

(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-
देश की जिस विदेशनीति पर एक वर्ग-विशेष गर्व कर रहा है, वह इस विषय पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से बचता आ रहा है कि पाकिस्तान भारत की हर नीति को ध्वस्त करता आ रहा है और हमारे वीर जवानों की नृशंस हत्याएँ की जा रही हैं, वहीं “एक के बदले ग्यारह सिर लाऊँगा” कहनेवाला लोकतन्त्र का ‘प्रधान जनसेवक’ कहाँ सो गया है?
देश के गुप्तचर-संघटन कर्त्तव्यविहीन देखे जा रहे हैं! पिछले चार दिनों के भीतर हमारे १० सैनिक मारे जा चुके हैं। आख़िर पाकिस्तानी आतंकियों को यह सूचना कौन दे रहा है : कहाँ-कहाँ हमारे सैनिक तैनात हैं? किस रास्ते से होकर भारतीय जवानों की चौकियों और प्रशिक्षण-शिविरों तक कैसे पहुँचा जा सकता है?
लज्जा की बात है, देश के प्रधान मन्त्री के पास हमारे बलिदानी सैनिकों के प्रति संवेदना व्यक्त करने के लिए अवकाश तक नहीं है; मृतक सैनिकों के बिलखते परिवारों को सान्त्वना देने के लिए हृदयहारिता और संवेदनशीलता तक नहीं है। सैनिकों की लगातार हत्याएँ की जाती रही हैं परन्तु ‘शहीद’ और ‘शहादत’ के नाम पर हमारे स्वर्गीय सैनिकों का महिमामण्डन कर, सरकार चलानेवाले अपनी संवेदनाविहीन घृणित कर्त्तव्य की इतिश्री करते आ रहे हैं, जबकि ‘रोड-शो’ और तरह-तरह के उद्घाटन करने के लिए प्रधान मन्त्री के पास भरपूर अवकाश रहता है।
वास्तव में, आज देश की आन्तरिक और बाह्य स्थितियाँ शोचनीय हैं परन्तु ‘राष्ट्रीयता’ को परे रखकर, ‘सत्ता’ की राजनीति करनेवालों की मनोवृत्ति अत्यन्त राष्ट्रघातक रूप में दिख रही है। देश का आर्थिक तन्त्र बहुत ही असन्तुलित दिख रहा है। देश की आर्थिक नीतियाँ पटरियों से खिसक चुकी हैं। यही कारण है कि वर्तमान केन्द्र-सरकार रोज़गार पैदा करने और नौकरी के अवसर उपलब्ध कराने में ‘दिव्यांग’ दिख रही है। देश का शिक्षित युवावर्ग यह निश्चित नहीं कर पा रहा है : जायें तो कहाँ जायें! देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, विदेशमन्त्री तथा प्रतिपक्षी नेता मौन बने हुए हैं। इससे अधिक भारतीय लोकतन्त्र के लिए शर्म की बात और क्या हो सकती है! कहीं ऐसा न हो कि देश में एक ऐसा आन्तरिक विस्फोट हो जाये कि शासन-संचालन करनेवालों को लेने के देने पड़ जायें।