स्वामी विवेकानन्द के विचार आज भी प्रासंगिक (लेख सन्दर्भ:- 4 जुलाई, स्मृति दिवस)

राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित”, शिक्षक एवं साहित्यकार-

भारत के युवा संत स्वामी विवेकानन्द जी वेदान्त के प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु कहे जाते हैं। स्वामी जी ने वेदान्त का देश विदेशों में प्रचार किया। अमेरिका और यूरोप में वेदान्त दर्शन को फैलाया। उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस थे। उनका कथन था “उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।

आज भी उनके विचार लाखों युवाओं के दिलों में है। विवेकानंद आज भी युवाओं के आदर्श हैं। उन्होंने कई देशों की यात्राएं की। अमेरिका इंग्लैंड यूरोप श्रीलंका में उनका जोरदार स्वागत हुआ। इनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। दर्शन अध्यात्म इतिहास सामाजिक विज्ञान कला और साहित्य सहित विषयों के वे पाठक रहे। भारतीय शास्त्रीय संगीत के शौकीन थे। वे अंग्रेजी शिक्षा के विरोधी थे उन्होंने कहा तुमको कार्य के सभी क्षेत्रों में व्यवहारिक बनना पड़ेगा। सिद्धान्तों के ढेरों ने सम्पूर्ण देश का विनाश कर दिया है। स्वामी जी विद्यार्थियों को लौकिक व पारलौकिक शिक्षा देने में विश्वास करते थे। उन्होंने कहा था “शिक्षा मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है। देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी शिक्षा अनिवार्य हो। मानवीय एवम राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से शुरू करनी चाहिए। धार्मिक शिक्षा पुस्तकें पढ़ाकर नहीं आचरण एवम संस्कारों द्वारा देनी चाहिए। शिक्षा ऐसी हो जो चरित्र का निर्माण करें। मन का विकास हो। बुद्धि विकसित हो जाये। विद्यार्थी आयमनिर्भर बने ऐसी शिक्षा की आज जरूरत है।

अमेरिका के शिकागो में स्वामी जी ने विश्व के सामने सनातन धर्म की व्याख्या की। भारत के सनातन धर्म को दुनिया को समझाया। वे कहते थे तुम्हे सब कुछ अंदर से सीखना है। आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नहीं होता है। बाहरी स्वभाव व्यक्ति के आंतरिक स्वभाव का ही बड़ा रूप होता है। ऊंची सोच रखो। दुसरो के हित मे निर्णय लो। दूसरों के दुख की फिक्र करो। इस ब्रहाण्ड की सारी शक्तियां पहले से ही हमारी है। वो हम ही है जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं। और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है। विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं। शक्ति जीवन है निर्बलता मृत्यु है।विस्तार जीवन है संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है द्वेष मृत्यु है। स्वामी जी का जीवन ही बड़ा प्रेरणा देने वाला है उनके विचार आज के समय मे बहुत उपयोगी है। राष्ट्र सेवा राष्ट्र प्रेम की आज जरूरत है देश मे। भाईचारे आपसी सदभाव की जरूरत है।

स्वामी जी प्रेरणा के अपार स्रोत थे। उनकी कही बातें व्यक्ति में ऊर्जा पैदा कर देती है। जीवन के इतने कम समय मे स्वामी जी ने न केवल भारत मे अपितु सम्पूर्ण विश्व में हिन्दुत्व की गहरी छाप छोड़ दी। शिकांगों में दिया उनका भाषण आज भी प्रासंगिक है जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की याद दिला देता है। उन्होंने यह कहा था कि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है। हम सभी को जाति धर्म के भेदभाव को भूलकर राष्ट्र के विकास की बात सोचनी होगी।

4 जुलाई 1902 को मात्र 39 वर्ष की आयु में स्वामी जी ने बेलूर में महासमाधि ले ली। वे कहते थे धर्म को एक दायरे में मानकर चलना उसके विकास को बाधित करता है। छोटी उम्र में उनका महासमाधि लेना पूरे विश्व के लिए मानवता व योग के विकास की दिशा में एक बड़ा आघात था। शिकांगों सम्मेलन के बाद तो सारा विश्व उनका अनुयायी बन गया था। महासमाधि से पूर्व स्वामी जी ने बेलूर मठ में तीन घण्टे तक योग किया। शाम 7 बजे उन्होंने सभी मौजूद लोगों से कहा कोई भी मुझे व्यवधान न पहुंचाये। रात के 9 बजकर 10 मिनट पर उनकी महासमाधि लेने की खबर फैल गई। मठकर्मी ने महासमाधि की बात कही। आज स्वामी जी शरीर से साथ नहीं लेकिन आज भी उनके विचार सम्पूर्ण विश्व को सत्कर्म व धर्म के पथ पर चला रहे हैं।

राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित”
शिक्षक एवं साहित्यकार
श्रीराम कॉलोनी भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान
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