देश के किसानों के साथ ‘समर्थन मूल्य’ दिये जाने के नाम पर केन्द्र-राज्य की सरकारें अब तक घिनौना मज़ाक़ करती आ रही हैं?

परिसंवाद-आयोजन

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

संयोजक-सूत्रधार : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


विषय : देश के किसानों के साथ ‘समर्थन मूल्य’ दिये जाने के नाम पर केन्द्र-राज्य की सरकारें अब तक घिनौना मज़ाक़ करती आ रही हैं?


आज देश के १७ राज्यों में ‘भारतीय जनता पार्टी’ और उसके सहयोगी दलों का शासन है। ऐसे में, इनकी भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है। इनके अतिरिक्त जिन राज्यों में काँग्रेसियों और उनके सहयोगी दलों का शासन है, वहाँ भी उक्त सन्दर्भ में उनकी बेहद घटिया नीति और रीति दिख रही है, जिसके कारण देश के किसानों को उनके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। देश के किसानों के साथ राज्य-सरकारों का छलावा अब सामने आ चुका है। इसके बाद भी केन्द्र-राज्य की सरकारें निर्लज्ज बनी हुई हैं।
घोर आश्चर्य है, ‘समर्थन मूल्य’ की मात्र घोषणा की जाती है परन्तु वास्तविकता कुछ और ही होती है। इस प्रकार सारा लाभ सम्बन्धित सरकारें और व्यापारी बाँट लेते हैं।
देश के मुख्य राज्य उत्तरप्रदेश में किसानों की भावना के साथ कितना क्रूर छल किया गया है, इसे हम-सभी देख चुके हैं।
मध्यप्रदेश-सरकार ने किसानों के लिए ‘भावान्तर योजना’ आरम्भ की है परन्तु सचाई यह है कि उस योजनान्तर्गत अभी तक किसानों को कोई लाभ नहीं मिला है। इन दिनों मध्यप्रदेश की मण्डियों में किसान अपनी फ़सलें लेकर जा रहे हैं और वहाँ दलालों के माध्यम से जाल बिछाये व्यापारी फ़सल का मूल्य बहुत अधिक गिरवा रहे हैं। इस कारण वे अपना खाद्यान्न ‘औने-पौने’ दामों में बेचने के लिए बाध्य कर दिये गये हैं।
ऐसे में, ‘अन्नदाता’ के रूप में जिन्हें जाना-माना जाता है, उनकी दयनीय और शोचनीय दशा बनाने के लिए प्रथम दृष्टि में केन्द्र-राज्य की सरकारें कठघरे में दिखती हैं।
इस सन्दर्भ में वर्ष २०१४ के लोकसभाचुनावों की अवधि और पश्चात् में उत्तरप्रदेश-चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए, भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता नरेन्द्र मोदी की लुभावनी घोषणाओं की असफलताएँ बहुत हद तक ज़िम्मेदार हैं।
आपका इन सारे सन्दर्भों में किस प्रकार का चिन्तन है?
ऐसी परिस्थितियों में किसानों के साथ कैसे न्याय हो सकेगा?


रविन्द्र त्रिपाठी- जागरण की बेला वाह श्रद्धेय ।

पुरुषोत्तम फौजदार- किसान, खेत और खलियान की बदहाली की ओर एक लम्बे समय से सत्ता और सत्ता के गलियारो मे बैठने वालों की नजर नहीं गयी । जिसकी वजह से देश के किसानों की हालत दिनों-दिन खराब होती चली गयी । 2014 ईस्वी आने तक काग्रेंस के घोटालों की हवा चलने लगी । इधर भाजपा और उसके सहयोगी इस हवा को और हवा देकर आंधी बनाने के लिये लोकलुभावन घोषणायें मंचो से बेधड़क करने लगे । जन-मन को बदलाव में लाभ होने की आशा बंधी । लेकिन सत्ता बदली पर किसान हित मे कोई ठोस योजना यह लोग भी देश को देने मे असफल रहे । अब तो हमें इनकी मंशा पर भी शक होने आने लगा है । किसान को लाभकारी मूल्य देने के लिये केन्द्र की यह वर्तमान सरकार कतई सक्रिय नहीं है।

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- सर्वथा उचित है। प्रत्येक राजनीतिक दल के नेता किसानों का आर्थिक शोषण करते आ रहे है। वर्तमान में राज्य-सरकारों की घटिया नीति और केन्द्र-सरकार का मनमानापन अब उजागर हो चुका है। ऐसा कब तक चलता रहेगा? किसानों की शोचनीय स्थिति में सकारात्मक परिवर्त्तन कैसे आयेगा?

आरती जायसवाल- अत्यन्त विचारणीय। सर! वर्तमान सरकार भी अन्याय पूर्ण नीतियों की पुनरावृत्ति कर रही है जो किसानों और जनमानस के साथ क्रूर छल सिद्ध हो रहा है। वह अपनी सफलता के मद में यह भूल गई है कि जन ने उसे ‘सही की स्थापना के लिए चुना था गलत की पुनरावृत्ति के लिए नहीं।’

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- किसानों के साथ कैसे न्याय होगा?

आरती जायसवाल- सर! किसानों को पंजीकरण करवाना अनिवार्य कर दिया गया है ताकि बिचौलियों से बचा जा सके। सभी किसानों को ऑनलाइन पंजीकरण बिना किसी हीला-हवाली के करवाना चाहिए बहुतों के पास अभीआधार नहीं है,तो कई इसे झंझट समझ रहे हैं ।

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- ‘ऑन-लाइन’ पंजीयन आसान काम है? किसानों के मार्गदर्शक कहाँ गये?
किसानों के भी कई संघटन हैं, जो बँटे हुए हैं। किसानों का शिविर लगाकर ‘ऑनलाइन’ पंजीयन करना होगा। इसमें ग्राम प्रधान, ब्लॉकप्रमुख आदिक की आवश्यकता है।

आरती जायसवाल- हाँ। सर! सरल प्रक्रिया है । आधार कार्ड, खतौनी और बैंक खाता संख्या की आवश्यकता पड़ती है । खतौनी इंटरनेट से भी प्राप्त हो जाती है। किसी भी सॉयबर कैफ़े पर 40-50 रूपये में किसान अपना पञ्जीयन करवा सकते हैं ।

जगन्नाथ शुक्ल- अन्नदाता को ताबूत का वारिस बना कर यह तन्त्र देश मजबूत कर रहा है।

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- तो क्या अन्नदाताओं के दिन बहुरेंगे? यदि हाँ तो कैसे?

जगन्नाथ शुक्ल- गुरुदेव! मेरा आशय यह है कि किसान अब केवल खुद के लिए कब्रगाह में ही जगह ढूँढे, मौजूदा तन्त्र उनके लिए कुछ नहीं करने वाला । गुरुदेव! अगर मेरे शब्दों का चयन उचित न रहा हो तो मैं आप से क्षमा चाहता हूँ।

अनीता शर्मा- सबसे ज्यादा दुखद स्थिति किसानों की है।झूठे वादे करते हैं

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- इसीलिए तो ‘सोने की चिड़िया’ जाने कहाँ फुर्र हो चुकी है और ‘घी-दूध की नदियों’ के स्रोत सूख चुके हैं।

अनीता शर्मा- जी बिलकुल सही ।