दादा! आर रोसोगुल्ला देबो की
मेरे एक मिर्जापुर के मित्र थे, नाम था पंकज त्रिपाठी। हैदराबाद में वह मेरे पड़ोसी थे। पंडित जी ‘खाने-पीने’ के शौकीन और थोड़े दबंग भी थे। कई बार वह मुझसे मजाक में कहते कि- “सर, […]
मेरे एक मिर्जापुर के मित्र थे, नाम था पंकज त्रिपाठी। हैदराबाद में वह मेरे पड़ोसी थे। पंडित जी ‘खाने-पीने’ के शौकीन और थोड़े दबंग भी थे। कई बार वह मुझसे मजाक में कहते कि- “सर, […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- यह सुनकर और पढ़कर बहुत आश्चर्य होता है कि एक प्रकार के मिष्टान्न को लेकर भारत के दो राज्य आपस में भिड़ गये। पहले तो इसे लेकर वैचारिक संवाद होते रहे परन्तु […]