धर्म क्या है?
धर्म क्या है? जीवन में पारस्परिक सहजीविता के आधार पर “न्यायपूर्वक” जीना ही धर्म है। धर्म जीवन को कभी दो भागों में नहीं बाँटता था। राजनीति ने जीवन को दो भागों में बाँट दिया-एक शोषक […]
धर्म क्या है? जीवन में पारस्परिक सहजीविता के आधार पर “न्यायपूर्वक” जीना ही धर्म है। धर्म जीवन को कभी दो भागों में नहीं बाँटता था। राजनीति ने जीवन को दो भागों में बाँट दिया-एक शोषक […]
जीवन में पारस्परिक सहजीविता के आधार पर “न्यायपूर्वक” जीना ही धर्म है। धर्म जीवन को कभी दो भागों में नहीं बाँटता था..राजनीति ने जीवन को दो भागों में बाँट दिया-एक शोषक और दूसरा शोषित । […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय कैसी विडम्बना है कि पहली ओर, हमारे धर्माचार्य अपने वचनामृत के अन्तर्गत ‘धर्म’ की परिभाषा करते हैं, “धारयते इति धर्म:।” अर्थात् जो धारण किया जाता है, वह ‘धर्म’ है। मनुष्य […]