डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय (9919023870 / prithwinathpandey@gmail. com)
इतिहास से सीख न लेने पर महान् शक्तियाँ भी पराजित होती रही हैं फिर एक सामान्य व्यक्ति जब ‘बलप्रयोग’ करते हुए, अतिरेकता की ओर बढ़ता है तब उसकी बुद्धि किस समय पलटी खा जाये, अज्ञात रहता है। अकेले शकुनि ने धर्मराज कहलानेवाले ‘युधिष्ठिर’ की मति नष्ट कर दी थी और ‘निरीह,’ बनने के लिए ‘बाध्य’ कर दिया था। पिछले ७० वर्षों का इतिहास बताता है कि जिस किसी ने भी ‘लोकमानस’ की भावनाओं के साथ बलप्रयोग किया है; जिस किसी ने भी मर्यादा की वर्ज्य सीमा का अतिक्रमण किया है अथवा करने का प्रयास किया है, उसकी दुर्गति हुई है।
आज एक ऐसा लोकतन्त्रीय परिदृश्य सामने आ चुका है, जो भारतीय राजनीति के इतिहास के अध्याय में पहली बार ‘सर्वाधिक घिनौना’ अध्याय के रूप में जुड़ने की स्थिति में आ रहा है।
अटल बिहारी वाजपेयी जब देश के प्रधान मन्त्री थे तब भी ‘राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन’ था, किन्तु तब अटल जी ने ‘राष्ट्रीय सरकार’ गठन करने की इच्छा व्यक्त की थी; अधिकतर विपक्षी दल उनसे सहमत भी थे; वे सबको विश्वास में लेकर कोई निर्णय करते थे; उनकी कार्यशैली में पारदर्शिता थी; उनका कार्य काल साम्प्रदायिक सद्भावना से ओत-प्रोत था।
व्यामोह की स्थिति है कि पिछले तीन वर्षों में नरेन्द्र दामोदर मोदी की आधारमूलक कोई उपलब्धि दृष्टिगत नहीं होती। आज जो हमें देश की ‘विदेश और रक्षानीति’ दिख रही है, वह कई दशकों के प्रयासों का परिणाम है, न कि मात्र तीन वर्षों के नरेन्द्र मोदी के कार्यों का।
पिछले तीन वर्षों में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में उनके लोग ‘हिन्दुत्व’, ‘गो’, ‘मुसलमान’, दलित’, ‘मन्दिर’— इन्हीं विषयों पर सिमट कर रह गये हैं और यही उनका ‘राजनीतिक भविष्य’ निर्धारित करेंगे। डराकर-धमकाकर, अधिनायक का अतिरेकी रूप दिखाकर , लोकतन्त्र की कोई राजनीति आज तक नहीं कर सका है। श्रीमती इन्दिरा गांधी-जैसी नेत्री का चामत्कारिक प्रभाव को भी मतदाताओं ने बिखेर कर रख दिया था। और भी कई उलट-फेर कर देश के मतदाताओं ने कर दिखाये हैं। ऐसे में, ‘राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन’ को बाहर का रास्ता दिखाने से देश के मतदाता चूकेंगे नहीं।
प्रश्न उठता है, नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश के नागरिकों के किन हितों का पोषण हो रहा है? स्वास्थ्य, आहार, शिक्षा तथा नियोजन के क्षेत्रों में सरकार चलानेवालों ने क्या किया है? अपने आश्वासनों और घोषणाओं में से कोई भी ऐसा विषय जिसे नरेन्द्र मोदी ने पूर्ण किया हो? जिन विषयों को लेकर वे सत्तासम्राट् बने हैं, उन सारे विषयों को विस्मृत कर गये हैं? महँगाई देश की जनता की कमर तोड़ रही है, परन्तु देश का शासक ‘किंकर्त्तव्यविमूढ़’ बना हुआ है?..!
सच तो यह है कि ‘नरेन्द्र दामोदर मोदी’ के चेहरे और नाम से देश की जनता का अब मोहभंग होना आरम्भ हो चुका है।
देश के विपक्षी दलों को एकजुटता का परिचय देना होगा; वहीं देश के सुशिक्षितों का वह वर्ग, जो देश की राजनीति को स्वस्थ दिशा देने के प्रति जागरूक हैं, आगे आना होगा। इसके लिए अभी से जनमानस की कठिनाइयों, अभावों तथा अन्य अनियमितताओं के साथ स्वयं को जोड़ना होगा।