आधुनिक लव का गन्तव्य ओयो रूम
आजकल के नौजवानों को प्यार बहुत जोर से आता है। रोज डे, प्रोपोज़ डे, किस डे, हग डे से होता हुआ आधुनिक लव कुछ ही दिनों में ओयो रूम तक जा पहुँचता है। हालांकि कार्बाइड […]
आजकल के नौजवानों को प्यार बहुत जोर से आता है। रोज डे, प्रोपोज़ डे, किस डे, हग डे से होता हुआ आधुनिक लव कुछ ही दिनों में ओयो रूम तक जा पहुँचता है। हालांकि कार्बाइड […]
——० यथार्थ-दर्शन– छ: ०—– ★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–आँखों-अन्धे नयनसुख, मनमिट्ठू के बोल।सत्तालोभी दिख रहे, जनता-हित है गोल।।दो–रागी-वैरागी यहाँ, रँड़ुओं का संसार।कामी-कंचन-कामिनी, माया अपरम्पार।।तीन–नेता आतंकी बने, बाँट रहे हैं देश।बोल विषैले बोलते, नक़्ली दिखते […]
——० हास-परिहास ०—— ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय परिदृश्य-विवरण :–‘क्रिमिनल बाबा’ का अय्याशीभरा दरबार सज गया है। क्रिमिनल बाबा मखमल-जैसे नरम-नरम स्वर्णिम गद्दे पर ओल्हरे हुए हैं। उनके चारों ओर पैर पसारे भगतिन क्रिमिनल बाबा […]
——–० यथार्थ-दर्शन ०——- ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–महँगाई है मारती, भूख करोड़ों लोग।कुछ मरते हैं भोग से, कुछ मरते हैं रोग।दो–सिर पर छत दिखती नहीं, आस एक विश्वास।अपने मन के सब यहाँ, नहीं दिखे […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–राम सिया-बिन किस लिए, प्रश्न उछलता रोज़।मुँह-दरवाज़े बन्द हैं, कौन करेगा खोज?दो–मन्दिर दिखे अपूर्ण है, प्राण-प्रतिष्ठा-प्रश्न।मूल समस्या गर्त मे, मना रहे सब जश्न।।तीन–राजनीति की गोद मे, खेल रहे हैं राम।उल्लू […]
भोजपुरिया लिक्खाड़ लोगवा! एही क कहल जाला भोजपुरी ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ए चचिया! तोरा क उठि-बइठि आ सूति-जागि के उठक-बइठक करत परनाम करत बानी। आछा त, तू खाँड़ी-चूकी ना हउ, सोगहगवे बाड़ू। आपना […]
इही काहाला असलिका भोजपुरी; एकर माजा लीहीं सभे ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय आहि ए दादा! हो टुअरी क देख ना। हो मचनिया पर कौआ क हाँकत-हाँकत का-का कह तीया। बुझाता जइसे केहू सुतला मे […]
आरती जायसवाल (कथाकार, समीक्षक) सांप्रदायिकता की आग तेज हुईफिर लपटें उठीं,धू -धू कर जली मानवता,फिर हो गया सामान्य जन-जीवन अस्त -व्यस्त और त्रासदी पूर्णकुछ स्थानों परचीत्कार कर उठा ‘अधर्म’चिंघाड़ता हुआ लेने को ‘नरबलि’मृत देहों के […]
श्री जय प्रकाश सिंह, बैसवारा इंटर कॉलेज लालगंज, रायबरेली में जीव विज्ञान विषय के हमारे शिक्षक थे। वह अपने विषय के विद्वान थे, सभी बच्चों पर बराबर ध्यान देते थे, पूरे मन और ऊर्जा से […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेशक,तुम्हारे चिन्तन चुराये हुए हैं।तुम्हारे विचार दिल्ली के आज़ाद मार्केट सेकिलो के भाव लाये हुए कपड़ों-जैसे हैं।किसी कोठे के किराये की कोख से जन्मेवा फिर परखनली में उपजे,तुम्हारे वे शब्द […]
कुछ वर्ष पहले मुंबई में मेरे सगे साले की सगाई थी। मैं दिल्ली से हवाई जहाज द्वारा कोट-पैंट पहन कर कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पहुंचा था। लड़की वालों की तरफ से एक खूबसूरत, […]
संस्थाओं का निजीकरण करने की मुहिम ने अब जोर पकड़ लिया है। लेकिन इसकी शुरुआत बहुत पहले हो चुकी थी। छोटे मोटे कार्यों को ठीका, आउटसोर्सिंग के माध्यम से कराने की तब प्रायोगिक स्तर पर […]
पापा रोज शाम को कहते- “मेरी पार्टी वाले लोग मेरे पास आ आओ। अम्मा की पार्टी वाले, अम्मा की तरफ जाओ। “इतना सुनते ही मैं पापा की तरफ भागता और बड़े भैया अम्मा की तरफ। […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय रगड़ू― चाचा!झगड़ू― हाँ भतीजे रगड़ू।रगड़ू― चाचा! नौकरी तो मिलौ नाय। जब नौकरी नै मिलौ तव छोकरी कैसौ मिलौ।झगड़ू― एमा तोर मतलब का आय?रगड़ू― चाचा! अबै हम छत्तीस के होये जाय […]
राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’– फरवरी महीने का दूसरा सप्ताह प्रेमियों के लिए होली, दीपावली और ईद से भी कहीं बढ़कर होता है। तरह-तरह के पक्षियों का दाने की तलाश में उड़ान भरते नजर आना मामूली […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय “का हो बहोरी चाचा! ए फजीरे-फजीरे केने चलि देहले? आ तनी हेने आव; पनपियाव कइ ल, ना त खरास मारि दीही।” “अरे का बताई मरदे, हो पकड़िया तरे एगो बाबा […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय किसी स्थान पर करोड़ों की संख्या मे लोग उपस्थित थे। वहाँ के एक चतुर-चालाक मालदार सेठ ने डुगडुगी पिटवा दी थी– सुनो-सुनो! देश के बेरोज़गार युवक-युवतियो! सरकारी फ़र्मान (‘फ़रमान’ अशुद्ध […]
सुधीर अवस्थी परदेसी (ग्रामीण पत्रकार) : वर्तमान में अखबारों को पत्रकार नहीं कमाऊ पूत चाहिए। जोकि संस्थान को अच्छे से अच्छा विज्ञापन कलेक्ट कर के दे सकें और अखबार की प्रसार संख्या को लगातार बढ़ाते […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय १९ अगस्त को “आ बैल! मार मुझे” की कहावत चरितार्थ होती दिखी; और वह भी ‘भगवान्’ के दरबार मे। इसके लिए पूरी तरह से राज्य-शासन और ज़िला-प्रशासन उत्तरदायी है। जब […]
आज एक मनगढ़ंत कहानी सुनाता हूँ! बहुत साल पहले जंबूद्वीप के एक छोटे से गांव में एक भोला-भाला धोबी रहता था। वह अपने गधे के बच्चे को बहुत ज्यादा प्यार करता था। धोबी गधे के […]
सौदर्य प्रतियोगिताओं के फाइनल राउंड में दुबली-पतली, कुपोषण की शिकार विश्व सुंदरियों से निर्णायक बहुत गंभीरता से प्रश्न पूछते हैं – “आपके जीवन का उद्देश्य क्या है? भविष्य में आप मानवता के लिए क्या करना […]
एक जमाना था, जब पहले शादी होती थी। शादी से भी पहले गोदभराई, रिंग सेरेमनी, बरीक्षा, तिलक (फलदान) और भी न जाने क्या- क्या होता था। शादी हो जाने के बाद भी नसीब वालों के […]
इन दिनों पापा की ड्यूटी उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की अंग्रेजी विषय की कॉपियां चेक करने में लगा करती थी। 10 दिन की ड्यूटी होती थी। रोज 50 कॉपियां चेक करनी होती थी। उस […]
90 के दशक में मैथ के साथ साइंस साइड लेकर 12वीं करने वाले हम अधेड़ों से गणित के अत्याचार की कहानी सुनिए। तब इंटरमीडिएट की परीक्षा में 11वीं और 12 दोनों का सिलेबस शामिल रहता […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ज्ञानवापी तो महज़ एक बहाना हैसिर्फ़ महँगाई से ध्यान हटाना है।जनता को मन्दिर-मस्जिद से क्या,अस्ल मे ख़ास मुद्दों से भटकाना है।बहुरुपियों को समझना मुश्किल बहुत,दरअस्ल २०२४ का चुनाव निशाना है।बेहयाई […]
आकांक्षा मिश्रा— मोहिनी, सुबह 7 बजे से लेकर 11 बजे तक अपनी मेम साहब के यहाँ काम करती । सारे काम मोहिनी के जिम्मे ……. मेमसाहब 8 बजे उठती, उसके एक घण्टे पहले मोहिनी के […]
प्रभात सिंह (युवा लेखक/मान्यता प्राप्त पत्रकार)- पन्ना लाल ख़लीफ़ा एक हाँथ में गमछा और दूसरे हाँथ में माइक पकड़े पहले लंबी तान लगाते हैं। फिर मंच के नीचे बैठे रमेश ख़लीफ़ा, मुन्नी लाल ख़लीफ़ा से […]
प्रभात सिंह (मान्यता प्राप्त पत्रकार), लखनऊ- नेता जी, आपके ऊपर लोहियावादी पार्टी और समाजवादी परिवार का भार है, इस भार को वहन करना आसान नहीं है। आज के दौर में “हम दो हमारे दो” टाइप […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय धीके लागल ए बबुआ! तहार नगरी,देख छलकत बा कइसे हमार गगरी।ए बिधाता के रचना जियान कइल तू,हेने अइह मत, पकड़ होने के डगरी।एही करनिया से करिखा पोताइ लेहल,सोचबो करिह ना […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बच्चा– चच्चा! एक बात बताओ?चच्चा– बोल बच्चा?बच्चा– कल आप और चच्ची को आपके दोनो बेटे खरी-खोटी सुना रहे थे।चच्चा– तो क्या हुआ?बच्चा– वे तो यह भी कह रहे थे– घर […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बच्चा– चच्चा! महँगाई देख रहे हो?चच्चा– हाँ बच्चा।बच्चा– तो?चच्चा– गुड न्यूज़।बच्चा– वह क्या?चच्चा– बच्चा! उपाय है।बच्चा– वह क्या?चच्चा– रात मे सोते समय तकिया के नीचे मोदी बाबा की फोटू रख […]
■ लेखक और प्रस्तोता– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ● पाकिस्तान की संसद् मे इमरान ख़ान के विरुद्ध प्रस्तुत किया गया अविश्वास-प्रस्ताव ३४१-८१ से पारित कर दिया गया है। अब इमरान ख़ान दो दिनो के भीतर […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–नेता आतंकी बने, बाँट रहे हैं देश।बोल विषैले बोलते, नक़्ली दिखता वेश।।दो–नेता इनको मत कहो, करते हैं व्यापार।मानवता को खा रहे, दिखें धरा पर भार।।तीन–घृणित कृत्य से युक्त हैं, दुर्गुण […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बीज घृणा का हर तरफ़, उगने लगी खटास।गदहपचीसी हर जगह, दूर हो रही आस।।गोरखधन्धा दिख रहा, खेल निराले खेल।बाहर से दुश्मन लगें, अन्दर-अन्दर मेल।।गुण्डों का अब राज है, उस पर […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय “पत्रकारिता की भाषा ‘आम आदमी’ की हो।” एक कथोपकथन (संवाद) के दौरान प्रतिष्ठित पत्रकार प्रभाष जोशी जी ने कभी मुझसे कहा था। पत्रकारिता की भाषा आम आदमी की हो और […]
राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’ खेलने की उम्र में फैले हैं हाथ देखो ।कुदरत भी क्या अजब हैइसके कमाल देखो ? तुतलाती भाषा में बच्चे,कितने प्यारे लगते हैं ।शैतानी कर-कर इठलाते,सबसे न्यारे लगते हैं ।जब ये […]
आज ‘फर्स्ट अप्रैल’- मूरख दिवस है । आज के दिन चतुर लोग किसी को मूर्ख बनाने में आनन्दित होते हैं । मूर्ख बनाये नही जाते, होते ही हैं । मूर्खता साधारण बुद्धिमानो को विकार या […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मैं गंगा-गोमती से लखनऊ जा रहा था। मेरे पार्श्व में दो महिलाएँ एक बच्चे के साथ बैठी हुई थीं। मैं अपनी पुस्तक ‘समग्र सामान्य हिन्दी’ और ‘समग्र सामान्य ज्ञान’ के […]
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय : परिदृश्य–‘क्रिमिनल बाबा’ का अय्याशीभरा दरबार सज गया है। क्रिमिनल बाबा ओल्हरे हुए हैं। उनके चारों ओर भगतिन क्रिमिनल बाबा के हाथ-पैर मीज रही हैं। धर्म-कर्म का ठीकेदार ‘क्रिमिनल बाबा’ ६५ […]
— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–गयी हाथ से नौकरी, लोग हुए बेकाम।नमो-नमो का जप करो, बोलो जयश्रीराम।।दो–शर्म-हया सब पी गये, छान पकौड़ा तेल।जनता जाये भाँड़ में, अजब-ग़ज़ब का खेल।।तीन–थपरी मारो प्रेम से, उत्तम बना प्रदेश।गुण्डे […]
— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–कैसा यह भगवान् है, चोर-चमारी भक्ति।मन्दिर में मूरत दिखे, उड़न-छू हुई शक्ति।।दो–पट्टी बाँधे आँख में, देश जगाता चोर।भक्त माल सब ले गये, कहीं नहीं अब शोर।।तीन–अजब-ग़ज़ब के लोग हैं, शर्म-हया […]
— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–जपो नमो-नमो माला, लिये कटोरा हाथ।कंगाली में देश है, दिखे न कोई साथ।।दो–देश की शिक्षा चोर है, चहुँ दिशि दिखें दलाल।रोज़गार की चाह में, उजले होते बाल।।तीन–देश विपक्षी ‘कोमा’ में, […]
चिन्तन : पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, ई-पोथी पढ़ि जिये। बालपोथी (कक्षा एक की पुस्तक) से आरंभ शिक्षा ई -पोथी ने क्या ले लिया,चमत्कार हो गया। बस्ते बच्चों या लेखपालों को लादने से मुक्ति मिली। […]
— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय (भोजपूरी के हड़ाह लिक्खाड़), परियागराज भोजपूरी ‘चिनियाबादाम’ न हवे ए बाबू कि अँगुठवा दबाई के फोरि देहला आ मुँहवाँ में ढुकाइ लेहल। जेकरा फराकी ठोकला के बदिया……धोवे के सहूर ना […]
— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ताँत के बजते ही राग की अनुभूति होने लगती है। इसे रेखांकित करता है, सत्य और मिथ्या का मंच— ‘मुक्त मीडिया’ अर्थात् ‘सोशल मीडिया’। अनौचित्य की स्थापना करते हुए जब […]
— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मुझे ऐसा कोई भी व्यक्ति पसन्द नहीं है, जो कहता कुछ हो और करता कुछ हो। ऐसों से मैं दूरी बना लेता हूँ। अधिकतर ‘लिक्खाड़’ और ‘वाचाल’ लोग ‘महिला- स्वातन्त्र्य’ […]
● ख़ुदग़रज हँसी बनाम ख़ुद्दार तबस्सुम सच, हँसी कितनी हसीन होती है और गुस्ताख़ भी कि आप चाहकर भी उससे अलग नहीं हो सकते। शातिर हँसी तो इंसान की फ़ित्रत का बाख़ूबी बयान करती है। […]
— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ‘मुण्डकोपनिषद्’ से लिया गया राष्ट्रीय आदर्श वाक्य ”सत्यमेव जयते” को निरस्त कर, देश के समस्त निजी, शासकीय-अर्द्ध-शासकीय कार्यालयों, प्रतिष्ठानों, साहित्यिक संस्थानों, अधिष्ठानों, परिषदों, समितियों, मण्डियों, मन्त्रालयों, न्यायालयों, संसद्, विधानमण्डल, विधान […]
— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेशक,तुम्हारे चिन्तन चुराये हुए हैं।किराये की कोख से जन्मेया फिर परखनली में उपजेतुम्हारे वे शब्द हैं,जिन्हें पक्षाघात ने जकड़ लिया है।कोई थिरकन नहीं?प्रतिक्रिया-रहित संवेदना-शून्यतुम्हारा शब्द-जगत!कबाड़ख़ाने से उठाकरलायी गयी लेखनीविकृत संसार […]
— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय नियम-क़ानून तो लोकतन्त्र को जीनेवाले हम गुनहगारों के लिए है। अब आँखें चियार करके देखिए– इनके और अनुयायियों ने कितना प्यारा आदर्श प्रस्तुत किया है। सरकारी लोग हमें सरकारी ‘सोसल […]
— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ओकर बियहवा बिदेसे में कराई दीहल जाऊ का? आपन ओनिए रहि के फरियावत रही। काहें से कि जब देख तब, ओकरा गोड़वा में शनिचरे चढ़ल रहेले। हमरा इहो लागता कि […]
— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय चाचा झगड़ू– अरे बेटवा रगड़ू! तुम्हार फटफटिया क का होइ गा? भतीजा रगड़ू– चाचा! इ बताव, तुम्हार उमर कित्ता होय? झगड़ू– अरे बेटवा साठ कै पार। रगड़ू– त एका कहा […]
—आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय चाचा झगड़ू– अरे बेटवा रगड़ू! भतीजा रगड़ू– चाचा! कई दफा बोला है, बेटा मत कहा करो। अरे! कछु लाज-सरम किहा करो। हम तुम्हार भतीजा हैं, भतीजा। भतीजा अउर बेटा मा बहुतै […]
कभी-कभी लगता है, ‘भाषा’ की कारीगरी करने की जगह ‘पान’ की दुकान खोलकर सीना तानकर बैठ जाऊँ। वहाँ रहकर भी ‘चूना’ लगाता रहूँगा। जिस क्षण निर्णय कर लूँगा, करके दिखा दूँगा; क्योंकि भाषादरिद्रता से युक्त […]
ले वो वादे गरीबी मिटा देंगे, ले वो वादे बेरोजगारी मिटा देंगे, लो वो वादे भ्रष्टाचार मिटा देंगे, हम नया हिन्दुस्तान बना देंगे । ले वो वादे कुपोषण मिटा देंगे, ले वो भारत को साक्षर […]
राजन कुमार साह ‘साहित्य’ (दरभंंगा, बिहार) चंद नेताओं से यारों होता गदहा महान है । चंद पैसो के लिए बेचता नहीं अपना ईमान है । कौन कहता है हमारे देश में महंगाई बहुत है । […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय : जुम्हूरियत को नंगी दिखाओगे कब तक? बेहयाई की सीरत दिखाओगे कब तक? जाहिल-मवाली अब दिखे हैं हर जानिब, लुच्चों को सिर पे बिठाओगे कब तक? तवाइफ़ से बढ़कर सियासत है दिखती, […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय– कैसे-कैसे बाबा अब दिखने लगे हैं, कामिनी ले बाँहों में खिलने लगे हैं। भगवा वस्त्र औ’ कलंकित मर्यादा, आश्रम में बहुरुपिये दिखने लगे हैं। कौन है साधु और शैतान भी कौन? चरित्र […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- आपने कभी विचार किया है :– भारतीय अपनी सन्तति की जन्मतिथि (जन्मदिन का प्रयोग अशुद्ध और अनुपयुक्त है।) के अवसर पर आयोजित समारोहों में जलती हुई मोमबत्तियों को क्यों बुझाते हैं? ‘केक’ […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- आज ९९ प्रतिशत गुरु कुटिल बन चुके हैं। वहीं पूर्व के गुरु, जो जीवन-मूल्यों की ‘कल’ तक रक्षा करनेे के लिए प्राण-पण से तत्पर रहते थे और अपने शिष्यवृन्द को भी चैतन्य […]
सीतांशु त्रिपाठी, जिला- सतना मध्यप्रदेश Contact no. 9399851765 बाबा एक सवाल है जो मुझे बहुत परेशान कर रहा है उसका जवाब बताओगे क्या ? मुझमें और छोटी में यह है फर्क जो उसको आज समझाओगे […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय– बातों-ही-बातों में, ‘आदर्श’ अब बँटने लगे, जनाब को देखिए, मुद्दों से अब हटने लगे! राम तो राजसिंहासन, त्याग कर आगे बढ़े, ग़ज़ब की रामभक्ति, कुर्सी से अब सटने लगे! आश्वासनबाबू की बाबूगिरी […]
दीपक श्रीवास्तव “दीपू”- सुबह-सुबह वो कुण्डी खटका रहे ना पूछने पर भी परिचय बता रहे लगता है चुनाव आ रहे … जो ना घूमते थे कभी गलियों में अब वो बच्चो को टाफियां खिला रहे […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक : तन्त्र लोक का है कहाँ, चहूँ दिशा हैं चोर। मुँह काला हो रात में, चन्दन चमके भोर।। दो : तन पाप में ख़ूब रमा, पुण्य नहीं है पास। चेहरा है […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय डोली ‘हिन्दुत्व’ औ’ ‘विकास’ की उठी, ‘न्यू इण्डिया’ के लुटेरे ‘कहार’ देखिए! ‘अच्छे दिन’ की चिड़िया फुर्र हो गयी, सौ डिग्रीवाला चुनावी बुख़ार देखिए! धर्म से शून्य, पर ज्ञान बाँटने में दक्ष, […]
प्रधान संपादक :- अनूप श्रीवास्तव अतिथि संपादक:- विनोद कुमार विक्की पृष्ठ:- 56 सम्पादकीय कार्यालय:- 9,गुलिस्तां कॉलोनी लखनऊ उत्तर प्रदेश समीक्षक:- राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित” युवा व्यंग्यकार विनोद कुमार विक्की की मेहनत रंग लाई। विक्की ने अट्टहास […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेशक, तुम्हारे चिन्तन चुराये हुए हैं। किराये की कोख से जन्मे या फिर परखनली में उपजे तुम्हारे वे शब्द हैं, जिन्हें पक्षाघात ने जकड़ लिया है। कोई थिरकन नहीं? प्रतिक्रिया-रहित संवेदना-शून्य तुम्हारा […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ओकर बियहवा बिदेसे में कराई दीहल जाऊ का? आपन ओनिए रहि के फरियावत रही। काहें से कि जब देख तब, ओकरा गोड़वा में शनिचरे चढ़ल रहेले। हमरा इहो लागता कि ओ जनम […]
राघवेन्द्र कुमार “राघव”- अन्त:विचारों में उलझा न जाने कब मैं, एक अजीब सी बस्ती में आ गया । बस्ती बड़ी ही खुशनुमा और रंगीन थी । किन्तु वहां की हवा में अनजान सी उदासी […]
का हो निहारन पँड़ित! कटहर छील तार का ? अँगरेजवा भरतीयन के अइसन ‘मनसहका’ बनइलन स कि जेकरा पोंछिटो खोंसे के लूर ना आवे, उहो अब गिटिर-पिटिर ठेल ता। आव ए बकोटन चाचा! हेइजा बईठि […]
––० डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद ०— मेरा रंग दे बसन्ती चोला। संसद् का है बड़बोला, इधर सुरा, उधर सुन्दरी, भोग लगाये गोला। फगुनाहट की छायी मस्ती, ज़हर है देश में घोला। मेरा रंग दे बसन्ती चोला। […]
अमित धर्मसिंह उनकी आँखों में पानी था लाज-शर्म का, रिश्तों की लिहाज का, अपनी हालत पर शर्मिंदगी का पानी भरा था उनके रोम-रोम में। उनके दिल में छुपे दुखों के पहाड़ों से फूटते रहते थे […]
अवधेश कुमार शुक्ला (प्र. अ. जू. हा. कामीपुर) बबूल के वृक्ष पर पीली- पीली रेखावत, लटकती, झूलती, कुछ गुच्छिल, कुछ स्वतन्त्र लटकनों को देखा । देखने में आकर्षक, आलिंगन को उसी तरह मचलती लगीं, जिस […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ‘परिवारवाद’ अलापते, वे परिवारवादी हो गये, जाति-ज़हर घोलते वे, अब समाजवादी हो गये। “बहुजन हिताय” ग़ायब, ख़ुद के हित हैं साधते, पालकर अम्बेडकर भूत, वे दलितवादी हो गये। राममन्दिर बिसर गये, अब […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय इहे त भोजपूरी ह; तनी कनखी मारि के आ छिंउकी काटि के एकरा के पढ़ीं सभे, ना त गतर-गतर गुजियाये लागी आ सगरो देहिया चुनचुनाये लागी:——- बे, हो मटिलगना के का कहीं […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- साहेब! यही चुनाव है। चुनावी मौसम है, दलदल में अब पाँव हैं। हवा का रुख़ नामालूम, दो नावों में पाँव हैं।। साहेब! यही चुनाव है। हत्यारे, बलात्कारी, व्यभिचारी चहुँ ओर, धर्म, जाति, […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ”अच्छे दिन आयेंगे-अच्छे आयेंगे”—- इहे सुनाई-सुनाई के, देखाइ-देखाइ के उ तहरा के भरमवले रहे आ तब तहरा के हमार बतिया न नू बुझात रहे; तब त कनवाँ में ठेपी लगाइ के ‘नमो-नमो’ […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- गधे बेचारे सोच रहे हैं, हम तो ‘गधे-के-गधे’ रहे और जो हमसे रात-दिन प्रेरणा लेता रहा, वह तो ‘शातिर’ निकला। ऐसे में, गधों की मण्डलीे ‘जन्तर-मन्तर’ में आगामी १५ अक्तूबर को रविवार […]
राघवेन्द्र कुमार राघव- मिल जाए हमको माल किसी का, मैं हो जाऊँ मालामाल । चाहे हो वो चोरी का, या दे दे वो ससुराल । कण्डीशन लग जाए कोई, चाहें जो हो हाल । मिल […]