उपर्युक्त (‘उपरोक्त’ अशुद्ध है।) शीर्षक पढ़कर आप सबको आश्चर्य होता होगा; परन्तु सत्य वही है, जिसे आपने पढ़ा है।
देश-देशान्तर मे हमारी कर्मशाला इतिहास और कीर्त्तिमान के पृष्ठोँ पर रेखांकित होती आ रही है; परन्तु वर्ष २०२४ के उत्तरार्द्ध की हमारी पाठशाला/कर्मशाला इतिहास और कीर्त्तिमान से बढ़कर है; क्योँकि हम श्रद्धा, विश्वास एवं ग्रहणशीलता के प्रति उत्कट अभिलाष का जो निदर्शन प्रस्तुत करनेवाले हैँ, वह अनन्य है।
हमारा अगला सारस्वत प्रवास सुरम्य सुषमासम्पन्न साम्राज्य उत्तराखण्ड मे होगा। उत्तराखण्ड का नाम जिह्वा पर आते ही ‘देहरादून’ का स्मरण हो आता है; वहाँ का निसर्ग स्मृति-पटल पर अंकित होने लगता है।
देहरादून का वह शैक्षिक संस्थान, जिसे देश के शीर्षस्थ संस्थानो मे से एक माना गया है, ‘वैल्हम गर्ल्स स्कूल’ है। वहाँ हमारा अगला प्रशैक्षिक प्रवास (‘पड़ाव’ का तत्सम शब्द) १८-१९ सितम्बर तक रहेगा, जहाँ हम एक सजग ‘विद्यार्थी’ के रूप मे एक-दूसरे से मिलेँगे; वार्त्ता करेँगे एवं उसी क्रम मे एक-दूसरे से सीखेँगे और एक-दूसरे को सिखायेँगे भी।
यहाँ यह उल्लेख करना अत्यावश्यक हो जाता है कि शब्दशक्ति के भी पंख होते हैँ, जो ऊर्जा और ऊष्मा से सम्पूरित होते हैँ। वह कब और कहाँ उड़ान भरते हुए पहुँच आये, उसकी गति, मति एवं रति अविदित है।
‘वैल्हम गर्ल्स स्कूल’ का नाम हमारे अवचेतन मे भी नहीँ था; परन्तु वह चेतना के धरातल पर कैसे उतर आया (यहाँ ‘गया’ अशुद्ध है।), यह चिन्तन का एक समीचीन विषय हो सकता है, जिसका हम अपनी किसी कृति मे शब्दश: उल्लेख करेँगे।
आयोजन-संदर्भ मे वहाँ की हिन्दी-विभागाध्यक्ष डॉ० नालन्दा पाण्डेय जी, जो अब मेरी ‘परमप्रिय शिष्याओँ’ मे से एक हो चुकी हैँ, से एक संक्षिप्त संवाद हुआ और हमारे पास ‘एअर-एलायंस’ वायुयान के गमनागमन (‘आवागमन’ अशुद्ध है।) का टिकट सम्प्रेषित कर दिया गया। अचानक, ‘एअर-एलायंस’ की ओर से सूचना प्राप्त हुई कि उसकी वायुयान-सेवाएँ निरस्त कर दी गयी हैँ; फिर क्या था! कुछ ही दिनो-बाद विद्यालय-प्रबन्धन की ओर से ‘इण्डिगो’ वायुयान का टिकट प्रेषित कर दिया गया था। जैसे ही प्रबन्धन को ‘इण्डिगो’ विमान-सेवा की क्रियाशीलता संदिग्ध दिखी वैसे ही उन्होँने एक रेलगाड़ी के ‘एसी-प्रथम एवं एक्ज़ीक्यूटिव श्रेणी (१-ए) का आरक्षण कराकर टिकट सम्प्रेषित कर दिया। विमान-यात्रा की दुरूहता को समझते हुए, हमने किसी उपयुक्त रेलगाड़ी-द्वारा गमन करने की इच्छा व्यक्त की थी; परन्तु विद्यालय-प्रबन्धन ने वायुयानसेवा को ही प्राथमिकता दी थी।
यह घटना-विवरण आत्मीयतासम्पूर्ण है। यह सारा क्रम-विवरण इस तथ्य का उद्घाटन करता है कि ‘वैल्हम गर्ल्स स्कूल’ की प्रधानाचार्य सम्मान्या विभा कपूर जी, वहाँ के प्रबन्धन एवं हिन्दीभाषा के प्रति श्लाघनीय गति रखनेवाली डॉ० नालन्दा पाण्डेय जी की हिन्दीभाषा के प्रति कितनी गहन निष्ठा है; आत्मीयता है और श्रद्धा भी।
मस्तिष्क पर बल देने से वह परिदृश्य भी समक्ष आने लगता है :– कभी ‘हिन्दी’ बैलगाड़ी पर बैठकर इस जगह से उस जगह की यात्रा करती थी और जहाँ कहीँ बैठा दिया जाता था; सुला दिया जाता था तथा जो कुछ खिला दिया जाता था, ग्रहण कर संतोष कर लेती थी। अब देश-काल-परिस्थिति एवं पात्र ने सारे समीकरण बदल दिये हैँ :– हिन्दी पंचसितारा होटल मे विश्राम करती है; मनचाहा स्वल्पाहार-पूर्णाहार ग्रहण करती है तथा ताल ठोँककर अपनी उपयोगिता और महत्ता को सिद्ध करती है।
‘वैल्हम गर्ल्स स्कूल’ की श्लाघ्य, स्तुत्य समर्पण, सेवासंस्कार, सदाशयता, सौजन्य तथा सारस्वत श्रद्धा का अनुभव करते ही ऐसा प्रतीत होने लगा है, मानो हमारे लिए उस विद्यास्थली की चौखट के प्रति नतमस्तक होकर उसका संस्पर्श पाना, किसी ‘नोबेल एवार्ड’ से बढ़कर है और वास्तविकता भी यही है।
हम उपर्युक्त (‘उपरोक्त’ अशुद्ध है।) ऐतिहासिक एवं अतीव समृद्ध शैक्षिक संस्थान के ‘ऑडियो-विजुअल सेण्टर’ मे आयोजित की जानेवाली
एकदिवसीय राष्ट्रीय कर्मशाला मे शुद्धाशुद्ध शब्दोँ का सकारण बोध करेँगे, जहाँ हम उत्तराखण्ड, दिल्ली, हिमाचलप्रदेश आदिक राज्योँ के कई निजी एवं शासकीय शैक्षिक संस्थानो, डाइट (‘डाएट’ अशुद्ध है।) तथा सीमेट से पधारे हुए, विद्यार्थियोँ के भविष्य-निर्धारक कुशल पारखियोँ के साथ भाषिक विमर्श करेँगे। ज्ञातव्य है कि वह हमारी ऐसी प्रथम कर्मशाला/पाठशाला होगी, जिसमे समस्त अध्यापक-अध्यापिका विद्यार्थी के रूप मे लक्षित होँगे।
‘सर्जनात्मक पठन-पाठन-वाचन एवं लेखन-कला मे हिन्दी का महत्त्व’ विषय के अन्तर्गत लगभग पाँच घण्टे की हम सबकी पाठशाला रहेगी, जिसमे बड़ी संख्या मे समुपस्थित निजी एवं शासकीय संस्थानो के अध्यापक- अध्यापिकावर्ग के साथ हम ‘अध्यापन करने से पूर्व आकर्षक शैक्षिक परिवेश’, ‘शब्दोँ का मानकीकरण’, ‘उच्चारण और लेखन-स्तर पर शुद्ध भाषा-प्रयोग’, ‘शुद्धाशुद्ध शब्दोँ की पहचान’, ‘शुद्ध वाक्य-गठन’, ‘वाद-विवाद, आशु सम्भाषण, सम्भाषण, कविता-पाठ, निबन्ध-लेखन इत्यादिक प्रतियोगिताओँ के प्रति तत्परता’ ‘रचनात्मक कौशल का विकास’, ‘उच्चारण और लेखन-स्तर पर शुद्ध भाषा-प्रयोग’, ‘शुद्धाशुद्ध शब्दोँ की परख’, ‘शुद्ध वाक्य-गठन’, ‘शब्द-सामर्थ्य का विस्तार’, ‘अनुस्वार और अनुनासिक-प्रयोग’, ‘पठित-अपठित पद्य और गद्य-अवतरण का शीर्षक-चयन’, ‘स्थूलांकित शब्द-विशेष और वाक्यांशोँ के अर्थ तथा उनकी प्रभावकारी व्याख्या’, ‘विरामचिह्नो की उपयोगिता-महत्ता’, ‘अर्थ, भावार्थ, व्याख्या-लेखन’, ‘ सार और सारांशलेखन’, ‘संक्षिप्त लेखन’, ‘पत्र-लेखन’, ‘सूक्ति-व्याख्या’ आदिक को समझेँगे और एक-दूसरे को बोध भी करायेँगे।
हम प्रश्न-प्रतिप्रश्न करेँगे और उत्तर-प्रत्युत्तर प्राप्त करेँगे और देँगे भी। हम एक-दूसरे की जिज्ञासा का प्रशमन करेँगे तथा व्यावहारिक मार्गदर्शन भी।
१९ सितम्बर को उस विद्यामन्दिर का बहुविध दर्शन करेँगे, जिसके सभागार हमे भाषिक संरचना को समझने का एक अमूल्य अवसर प्राप्त होगा। उस सांस्कारिक शिक्षालय के सम्मानित अध्यापक-अध्यापिकावृन्द के साथ संवाद के कतिपय क्षण बहुमूल्य भी हो सकते हैँ; संगृहीत (‘संग्रहित’, ‘संग्रहीत’, ‘संगृहित’ अशुद्ध हैँ।) कर लेँगे; सँजो लेँगे।
कालान्तर मे, नयनाभिराम नैसर्गिक स्थलोँ से साक्षात् करेँगे और उनकी ऐतिहासिक विरासत की प्रतिष्ठापना से अवगत होँगे। सुरम्य प्राकृतिक उपादानो को निहारेँगे; ग्रहणीय विषयवस्तु को टटोलेँगे एवं उनके निहितार्थ को स्मृति-पटल पर टाँक लेँगे, सदा के लिए।
२० सितम्बर को न चाहते हुए भी ‘जॉली ग्राण्ट वायुयानकेन्द्र’, देहरादून के लिए प्रस्थान कर जायेँगे, जो पहले दिल्ली, फिर वहाँ से प्रयागराज के लिए घण्टोँ-बाद एक-दूसरा वायुयान उड़ान भरेगा, जो समय का अपव्यय कराता रहेगा और मनसा-काया कष्टकारक भी होगा। इसके साथ ही हमारे जैसे उन्मुक्त विचारक के लिए वायुयान का अनुशासनातिरेक खलता रहेगा।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १५ सितम्बर, २०२४ ईसवी।)