ईरान को कमज़ोर समझने की भूल का परिणाम

विश्वासघात और बदनाम ख़ुफ़िया-एजेन्सी ‘मोसाद’ के सहारे ईरान पर हमला कर, उसके प्रमुख सैन्य-अधिकारियोँ और परमाणुविज्ञानियोँ की हत्या कराकर, इस्राइल के प्रधानमन्त्री बेंजामिन नेतान्याहू अपनी पीठ थपथपा रहे थे और विश्व-राजनीतिक मंच के विशेषज्ञ समझ चुके थे कि ईरान की उस घटना से लगभग कमर टूट चुकी है; परन्तु ईरान ने धैर्य और सुदृढ़ता के साथ अपनी कमर कसते हुए, विगत दिवस जिस तरह से इस्राइल पर एक-के-बाद हमला का सिलसिला जारी रखा, उससे उसकी कमर टूट चुकी है। ईरान जिस तरह से इस्राइल पर प्रक्षेपास्त्रोँ की वर्षा करता आ रहा है, उससे इस्राइल-द्वारा उन प्रक्षेपास्त्रोँ को नियन्त्रण करने के लिए उपयोग मे लाये जा रहे इण्टरसेप्टर पर प्रतिदिन १७ अरब ३२ करोड़ ४१ लाख ३० हज़ार रुपये (२०० मिलियन डॉलर) का व्यय हो रहा है। ज्ञातव्य है कि इस्राइल के वे इण्टरसेप्टर उसके प्रक्षेपास्त्र-रक्षाप्रणाली के महत्त्वपूर्ण अंग हैँ। यही कारण है कि उनके उपयोग करने के कारण इस्राइल की अत्यन्त आर्थिक क्षति हो चुकी है और हो रही है। ईरान ने जिस तरह से इस्राइल के प्रमुख नगरोँ को लक्ष्य करके प्रक्षेपास्त्र का प्रक्षेपण कराया है, उससे इस्राइल मे बड़ी संख्या मे भवन ध्वस्त हो गये हैँ। इतना ही नहीँ, युद्ध मे प्रयुक्त युद्धक विमान, गोला-बारूद, लॉजिस्टिक सपोर्ट सिस्टम के इस्तेमाल किये जाने से उसकी अतिरिक्त धनराशि का व्यय भी हो रहा है।

ज्ञातव्य है कि सबसे पहले इस्राइल ने ईरान के परमाणु-स्थल ‘अरक’ पर आक्रमण किया था, जिसके प्रतिशोधस्वरूप ईरान ने प्रक्षेपास्त्रोँ और द्रोण से सटीक जवाब दिया। उसने इस्राइल के बीरशेबा के सोरोको-स्थित चिकित्सालय-भवन और कई अन्य महत्त्वपूर्ण जगहोँ को विनष्ट कर, भीषण विनाश का संकेत कर दिया है। इतना ही नहीँ, उसने इस्राइल के तेल अवीव के रमतगन-क्षेत्र के स्टॉक एक्सचेंज को उड़ा दिया है। इसके अलावा वहाँ के रिहायशी क्षेत्रोँ मे भी भयंकर हमलाकर हज़ारोँ नागरिकोँ की हत्या कर डाली है, जिसे इस्राइल स्वीकार नहीँ कर रहा है। ऐसा भी नहीँ कि इस्राइल चुप बैठा है, वह भी अपनी रणनीति के अन्तर्गत ईरान को जवाब दे रहा है, जो नाकाफ़ी है।

इससे इंकार नहीँ किया जा सकता कि इस समय इस्राइल के पास विश्व की बेहतरीन वायुरक्षा-प्रणाली है; लेकिन विचारणीय स्थिति यह है कि उसके पास सीमित संख्या मे प्रक्षेपास्त्रोँ को रोकने के लिए रक्षाप्रणाली (इण्टरसेप्टर) हैँ। ईरान के पास कितनी संख्या मे लम्बी दूरी तक प्रहार करनेवाले प्रक्षेपास्त्र हैँ, इसे उसके अलावा कोई नहीँ जानता। दोनो देश अपनी-अपनी रणनीति के अन्तर्गत आक्रमण, रक्षा-प्रतिरक्षा के दाँव चल रहे हैँ। यदि संयुक्त राज्य अमेरिका भी इस्राइल के साथ हो जाये तो भी ईरान को परास्त कर पाना, जितना समझा जा रहा है, आसान नहीँ है। ऐसा इसलिए कि ईरान के पास प्रक्षेपास्त्र का महाभण्डार है, जिसे समाप्त करना आसान नहीँ है। हमे समझना होगा कि ईरान ने पिछले एक सप्ताह के युद्ध मे अपने प्रक्षेपास्त्रोँ के प्रथम चरण का ही उपयोग किया है; द्वितीय चरण के उपयोग के लिए उसने अपने शस्त्रास्त्रोँ को सुरक्षित रखे हैँ। उसने विगत सात दिनो के युद्ध मे अभी तक हाइपरसोनिक प्रक्षेपास्त्र ‘फ़तह–२’, ‘बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र ‘खोर्रमशहर’ और आत्मघाती द्रोण ‘अरश’ का उपयोग नहीँ किया है। ग़ौर करने-लायक़ है कि ‘अरश’ २,००० कि० मी० तक उड़ान भरने मे समर्थ है। जैसाकि खोर्रमशहर के नाम से ज्ञात होता है कि उसका नामकरण किसी शहर के नाम पर किया गया है। बेशक, वह ईरान के एक शहर का ही नाम है। उस प्रक्षेपास्त्र की गति ९,८७८ से १९,७५६ किलोमीटर प्रतिघण्टा है। वह अपने साथ १,८०० किलोग्राम का हथियार रख सकता है। उस प्रक्षेपास्त्र को ‘ट्रक लांचर’ से प्रक्षेपित किया जाता है, जिसकी विशेषता है कि उसे कहीँ से भी प्रक्षेपित करने की सुविधा प्राप्त है। ईरान के खोर्रमशहर प्रक्षेपास्त्र की विशेषता है कि उसे न तो इस्राइल की रक्षाप्रणाली रोक सकेगी और न ही संयुक्त राज्य अमेरिका की सहायता से उसपर नियन्त्रण किया जा सकेगा। उसे ईरान के सीमाक्षेत्र से इस्राइल के किसी नगर पर प्रक्षेपित कर, ध्वस्त किया जा सकता है। इसी प्रक्षेपास्त्र के बल पर ईरान संयुक्त राज्य अमेरिका की धमकी को नज़रअन्दाज़ करता आ रहा है।

ईरान के पास प्रक्षेपास्त्रोँ का चौथा प्रकार भी है, जिसे ‘खीबर’ नाम दिया गया है। वह प्रक्षेपास्त्र ‘मल्टीपिल वारहेड’ से युक्त है, जिसके कारण ईरान अपने एक ही प्रक्षेपास्त्र से इस्राइल पर कई निशाने साध सकता था। स्मरणीय है कि ‘खीबर’ वही प्रक्षेपास्त्र है, जिसे वर्ष २०२४ मे सामरिक मंच पर प्रस्तुत करते समय ‘शान्ति का प्रतीक’ कहा गया था।

उपर्युक्त युद्ध की भीषणता को समझते हुए, वैश्विक मंच पर खलबलाहट शुरू हो चुकी है। इस्राइल का गुप्त तरीक़े से साथ दे रहे डॉनल्ड (डोनाल्ड) जॉन ट्रम्प ने अपनी चुप्पी अभी तोड़ी नहीँ है। उन्हेँ अभी तन्द्रा मे बड़बड़ाते हुए सुना जा सकता है। फ़िलहाल, ह्वाइट हाउस की सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट ने ट्रम्प का संदेश सम्प्रेषित करते हुए बताया है कि इस बात की सम्भावना है कि ईरान के साथ निकट भविष्य मे वार्त्ता हो सकती है और नहीँ भी। इसी दृष्टि से आगामी दो सप्ताह मे ट्रम्प कोई निर्णय करेँगे। ट्रम्प ने कई तरह की बयानबाज़ी की है। वे यह भी कह चुके हैँ– मुझे मालूम है कि ईरान के प्रमुख नेता अली होसैनी खामेनेई कहाँ छिपे हुए हैँ; उन्हेँ हमारे लिए मार डालना बहुत आसान है। ट्रम्प की बद्ज़बानी का ही प्रभाव और परिणाम है कि रूस ने भी अपना रुख़ बदल लिया है। रूसी राष्ट्रपति ने सुस्पष्ट शब्दोँ मे कह दिया है– संयुक्त राज्य अमेरिका ईरान पर आक्रमण न करे, वरना एटमी तबाही निश्चित है। उन्होँने ट्रम्प को उस युद्ध से दूर रहने की सलाह भी दे डाली है। रूसी विदेशमन्त्री सर्गेई रयाबकोव ने कहा है कि वे हमले अन्तरराष्ट्रीय अधिनियम का घोर उल्लंघन हैँ, जो मध्य-पूर्व मे तनाव को बढ़ा रहे हैँ। यहाँ हमे जानना होगा कि रूस ईरान का एक प्रमुख सैन्य आर्थिक सहयोगी देश है। उसने ईरान को ‘एस– ३००’ प्रक्षेपास्त्ररक्षा- प्रणाली और अन्य सैन्य-प्रौद्योगिकी उपलब्ध करायी हैँ। व्लादिमीर पुतिन ने युद्धरत दोनो देशोँ से मिलबैठकर वैवादिक संघर्ष को समाप्त करने के लिए कहा है। रूस को विशेष चिन्ता इसलिए है कि यदि इस्राइल-ईरान संघर्ष मे ईरान मे सत्ता-परिवर्तन होता है तो पश्चिम-एशिया मे रूस बहुत कमज़ोर पड़ जायेगा, जिसका मतलब है, संयुक्त राज्य अमेरिका और इस्राइल का दबदबा होना। सीरिया मे असद का तख़्तापलट के बाद से ईरान रूस के लिए महत्त्व का विषय बन चुका है। यही कारण है कि रूस ईरान मे संयुक्त राज्य अमेरिका के किसी सैन्य-दुस्साहस के विरुद्ध खड़ा दिखता है। इस मुआमले मे रूस की ओर से मध्यस्थता करने की भी बात कही गयी है। पाकिस्तान के विदेश-मन्त्रालय के प्रवक्ता शफ़कत अली ख़ाँ ने इस्राइल की ओर से ईरान पर किये जानेवाले हमलोँ की निन्दा करते हुए, ईरान को पाकिस्तान का समर्थन करने की बात की है। उनका तर्क है कि ईरान को अपनी सुरक्षा के लिए उपाय करने का अधिकार है, जो उसे संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अन्तर्गत प्राप्त है। चीन भी अपना हित देख रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग ने कहा है– दोनो पक्ष संयम बरतेँ और तनाव को कम करेँ। उन्होँने दोनो देशोँ से युद्ध समाप्त करने के लिए आग्रह किया है। ज्ञातव्य है कि चीन ईरान का सबसे बड़ा तेल-आयातक देश है और दोनो के मध्य आर्थिक स्थिति सुदृढ़ है। चीन ने संयुक्त राज्य अमेरिकी प्रतिबन्धोँ के बावुजूद ईरान का वित्तीय और प्रौद्योगिकी समर्थन किया है। ईरान भी समझता है कि यदि उपर्युक्त युद्ध मे संयुक्त राज्य अमेरिका इस्राइल के पक्ष मे खड़ा दिखता है तो चीन उसके समर्थन मे खड़ा हो सकता है। उधर, इस विषय पर पुतिन और जिनपिंग की एक लम्बी वार्त्ता भी हुई है। दोनो ही नेताओँ की युद्ध रोकने पर सहमति भी बनी है। उत्तर-कोरिया ने भी अपनी चुप्पी तोड़ दी है, फिर उसकी और संयुक्त राज्य अमेरिका की शत्रुता विश्वविश्रुत है। उसने इस्राइल के आक्रमण को ‘मानवता के विरुद्ध अपराध’ घोषित कर दिया है और इस्राइल के लिए ‘शान्ति के लिए कैन्सर’ कहा है। यह भी जानने-योग्य है कि उत्तर-कोरिया ने ईरान को बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र और अन्य हार्डवेअर उपलब्ध कराये हैँ, जिसके कारण दोनो देश के मध्य सुमधुर सम्बन्ध बने हुए हैँ।

भारत अभी मौन है, जबकि युद्ध से उसका भी हित प्रभावित हो रहा है। इसके कारण अन्तरराष्ट्रीय तेल-आपूर्ति की सर्वाधिक संवेदनशील कड़ी ‘होर्मुज जलडमरूमध्य’ संकट की स्थिति मे है। इससे इसका प्रत्यक्षत: प्रभाव भारत की महँगाई, कच्चे तेल के मूल्य और विदेश-व्यापार पर पड़ सकता है। वह एक प्रकार से भारत के घरेलू बजट और उपभोक्ता की ज़ेब पर सीधे डक़ैती है। ‘इन्वेस्टमेण्ट इन्फॉर्मेशन ऐण्ड क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी ऑफ़ इण्डिया लिमिटेड’ के अनुसार, यदि होर्मुज से तेल और गैस की आपूर्ति बाधित हुई तो भारत को १३ से १४ अरब डॉलर तक की अतिरिक्त धनराशि की क्षति झेलनी पड़ सकती है।

निष्कर्षत:, विश्व के प्रमुख राष्ट्राध्यक्ष निहित गर्हित स्वार्थ को एक किनारे कर, विश्वयुद्ध की ओर बढ़ते उपर्युक्त देशोँ के बीच किये जा रहे युद्ध को समाप्त कराने की पहल करेँ, जिससे मानव-सभ्यता सुरक्षित रहे।

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