एक स्वछन्द अभिव्यक्ति
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–बनता-मिटता चित्र यहाँ, जीवन बन अभिशाप।मीठे फल सब चख रहे, बनकर के निष्पाप।।दो–भाँति-भाँति-जन हैं यहाँ, चतुर-चोर-चालाक।वाणी कोयल कूकती, दिखते मन से काक।।तीन–मन से दिखते दीन हैं, तन से सुन्दर अंग।चीर […]