आदित्य त्रिपाठी-
25 सितम्बर 1916 को जन्मे पण्डित दीनदयाल उपाध्याय की आज जयन्ती है । भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे दीनदयाल जी महान चिन्तक और संगठनकर्ता थे । सनातन विचारधारा को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत कर देश को एकात्म मानववाद के रूप में प्रगतिशील विचारधारा देने वाले उपाध्याय जी अत्यन्त सरल और मृदु स्वभाव के थे । राजनीति के साथ ही उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में महारत में हासिल थी । हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में उनके लेख विभिन्न समाचार माध्यमों में प्रकाशित होते रहते थे । उन्होंने चन्द्रगुप्त नाटक केवल एक बैठक में ही लिख डाला था । उनकी विद्वता का अंदाजा इस बातसे लग जाता है कि साधारण प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा उतीर्ण कर डाली और उसे त्याग भी दिया ।
पण्डित जी का बचपन बड़ी ही कठिनाई में बीता । 7 वर्ष की बाल्यावस्था में दीनदयाल के माता – पिता इन्हें अकेला छोड़ गये । नाना चुन्नीलाल शुक्ल के घर इनका पालन – पोषण हुआ । वहीं इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की । आगे की शिक्षा उपाध्याय जी ने पिलानी, आगरा और प्रयाग में ली । नौकरी के लिए बी० एससी० बी० टी० की लेकिन उन्होंने नौकरी नहीं की । वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र जीवन से ही सक्रिय कार्यकर्ता हो गये थे । अत: कॉलेज छोड़ने के तुरन्त बाद वे आर. एस. एस. के प्रचारक बन गये । पूरी शिद्दत से वह संघ का कार्य करने लगे । जब 1951 में अखिल भारतीय जनसंघ की नींव पड़ी तब उन्हें संगठन मन्त्री बनाया गया । 1953 में उपाध्याय जी अखिल भारतीय जनसंघ के महामन्त्री बनाए गए । 15 वर्ष तक उन्होंने जन संघ को महामन्त्री के रूप में मजबूत करते रहे । दिसम्बर 1967 में कालीकट अधिवेशन में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय को अखिल भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष चुन लिया गया । लेकिन क्रूर समय को देखिए 1968 में फरवरी 11 की रात में मुगलसराय के आसपास रेलयात्रा के दौरान उनकी हत्या हो गयी । उपाध्याय जी उच्च – कोटि के दार्शनिक थे । भौतिक माया – मोह से दूर – दूर तक उनका कोई वास्ता न था ।
संस्कृति के सच्चे वाहक दीनदयाल जी के राजनैतिक दर्शन इस प्रकार समझाते हैं – “ भारत में रहनेवाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं । उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है । इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है । इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा ।”
पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के बारे में विशेष-
- शुरुआती दोनों ही परीक्षाओं मैट्रिक और इण्टरमीडिएट में गोल्ड मैडल ।
- बी० ए० कानपुर विश्वविद्यालय से ।
- सिविल सेवा परीक्षा उतीर्ण की किन्तु उसे त्याग दिया ।
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से 1937 में जुड़े ।
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को 1942 में स्वयं को दान दे दिया ।
- स्वदेश, पाञ्चजन्य और राष्ट्रधर्म जैसी पत्र – पत्रिकाएँ शुरू कीं ।
पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी की कुछ ख्याति प्राप्त कृतियां निम्न हैं-
- दो योजनाएँ ,
- राजनीतिक डायरी,
- भारतीय अर्थनीति का अवमूल्यन ,
- सम्राट चन्द्रगुप्त ,
- जगद्गुरु शंकराचार्य, और
- एकात्म मानववाद (अंग्रेजी: Integral Humanism)
- राष्ट्र जीवन की दिशा
- एक प्रेम कथा ।
प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती पर उन्हें शत् शत् नमन किया है । भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि अन्त्योदय के प्रेणता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी एक ऐसे दूरद्रष्टा थे जिनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने उस समय थे । पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी विकास की पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति को पंक्ति में खड़े पहले व्यक्ति के समकक्ष लाना चाहते थे । गृहमन्त्री राजनाथ संह ने कहा कि पण्डित जी महान चिन्तक, देश प्रेमी और गरीबों के मसीहा थे उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री योगी आदित्य नाथ ने ट्वीट कर कहा है कि हमारे प्रेरणा स्रोत, पथ प्रदर्शक पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती पर शत् – शत् नमन करते हुए कहा कि आइये आज पं. दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती पर संकल्प लें कि किसी न किसी एक गरीब का उत्थान करेंगे, किसी छात्र की शिक्षा में सहयोग करेंगे ।