पुरुषत्व की मैला
राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’– अन्तःविचारों मे उलझा न जाने कब? मै एक अजीब सी बस्ती मे आ गया। बस्ती बड़ी ही ख़ुशनुमा और रंगीन थी। किन्तु वहाँ की हवा मे अनजान सी उदासी थी। ख़ुशबू […]
राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’– अन्तःविचारों मे उलझा न जाने कब? मै एक अजीब सी बस्ती मे आ गया। बस्ती बड़ी ही ख़ुशनुमा और रंगीन थी। किन्तु वहाँ की हवा मे अनजान सी उदासी थी। ख़ुशबू […]
राघवेन्द्र कुमार “राघव”- अन्त:विचारों में उलझा न जाने कब मैं, एक अजीब सी बस्ती में आ गया । बस्ती बड़ी ही खुशनुमा और रंगीन थी । किन्तु वहां की हवा में अनजान सी उदासी […]