त्वरित टिप्पणी
— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
हमारे देश के ग़द्दार नेताओं ने ‘हिन्दू-मुसलमान’, ‘मन्दिर-मस्जिद’, ‘जयश्रीराम-भगवा’, ‘भारत-पाकिस्तान’ आदिक के सब्ज़बाग़ दिखाकर देश की धर्मान्ध जनता को भटकाने और उन्हें छलने के अलावा कुछ नहीं किया है। उनकी देशवासियों के स्वस्थ पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा के विकास के प्रति कभी चिन्ता नहीं रही; कुर्सी बनी रहे, देशवासी जायें भाड़ में।
पिछले छ: सालों से वर्तमान सरकार को चलानेवाले ठीकेदार विपक्ष को येन-केन-प्रकारेण ध्वस्त कर सामन्तवाद और साम्राज्यवाद को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
आज अपना देश एक ऐसे तिराहे पर खड़ा हो चुका है, जहाँ के एक मार्ग पर खड़ा अमीर और अमीर हो चुका है। दूसरे मार्ग पर खड़ा मध्यम वर्ग पूरी तरह से पिस चुका है तथा तीसरे मार्ग पर खड़े ग़रीब की स्थिति अतीव शोचनीय हो चुकी है। आये-दिन देशवासियों को महँगाई और पापाचार के दो पाटों के बीच डालकर निर्ममतापूर्वक पीसा जा रहा है।
पिछले छ: वर्षों में इस सरकार के ठीकेदारों ने देश के महत् सन्दर्भों में जो और जितने भी निर्णय किये हैं, उनमें ‘सर्वदलीय बैठक’ की साफ़ तौर पर उपेक्षा की गयी है। सवाल है, देशहित में किये जानेवाले निर्णयों से विपक्षी दलों को परे रख सरकार के गर्हित ठीकेदार क्या सन्देश देना चाहते हैं? सरकार ऐसे नहीं चलायी जाती; यह तो सरासर सरकार की मौक़ापरस्ती है और एक प्रकार की राष्ट्रघाती निरंकुशता भी।
आज, जब चीन घुड़की दे रहा है; हमारे सैनिकों की हत्या करा रहा है तब भी तथाकथित ‘देशबाँटू’ सरकारी ठीकेदारों की आँखें खुल नहीं पा रही हैं। बेशक, अब अतिवाद का क़िला ध्वस्त होने का समय आ चुका है, जिससे देश के ‘धृतराष्ट्र’ और ‘गान्धारी’ चरित्र जीनेवाली जनता की अन्तर्दृष्टि खुल सके।
देश की बहुसंख्यक जनता को भी इन ठीकेदारों ने इतनी अफ़ीम चटा दी है कि उसकी आँखें सोती-जगती रहती हैं। ऐसे में, यदि जनक्रान्ति का आह्वान भी किया जाये तो राष्ट्रहित में कितने लोग निकल पड़ेंगे, यह विचारणीय है। इतना सुस्पष्ट है, आज देश में नेतृत्व का संकट है।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १६ जून, २०२० ईसवी)