हे कृषक-पुत्र! हे लौह-पुरुष! हे भारत के तारणहारे!

राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’

जीवट जिनका लाखों जन को
सम्बल देता था ।
जिनका हुंकार रौद्र होकर
तूफ़ां बन जाता था ।

ऐसे वीर शिरोमणि को सिर
शत-शत बार नवाता हूँ ।
सरदार देश के हे युगसृष्टा
मैं तुमको पुनः बुलाता हूँ ।

कृषक देश का नम आँखों से
बाट तुम्हारी जोह रहा है ।
फिर से हो जाये सत्याग्रह
मन ही मन में सोच रहा है ।

हे कृषक-पुत्र हे लौह-पुरुष
हे भारत के तारणहारे ।
ये देश तुम्हारा ऋणी सदा
हे देवदूत वल्लभ प्यारे ।।