पाली नगर के सरस्वती शिशु मन्दिर इंटर कॉलेज स्कूल में वसंत पंचमी कार्यक्रम मनाया गया

राहुल वाजपेयी, पाली-


आज नगर के सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में हवन पूजन कर मां सरस्वती का प्राकट्योत्सव मनाया गया । जिसमें आचार्य आचार्या एवम भैया बहनों के द्वारा हवन में आहुति दी गयी।

भैया बहनों को संबोधित करते हुए विद्यालय के परीक्षा प्रमुख आचार्य शिवम तिवारी ने बताया कि इस वर्ष देशभर में वसंत पंचमी का त्योहार 22 जनवरी को मनाया जा रहा है। यह त्योहार हिंदू पंचांग के हिसाब से माघ मास के शुक्ल पक्ष के पांचवे दिन मनाया जाता है। मान्यता है कि वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती पृथ्वी पर प्रगट हुई थीं। माता सरस्वती ने पृथ्वी पर उदासी को खत्म कर सभी जीव-जंतुओं को वाणी दी थी। इसलिए माता सरस्वती को ज्ञान-विज्ञान, संगीत, कला और बुद्धि की देवी भी माना जाता है। उन्हीं के जन्म के उत्सव पर वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है और सरस्वती देवी की पूजा की जाती है।

वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि सृष्टि की रचना के बाद सरस्वती देवी ने सभी को वाणी दी थी। माना जाता है कि सृष्टि रचियता ब्रह्मा ने जीवों और मनुष्यों की रचना की थी, लेकिन इसके बाद भी वह ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं थे। क्योंकि पृथ्वी पर हर तरफ उदासी छाई हुई थी। तब ब्रह्मा जी ने विष्णु भगवान की अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल की कुछ बूंदे पृथ्वी पर छिड़की। ब्रह्मा जी के कमंडल से धरती पर गिरने वाली बूंदों से एक प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य चार भुजाओं वाली देवी सरस्वती का था। माता सरस्वती के एक हाथ में वीणा थी, दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। इसके अलावा बाकी अन्य हाथों में पुस्तक और माला थी।

ब्रह्मा ने चार भुजा वाली देवी सरस्वती से वीणा बजाने का अनुरोध किया। देवी के वीणा बजाने के साथ-साथ संसार के सभी जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हुई थी। सरस्वती देवी ने जीवों को वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि भी दी। इसलिए वसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है। दूसरे शब्दों में वसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा भी है। मां सरस्वती को विद्या और बुद्धि की देवी माना गया है।
देशभर में विद्यार्थी, लेखक और कलाकार सरस्वती देवी की मूर्ती के सामने पुस्तकें, कलम और वाद्ययंत्र रखकर पूजा करते हैं। लोग प्राकृतिक जल स्रोतों, बावलियों और झरनों में स्नान कर पीले वस्त्र धारण करते हैं और मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। पूजा के लिए पीले रंग के चावल, पीले लड्डू और केसर वाले दूध का इस्तेमाल किया जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार पूजा के लिए सफेद फूल, चन्दन, श्वेत वस्त्र से देवी सरस्वती जी की पूजा करना अच्छा होता है। माता सरस्वती के पूजन के लिए अष्टाक्षर मूल मंत्र “श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा” का जप करना उपयोगी होता है। वहीं रात में दो बार धूप और दीपक जलाकर 108 बार मां सरस्वती के नाम का जप करना और पूजा के बाद देवी को दण्डवत प्रणाम करना चाहिए। इस अवसर पर मुख्य रूप से शत्रुघ्न लाल, अतुल, हरिनाम, पुनीत, आशुतोष, अभिनव, ज्योति, वर्षा, गीता, सुजीत, अच्युत, अनूप, शिवम आदि आचार्य आचार्या मौजूद रहीं।