भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी! देश की जनता को आपका उत्तर चाहिए

बार-बार धिक्कार है, 'देश के नेतृत्व' को!

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय (यायावर भाषक-संख्या : ९९१९०२३८७०, prithwinathpandey@gmail.com)


याद कीजिए, नरेन्द्र मोदी! देश में ‘संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन’ (यू०पी०ए०) का शासन था और आपका दल प्रतिपक्षी हुआ करता था तब लोकसभा-चुनाव के समय जनसभा को सम्बोधित करते हुए, आप ही गर्जना किया करते थे— ये सरकार (यू०पी०ए०) निकम्मी है; हाथ-पर-हाथ धरे बैठी हुई है। मित्रों! मेरी सरकार होती तो यदि एक सैनिक की गर्दन पाकिस्तान काटता तो मैं दस पाकिस्तानी सैनिकों की गरदन काट कर लाता |
अब आप अप्रत्याशित बहुमत के साथ शासन चला रहे हैं और आपके ही शासन-काल में अब तक सैकड़ों भारतीय सैनिकों की हत्या पाकिस्तानी सैनिक कर\करा चुके हैं और आप हाथ-पर-हाथ धरे बैठे हुए हैं?
कहाँ गयी आपकी मर्दानगी मोदी जी !..? शर्म है! लानत है! कश्मीर में हमारे सैनिक आये-दिन मारे जा रहे हैं और आप लोग ‘शहादत’ का नाम देकर फूल-माला चढ़ा कर, अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं? राजनीति का यह घिनौना चरित्र पूरे देश की भावना को कब तक छलता रहेगा? कब तक मारे जाते रहेंगे, हमारे राष्ट्र-प्रहरी?
वर्ष २०१९ में पुन: सत्तासीन होने के लिए देश की शान्ति-सुरक्षा, समृद्धि आदिक की उपेक्षा करते हुए, आप लोग कब तक वेश्या से भी बदतर ‘राजनीति’ को गले लगाते हुए, जनसामान्य का मानसिक, भावनात्मक तथा आर्थिक दोहन कर, ‘पराश्रित’ बनाकर ‘अपना उल्लू’ सीधा करते रहेंगे?
काश, प्रधानमन्त्री, गृहमन्त्री, रक्षामन्त्री, वित्त-वाणिज्यमन्त्री आदिक के परिवार के सदस्यों को कथित पाकिस्तानी आतंकी मारे होते… तब सैनिकों के परिवार का दर्द क्या और कैसा होता है, इसका अनुभव आप सबको अवश्य होता।
देश की सामाजिक समरसता का गला घोंटनेवालो! जब से आप लोग सत्ता में आये हैं तबसे समाज को विषाक्त करते हुए, अपने ‘दोहरे’ चरित्र का ‘खुले साँड़’ की तरह से परिचय देते आ रहे हैं। आश्चर्य! लोकतन्त्र को जिस तरह से रौंदकर ‘अधिनायक तन्त्र’ की ओर आप लोग बढ़ रहे हैं, वह मार्ग आप लोग के ‘पराभव की पटकथा’ भी लिखता जा रहा है।
देश की आर्थिक व्यवस्था आज की तारीख़ में रुग्ण हो चुकी है। देशवासियों की बचत कहाँ से और कैसे हो पा रही है, ‘मोदी-शाह-जेटली’ की गिद्धदृष्टि इधर ही लगी रहती है परन्तु इस सत्य को समझते हुए भी आँखें हटा लेते हैं कि देश की आर्थिक उन्नति तभी सम्भव है जब देशवासी समृद्ध और सम्पन्न हो क्योंकि आप लोग देश के लिए नहीं, अपने लिए जी रहे हैं!
स्वास्थ्य-शिक्षा अपनी जर्जर अवस्था में है। यही कारण है कि देश की औसत जनता चारों ओर से सत्ता के कोड़े खा रही है और निर्लज्ज सत्ताधारी ‘चैन की वंशी’ बजा रहे हैं।
पिछले माह बाढ़ से देश का आधा भाग जलमग्न था परन्तु प्रधान मन्त्री की संवेदना मृतप्राय दिखती रही। गुजरात में जब प्रलयकारी प्राकृतिक परिदृश्य उपस्थित था और वहाँ के लोग “त्राहि माम्-त्राहि माम्” पुकार रहे थे तब न देश का प्रधान मन्त्री दिखा, न अमित शाह का कोई अता-पता था और न ही अरुण जेटली को होश था।।
हाँ, उन्हीं दिनों जब गुजरात में राज्यसभा के लिए तीन सीटों पर चुनाव होनेवाले थे तब वहाँ सब प्राण-प्रण से अपनी मौजूदगी दर्ज़ करा रहे थे। उसके बाद भी ‘आर्त्त स्वर’ में प्राणरक्षा के लिए पुकार रहे वहाँ के लोग की कर्णबेधी आवाज़ को सबके-सब अनसुना कर रहे थे।
इतनी संवेदनहीनता के बाद भी आज जो लोग ‘नमो-नमो’ और ‘मोदी-मोदी’ का माला जप रहे हैं, उन्हें स्वयं को ‘भारतवासी’ कहने का अधिकार नहीं है।
नरेन्द्र मोदी जी! कुछ भी लज्जा बची हो; शील-संस्कार हो तो आत्म परीक्षण कीजिए।