एक अबूझ पहेली है,जो है और नहीँ भी।आंशिक छुवन का एहसास–एक मादक विष की तरहमन मे उतरता चला […]
अश्वनी पटेल– खो गया था कहीं मैं एक मोड़ पर।चल पड़ा साथ एक अजनबी जोड़ कर।कुछ दूर चलकर देखे उसके नयन।लग रहा था मिला एक बहार-ए-चमन l थी कली एक खिली कुसुम की कोई।मैं था […]
जिंदगी जोंक सीरक्त पान कर रही है।मौत के नगर मेंजिंदगी से खिलवाड़ कर रही है।काले उजले दिन मेंदेश का गणतंत्रसुखे पत्ते की तरहठिठुर कर अस्फुट होशिकायत कर रहा है।भौतिकता का कंकालमहानगर की दहलीज लांघकरविक्षुब्ध कर […]
जिस द्वार हुए हो अपमानित,उस द्वार कभी मत जाना तुम।अपनी रूखी-सूखी खाकर,ख़ुद से ही लाज बचाना तुम।। कुछ आएँगे समझाने को,तुमको ही ग़लत बताने को।निज बातों में उलझाने को,ख़ुद को बेहतर दिखलाने को।। हो सके […]
अश्वनी पटेल, बालामऊ, हरदोई– चोट लगी थी मन पर उस क्षण,एक आह निकली थी गम्भीर।कुछ नहीं, बस संवेदनाएँ थीं,जिनको सोच वह हुआ अधीर।कितनी माओं और बहनो ने,बेटे-भाई खोये थे।पाला जिनको तन-मन-धन से,सपने बहुत संजोए थे।रक्त-रंजित […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मुँह मारनेवाले मौक़ापरस्तमुँह का ढक्कन योँ खोले रखते हैँ,मानो हर सड़क और गली मे–लावारिस-से अड़े-पड़े-खड़े-औँधे पड़ेबजबजाते ‘सीवर’ होँ।उन्हेँ गिरने की चिन्ता नहीँ रहती;वे मौक़ा टटोलते रहते हैँ;गिराकर मुँह मारने मे […]
अश्वनी पटेल, बालामऊ, हरदोई– स्मरण हो रहा है उन विचारों का,जो जेहन मे उमड़े थे पहली बार।शायद तब मै बच्चा ही था,कुछ मायने नहीं रखता था जीत हो या हार।थी कुछ ऐसी कही-अनकही बातें, जिनमें […]
राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’– किसी के लिये अमूल्य है प्रेम।कोई है जो प्रेम की कीमत नहीँ समझता।कोई लुटता ही रहता है प्रेम मे।कोई लूटकर भी प्रेम से नहीँ भरता।क्या प्रेम कोई इच्छा या आवश्यकता है?क्यों हर […]
राघवेन्द्र कुमार राघव– कृष्ण! निर्मोही है,इसीलिए कृष्ण सेमोह हो जाता है।कृष्ण! प्रेम कीप्रवहमान सरिता है।जिसमे जड़ और चेतनसब बह जाता है।व्याकुल कंठों की चाह है कृष्ण।प्रेम और आनंद की राह है कृष्ण।किन्तु हर नदी कीएक […]
राघवेन्द्र कुमार राघव– हमने पढ़ा है कि प्रेम सत्य है और शाश्वत भी है।सबने यही जाना कि प्रेम शक्ति है और आदत भी है।क्या आपको नहीं लगता कि प्रेम मे पूर्णता का अभाव है?और सत्य […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेशक,तुम हो।तुम्हारे साथ मै नहीँ;क्योँकि तुम मै-मय हो।तुम्हारे-मेरे मध्य का मै,एक अन्तराल-शिला पर बैठा,कुचक्र रच रहा है।तुम और मै मिल-बैठ,उस अन्तराल को पी रहे हैँ–भीतर तक।आँखेँ–पलकोँ पर प्रश्नो को सँभाले,तुमसे […]
आजाद हुए हम गैरों सेमगर अभी नही हुए औरों से।जीत चुके हैं हम औरों सेमगर हारे हुए हैंअभी अपने विचारों से।छोटे को बड़ा, बड़े को छोटासमझना अभी छोड़ा नहीं।जाति-पांति के कठोर नियमों सेमुख भी अभी […]
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–देश ग़ुलामी जी रहा, हम पर है परहेज़।निजता सबकी है कहाँ, ख़बर सनसनीख़ेज़।।दो–लाखोँ जनता बूड़ती, नहीं किसी को होश।“त्राहिमाम्” हर ओर है, जन-जन मेँ आक्रोश।।तीन–प्रश्न ठिठक कर है खड़ा, उत्तर भी […]
मृत्यु तुम क्योंआ रही हो?यू क्यों बार-बारमुस्कुरा रही हो?क्या प्रलय करता हुआजल तुमको भाता है?क्या सड़ती हुईलाशें तुम्हें सुकून देती हैं?क्या तुमको कभीकिसी ने पुकारा है?क्या तुमको कभीकिसी ने ठुकराया है?किस क्रोध मेंतुम बरस रही […]
Dr. Raghavendra Kumar Raghav– On our motherland, friendship is a sacred creed.Friendship is more precious than every need.It is the greatest relationship that is pure and true.A treasure cherished, forever shining through.With devotion complete, every […]
ढूंढने पर भी नहीं मिलतेवह लोग जो सत्य की बातसब से किया करते हैं। ढूंढने पर भी नहीं मिलतेवह लोग जो अपने होकरअपनापन दिखाया करते हैं। ढूंढने पर भी नहीं मिलतेवह लोग जो सच्ची मोहब्बत […]
Raghavendra Kumar ‘Raghav’– Be truthful always, human life we rare find.This is a glorious creation of God, one of a kind.Our purpose in life is to seek and to know.The truth that sets us free, […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मेरी चित्रलेखा की खिलखिलाहटमुझे निमन्त्रण दे रही है–अज्ञात प्यास-कुण्ड मेनिमग्न हो जाने के लिए।सम्मोहक शक्ति के–संस्पर्श और संघर्षणमेरी देह के आचरण कीपट-कथा लिख रहे हैँऔर मै सूत्रधार-समअपनी ही पराजय कीपृष्ठभूमि […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–टूट रहे तटबन्ध हैँ, जल का हाहाकार।प्रलय आँख मे नाचता, लिये मृत्यु आकार।।दो–चाहत पूरी कर रहा, ले निर्मम-सा रूप।जनता मरती देश मे, निर्दय कितना भूप।।तीन–हा धिक्-हा धिक्! कर रही, क्रन्दन […]
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय– उसकी भूख से बिलबिलाती आँतेँ–अन्तहीन सिलसिला से संवाद करना चाहती हैँ।उसकी चाहत–चीथड़ोँ मे लिपटीँ-चिपटीँ-सिमटीँ;अपनी पथराई आँखेँ पालतीँ;टुकुर-टुकुर ताकतीँ;आँखोँ से झपट लेने की तैयारी करतीँ,मेले-झमेले की गवाह बनकर रह जाती हैँ।उसके अन्तस् […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••• शब्द की उष्मा;शब्द की कान्ति;शब्द की संगति;शब्द की ऊर्जा;सार्थक तभी होती हैजब शब्दकार–साधनापथ से आ जुड़ता है।शब्द सात्त्विक होता है,तुम ही अपने आचरण की सभ्यता मे रँगकर,उसे राजसी बनाते हो […]
Dr. Raghavendra Kumar Tripathi Raghav– One walked, two walked and gathering grew,The caravan assembled, and onward it flew.This is the way to journey, on common ground,With every hand united, strength will be found. But when […]
Raghavendra Kumar ‘Raghav’– The clock hand marches, minutes turn to hours.Seasons dance and twirl, adorned with floral powers.The world’s a shifting canvas, ever new and bold.Embrace each fleeting moment, stories yet untold. With open arms […]
बीते हुए वक्त मेंबीता हुआहर लम्हा याद आएगा। बन गई है जो जगहआपके हृदय मेंवो बीता हुआहर कल औरआज याद आएगा। मुक्त हो जाएगेइस जहाँ से एक दिनऔर छुप जाएगेआपके हृदय की ओट में। फिर […]
कब किताबों के पन्नो सेप्यार हो गयापता ही न चला। कब अल्फाज़ों कालफ्ज़ों से इकरार हो गयापता ही न चला। कब शब्दों कोमात्राओंं से इश्क़ हो गयापता ही न चला। कब प्रकृति कामानव से आलिंगन […]
Dr. Raghavendra Kumar Tripathi ‘Raghav’— Colourful life because of mental bloom,Mood determine happiness or gloom.If mind accepts we troubles find,If rejects all leaves worries behind. So keep your mind calm and free,Smile like blossoms on […]
नेता बनना है तो काम करो, करने को काम हजार है,हिंदू मुस्लिम को ना बाँटो, मुस्लिम मेरा जिगरी यार है।साथ में रहते हैं हम कुछ ऐसे जैसे रहता परिवार है,मुझे पसंद है सेंवई ईद की, […]
घनघोर बादलकहां हो?मानव दानव के लिए न सहीपर इस धरा के लिए सहीसब की प्यासबुझा दो। तप्त ऊष्मा सेमुरझा रही जोप्रकृति रूपसीउसको जराअपने शीतल स्पर्श सेसहला दो। जीव-जंतुओं केसूख रहे जो कंठसूर्य की तप्त किरणों […]
न देखा मैं सृजनहारान देखा मैं पालनहारामैं देखा अपना गुरु बलिहाराजिन भव पारमुझे उतारा। न देखा मैं राम प्यारान देखा मैं कृष्ण न्यारामैं देखा अपना गुरु प्याराजिन दरश दिखायाप्रभु तेरा हर रूप न्यारा। न देखी […]
Raghavendra Kumar Tripathi ‘Raghav’ O beloved Motherland, I always bow to you,You have nurtured me with joy, so pure and true.O sacred land of great blessings, in your cause, my body I offer,To you, I […]
Raghavendra Kumar Tripathi ‘Raghav’– When someone asks what is Dharma and what it signifies?Say, it’s what we uphold, where true meaning lies.Following it brings us prosperity, freeing us from sorrow.Attaining supreme joy and bliss, into […]
आस्तीन के सांप बन न डसा करोअपने हो तो अपने बन ही रहा करो। किसी वन के विषधर की तरहदांतों में विष छुपा न रखा करोजैसे हो वैसे ही बन रहा करो। सभ्यता का मोल […]
चला परिंदा घर की ओर,हरा भरा है मेरे घर का आंँगन,सुदूर भ्रमण कर आया ,नहीं दिखा मातृछाया जैसा कोई,जहांँ खुशियों का अंबार है,रिश्तो का लिहाज़ है ,संस्कार दिया है हम सबको,भूल कोई ना हमसे हो,कोई […]
Composed By– Raghavendra Kumar Tripathi ‘Raghav’, Balamau In shimmering heat, a vision gleams.A lake of comfort, a land of dreams. Religion beckons, a promise untold.But closer you get, the water, it fold. A mirage, it […]
Raghavendra Kumar Tripathi Raghav– Within this body, sin takes hold,No carnal cravings leave me bold.These worldly ties, they bind and chain,From their embrace, I seek escape, oh pain! With faith and love, my spirit yearns,Redemption’s […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• उनकी बातोँ मे, मत आइए साहिब!उनके घातोँ मे, मत आइए साहिब!हर गोट के मिज़ाज से, वाक़िफ़ हैँ वे;भूलकर भी धोखा, मत खाइए साहिब!ख़ैरात भी माँगेँ, तो मुँह मोड़ लीजिए;उन्हेँ औक़ात […]
अंदर ही अंदर लोगकफ़न ओढ़ रहे हैमोहब्बत के नाम परदफन हो रहे है। देखते नहीं सुनते नहींसमझते भी नहींबस मोहब्बत के नाम परगम ढो रहे है। अपनों का परायों कायहां कोई भेद नहींअपने मतलब के […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय अंकुश नहीँ जब़ान पे, बोलेँ ऊल-जुलूल।हवा घृणा की चल रही, पकड़ लिया है तूल।।मतदाता भी सोच मे, कौन हमारे साथ।दिखते सब बहुरूपिये, कहाँ दबायेँ हाथ?थू-थू सबकी हो रही, जीभ अभागी […]
मेरी कहानी के सभी किरदार विविध रंगों की भांँति हैं ,विसंगतियाँ होते हुए भी आपसी तारतम्यता की उनमें पराकाष्ठालक्षित है । मेरी कहानी की सभी किरदार मूक नहीं ,सीधा सपाट बयानी में प्रत्युत्तर देते हैं,सामाजिक […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–ध्यान बँटाने के लिए, तरह-तरह की खोज।मन्दिर-मस्जिद लड़ रहे, हर पल हर दिन रोज़।।दो–सत्ता चेरी दिख रही, चिपकी कुर्सी देह।रड़ुवा-रड़ुवी संग हैँ, माँग भरी है रेह।।तीन–ग़ज़नी-गोरी संग मिल, लूट रहे […]
●आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••• हमारी बात, हम तक रहे तो बेहतर है,हमारा साथ, हम तक रहे तो बेहतर है।चादर देखकर ही, पाँव हम पसारा करते,हमारा ख़्वाब, हम तक रहे तो बेहतर है।जनाब! आप तो हमारे […]
आओ हम स्कूल चलेनव भारत का निर्माण करें। छूट गया है जोबंधन भव काआओ मिलकर उसकोपार करें,आओ हम स्कूल चले॥ जाकर स्कूल हमगुरुओं का मान करेंबड़े बूढ़ों का कभी नहम अपमान करें,आओ हम स्कूल चले॥ […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय केवल चन्दा, दिखता धन्धा;भक्ति-भाव है, मन्दा-मन्दा।भक्त और भगवान् का नाता;खेल खेलते गन्दा-गन्दा।अन्धभक्ति का खेल निराला;गले पड़ा ज्यों निर्मम फन्दा।पकड़ गिराओ बहुरुपियों को;रगड़ो जैसे रगड़े रन्दा।क्रान्ति-पलीता आग छुआ दे;लाओ कहीं से […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• आँखों-ही-आँखों मे, रात हो जाने दो,या ख़ुदा! तसल्ली से, बात हो जाने दो।जिस मकाम पे, छोड़ आया था ज़िन्दगी,साहिब! इकबार मुलाक़ात हो जाने दो।भ्रम भी नसीहत दे रहा, उम्रे दराज़ […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••• वसंतबेचारा संत हो गया।पंचमी का–वह कन्त हो गया।पतझर बौराया–वह अन्त हो गया।हा धिक्-हा धिक्!वह हन्त हो गया। (सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १३ मार्च, २०२४ ईसवी।)
शिव समान यह शिशु सुशोभित, वरदानी सा पुलकित है। शिव विग्रह के साथ स्वयं भी, दिखता अति आलोकित है। नमः शिवाय, ओम जागृत, महारात्रि पर अभिजित है। डमरू के डिमडिम स्वर सुनकर, विश्वधरा भी गुंजित […]
मैं कालों का काल हूँमैं ही तो महाकाल हूँ।सत्य का पालनहार हूँअसत्य का करतासदा विनाश हूँ।मैं देवों का देव हूँमैं ही तो महादेव हूँ।अंधकार में करता प्रकाश हूँअंत का भी करता आरंभ हूँतभी तो मैं […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••• आँसू की तबीअत नासाज़ है पलकों को न छेड़ो। उसके गेसू मे इक अजीब-सी लर्जिश† की बुनावट है। ज़ख़्मी बूढ़े दरख़्त को, सिसकियाँ भर लेने दो। शम्अ न बुझाओ, तक्रीज़‡ […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• मन को तराशता हूँकसैला बिम्ब दिखता है।बूढ़े पलंग पर लेटा वय-वार्द्धक्यचुपके से जीने का गणितसूत्र समझाता है।मनमोहिनी माया मस्तिष्कतन्तु को,रुई का फाहा बनाकरआहिस्ते-आहिस्ते सरकाती है।अराजक ऐन्द्रियिक तत्त्व,सक्रिय होने लगते हैं।जीवनीशक्ति […]
आजकल बदलने लगे हैंतेरे अल्फाजतेरे शहर के मौसम के तरह। आजकल बदलने लगा हैतेरा अंदाजगिरगिट के रंग की तरह। आजकल बदलने लगा हैतेरा इश्कतेरी बेवफाई की तरह। आजकल बदलने लगा हैतेरा व्यवहारतेरी निग़ाह की तरह। […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••• महब्बत को क़ब्रगाह मे दफ़्न कर लौटे हैं, ज़ख़्मी पाँव अभी, थोड़ी साँस उधार मे दे दो, सुबूत हैं आख़िरी दाँव अभी। परछाईं लगना चाहती है गले, शिद्दत से बूढ़े […]
कोई कह दे कि शाम हो गई हैअब यकीन नही होता।कदम-कदम पर अब तो बड़ा फरेब होता।चले कहाँ के लिए और आ गये कहाँखुशियों की चादर पर कोई सितारा दिखेये सितारे गगन को चूमते हैं।आँचल […]
Raghavendra Kumar Tripathi ‘Raghav’ Sanatan teachings are the ancient way of life. Embracing both the form and formless divine. God’s essence, soul’s liberation, profound. Sanatan Dharma, the path profound. In saguna and nirguna, God resides. […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• घिसटते हुए टायर की तरह ज़िदगी जीनेवालो! अपने भीतरभरी हवा की इज़्ज़त करना सीखो। फटे बाँस की तरह चरचपर चरचरमरमर करती ज़िन्दगी, एहसासात को छूती तो है, बूझती नहीं; ताड़ती […]
——० यथार्थ-दर्शन– छ: ०—– ★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–आँखों-अन्धे नयनसुख, मनमिट्ठू के बोल।सत्तालोभी दिख रहे, जनता-हित है गोल।।दो–रागी-वैरागी यहाँ, रँड़ुओं का संसार।कामी-कंचन-कामिनी, माया अपरम्पार।।तीन–नेता आतंकी बने, बाँट रहे हैं देश।बोल विषैले बोलते, नक़्ली दिखते […]
मुझे वो पगडंडियाँअब दिखती नहींजिन पर मैं चला करता था। मुझे वो आम के बागअब नहीं मिलतेजिन्हें देख नन्हे मन मचलता था। मुझे वो नदियांअब नहीं मिलतीजिनमें बाल-गोपाल नहाया करते थे। मुझे वो सुकून की […]