रामधारी सिंह ‘दिनकर’ : जीवन की तेजस्विता से परिपूर्ण

आज (२३ सितम्बर) ओजस्वी कवि ‘दिनकर’ जी की जन्मतिथि है।

“सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है”

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


राष्ट्रकवि दिनकर ने हिन्दी-कविता को छायावाद की कुहेलिका से बाहर निकालकर, उसमें जीवन की तेजस्विता सम्पूरित की है तथा उसे राष्ट्र और समाज की ज्वलन्त समस्याओं के साथ दो-दो हाथ करना सिखाया है। हिन्दी की राष्ट्रीय कविता ने अभी तक जिन तीन सोपानों को पार किया है, दिनकर उनमें ‘तृतीय सोपान’ के प्रतिनिधि कवि हैं। प्रथम सोपान की राष्ट्रीयता एक दर्दभरी पुकार थी, जिसे भारतेन्दु हरिश्चन्द ने वाणी दी है। द्वितीय सोपान की राष्ट्रीयता में वर्तमान के साथ अतीत का गौरव-स्मरण है , जिसके पुरोधा मैथिलीशरण गुप्त हैं। तृतीय सोपान की राष्ट्रीयता अत्याचार, अन्याय, राजदासता, सामाजिक जड़ता आदिक के विरुद्ध का तूर्यनाद थी, जो दिनकर की ओजपूर्ण कविताओं में अभिव्यंजित हुई है।

दिनकर जी भारत के युवकों को परतन्त्रता की अर्गला तोड़ फेंकने को ललकारते हैं, जो आज अतिशय प्रासंगिक दिख रही है :---
''मेरे नगपति मेरे विशाल
ले अंगड़ाई उठ, हिले धरा, कर निज विराट स्वर में निनाद।
तू शैलराट्, हुंकार भरे, फट जाय कुहा, भागे प्रमाद।।
तू मौन त्याग कर, कर सिंहनाद, रे तपी, आज तप का न काज।
नव युग शंख ध्वनि जगा रही, तू जाग, जाग मेरे विशाल।।''

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २३ सितम्बर, २०२० ईसवी)

आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय