नई खुशी, उल्लास, उमंग और नई ऊर्जा लेकर आपके द्वार आई है बसन्त पंचमी

राजेश कुमार शर्मा “पुरोहित”-

ऋतुराज बसन्त का शुभ आगमन हो गया। मौसम खुशगवार हो गया। खेतों में इन दिनों पीली पीली सरसौं लहलहा रही है। पेड़ पौधों में फिर से नई कलियाँ खिल उठी है। हर तरफ सकारात्मक माहौल दिखने लगा है। इसके साथ ही हर तरफ मां सरस्वती के पूजन की तैयारियां चल रही है। आज से मथुरा में रंगोत्सव शुरू हो जाता है। बसन्त पंचमी के दिन कवि लेखक विद्यार्थी सभी पढ़ने लिखने वाले माँ शारदे की कार्यालयों में अपने घरों में मां शारदे की विधिवत पूजा करते हैं। भगवान कृष्ण के धाम में भक्त फूलों की होली खेलते हैं। इस बार तो बसन्त पंचमी ओर महत्वपूर्ण हो गई है। कारण आज तीर्थराज प्रयाग में शाही स्नान भी है। नए साल की बसन्त पंचमी नई खुशी उल्लास उमंग नई ऊर्जा लेकर आपके द्वार आई है। बागों में बहार है आई भँवरों की गुंजन संग लाई। फूलों से खुशबू लेकर महकती हवा जो आई।। सर्दी तो दबे पांव भागी लो अब ऋतु बसंत की आई।। 

नभ में उड़ती इन्द्रधनुषी पतंगे। कितनी सुन्दर लग रही है। मीठा मौसम मीठी उमंग दिल मे छाई। मौसम की नजाकत है। हसरतों ने फिर पुकारा है। बसन्त का शुभ आगमन कर रहा इशारा है। साक्षात मदन भी हार गया प्रकृति की सुंदरता देख।

बसन्त पंचमी को श्री पंचमी भी कहते हैं। यह एक हिन्दू त्योहार है। इस दिन भारत मे ही नहीं बांग्लादेश नेपाल और कई राष्ट्रों में इसे बड़े उल्लास से मनायी जाती है। ब्रह्मा जी ने माँ सरस्वती जी की संरचना की थी।एक ऐसी देवी जिनके चार हाथ थे एक हाथ मे वीणा दूसरे में पुस्तक तीसरे में माला ओर चौथा हाथ वर मुद्रा में था। ब्रह्मा जी ने इस देवो से वीणा बजाने को कहा जिसके बाद संसार मे मौजूद हर चीज़ में स्वर आ गतग। इसलिए ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी नाम दिया। इसी कारण से मां सरस्वती को ज्ञान संगीत कला की देवी कहा जाट है। बसन्त पंचमी के दिन इस देवी की खास पूजा होती है। ॐ श्री सरस्वत्यै नमः स्वाहा बोलकर हवन करना चाहिए। माता को मालपुए व खीर का भोग लगाया जाता है। माता को पीले रंग के पुष्प चढ़ाना चाहिए। सफेद वस्त्र पहनाएं। आचमन ओर स्नान जरूर कराएं। सबसे पहले कलश स्थापित करना चाहिए।

प्रकृति खिली खिली सजी धजी नज़र आने लगी। फूलों पर बहार आ गई। खेतों में सरसों का सोना चमकने लगा। जो ओर गेंहूँ की बलितं खिलने लगी। आमों के पेड़ों पर बोर आ गए। हर तरफ रंग बिरंगी तितलियाँ मंडराने लगी। भ्रमर गुंजन करने लगे। माघ माह का पंचम दिवस आ गया। विष्णु और कामदेव की पूजा होती है। बसन्त आते ही प्रकृति का रोम रोम खिल उठा। पशु पक्षी तक उल्लास में डूब गए। हर दिन नई उमंग से सूर्योदय हो रहा है। जो मानव को नई चेतना नई ऊर्जा प्रदान कर रहा है। विद्वानों के लिए बसन्त पंचमी का दिन खास है। इस दिन गीतकार संगीतकार कवि लेखक नृत्यकार सब दिन का प्रारम्भ मां सरस्वती की पूजा कर करते हैं। संगीत के उपकरणों की पूजा करते हैं। गीत संगीत की महफ़िल सजती है।

पौराणिक घटनाओं को देखे तो बसन्त पंचमी का उल्लेख त्रेतायुग में मिलता है। भगवान राम शबरी के आश्रम में बसंत पंचमी के दिन ही पहुंचे थे। आज भी जिस शिला पर भगवान राम बैठे थे उसे वनवासी पूजते हैं। बसन्त पंचमी के दिन कवि सूर्य कांत त्रिपाठी निराला का जन्म दिन भी मनाया जाता है।

ऋग्वेद में माँ सरस्वती का वर्णन मिलता है। उसमें लिखा है
"प्रणो देवी सरस्वती वजेभिवर्जनीवती धीनाम्बितरायवतु।"
यानी ये परम् चेतना है।

सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि प्रज्ञा तथा मनोवृतियों की संरक्षिका है। पुराणों में लिखा है कि भगवान श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसन्त पंचमी के दिन तुम्हारी पूजा लोग करेंगे। सरस्वती को भगवती शारदे वीणापाणि वीणावादिनी बागीश्वरी वाग्देवी आदि नामों से पुकारा जाता है। अंधकार से आलोक की ओर ले जाने वाली माता का पूजन जरूर करना चाहिए।

98,पुरोहित कुटी ,श्रीराम कॉलोनी,भवानीमंडी ,जिला झालावाड़ राजस्थान