ब्रिटिश हुकूमत गांधी, नेहरू से डरती थी या फिर आज़ाद, भगत, बिस्मिल, रोशन और अशफ़ाक़ से

9 अगस्त 1925 को चन्द्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में काकोरी में ट्रेन रोक कर सरकारी खजाना लूट लिया गया था। 9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ था। काकोरी कांड के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी अशफाक उल्ला खाँ व रोशन सिंह को सज़ा ए मौत दी थी शचीन्द्र नाथ सान्याल, योगेशचन्द्र चटर्जी, मुकुन्दी लाल व गोविन्दचरण कार को उम्र-कैद की सज़ा दी थी। मन्मथनाथ गुप्त को 14 वर्ष कठोर कारावास की सज़ा दी थी। सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य व विष्णुशरण दुब्लिश को 10 वर्ष कठोर कारावास की सज़ा दी थी।

भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए कांग्रेस के सबसे बड़े नेता मोहनदास करमचंद गांधी को ब्रिटिश हुकूमत ने 1 साल 10 महीने के लिए जेल में बंद किया था। और दूसरे सबसे बड़े नेता जवाहरलाल नेहरू को 2 साल 9 महीने के लिए जेल में बंद किया था। कांग्रेस के शेष अन्य छोटे बड़े नेता भी इसी तरह साल डेढ़ साल के लिए जेल में बंद किये गए थे। यहां यह भी उल्लेख आवश्यक है कि ब्रिटिश हुकूमत ने गांधी को किसी जेल के बजाय आगा खां के आलीशान महल में बंद किया था। लेकिन उसी ब्रिटिश हुकूमत से रामप्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों के मृत्युदण्ड को क्षमा करने की अपील को तत्कालीन ब्रिटिश सम्राट की तरफ से यह कहते हुए खारिज़ कर दिया गया था कि…
“राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ बड़ा ही खतरनाक और पेशेवर अपराधी है उसे यदि क्षमादान दिया गया तो वह भविष्य में इससे भी बड़ा और भयंकर काण्ड कर सकता है। उस स्थिति में बरतानिया सरकार को हिन्दुस्तान में हुकूमत करना असम्भव हो जाएगा।”
उपरोक्त तथ्य हमे इस सच से परिचित कराते हैं कि… ब्रिटिश हुकूमत को गांधी नेहरू और उनके साथी कांग्रेसी नेताओं से डर लगता था…?
….या फिर आज़ाद भगत बिस्मिल अशफ़ाक़ और उनके साथियों से डर लगता था?

पिछले 70 सालों से हर वर्ष 9 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन की याद धूमधाम से मनायी जाती रही। लेकिन काकोरी काण्ड का जिक्र भी नहीं होता। आखिर क्यों.? कहीं इसकी वजह यह तो नहीं कि ककोरी काण्ड में जिन दो सरकारी गवाहों बनारसी और बनवारी की गवाही के कारण क्रांतिकारियों को फांसी और उम्रकैद की सजाएं मिली थीं, उनमें से एक बनवारीलाल श्रीवास्तव तत्कालीन जिला कांग्रेस कमेटी का महामंत्री भी था।

-सतीश चन्द्र मिश्र जी की फेसबुक वॉल से साभार