गोपाल दास नीरज ने कठोर और गहन साधना की थी, जिसके कारण उन्हें गीत-क्षेत्र में ऐसी सिद्धि मिली, जिसके आस-पास भी उनके समय का कोई कवि नहीं ठहरता। इसका प्रमुख कारण यह है कि शिल्प ही नहीं, अपितु भाव-बोध के आधार पर भी उनका गीतात्मक उत्कर्ष देखते ही बनता है। नीरज की अनुभूतियों में ईमानदारी दिखती है। यही कारण है कि उनकी रचनाशीलता में हृदय, मन, बुद्धि तथा प्राण की समुपस्थिति लक्षित होती है।
आज (२० जुलाई, २०१८ ईसवी) बौद्धिक, शैक्षिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक संस्थान ‘सर्जनपीठ’, इलाहाबाद की ओर से एक श्रद्धांजलि-सभा का आयोजन किया गया, जिसमें नगर के प्रतिष्ठित विचारकगण ने अपनी वैचारिक श्रद्धांजलि अर्पित की।
इलाहाबाद दूरदर्शन-केन्द्र के पूर्व-वरिष्ठ निदेशक श्याम विद्यार्थी ने कहा, “नीरज के गीतों में प्राणों का स्पन्दन बोलता है। वे अपनी विलक्षण गीतधर्मिता के कारण अत्यन्त प्रिय कवि रहे। मेरे पिता जी प्राय: नीरज की यह रचना “देखते ही न दर्पण रहो प्राण तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा’, सुनाया करते थे।”
भाषाविद् डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने अपनी अवधारणा प्रस्तुत करते हुए कहा,”नीरज ने मंचीय कविता को समृद्ध किया। उनका रचना-विस्तार श्रृंगार से लेकर जीवन की विविध दर्शनात्मक गहन अनुभूतियों से सम्बद्ध था। जीवन की नाना जटिलताओं के बाद भी उनकी कारयित्री और भावयित्री प्रतिभा उत्कर्ष की ओर अग्रसर रही।”
शिक्षाशास्त्री प्रो० विभुराम मिश्र के अनुसार, “नीरज ने हृदय की गहन अनुभूतियों को प्रभावशाली ढंग से प्रकट करने में सामर्थ्य अर्जित की है। यही कारण है कि वे सम्पूर्ण जीवन के कवि थे।”
ज्योतिर्विद् डॉ० रामनरेश त्रिपाठी का मत था, “साहित्य का बड़ा स्तम्भ नहीं रहा; शून्यता आ गयी है। उनकी अकेली पंक्ति “जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना, अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाये” अज्ञान को दूर करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण आह्वान करती है।”
दोहाकार डॉ० प्रदीप चित्रांशी ने कहा, “नीरज की साहित्य-साधना से जनसामान्य समृद्ध हुआ है।”
शिक्षाविद् प्रो० रामकिशोर शर्मा ने कहा, “नीरज की प्रतिष्ठा व्यापक रही है। उनका स्वर और शिल्प अनुपम था।”
काव्यशिल्पी शिवराम उपाध्याय ‘मतवाला’ का विचार था, “नीरज ने फ़िल्म से लेकर जनसामान्य तक की प्रभावकारी यात्रा की है। उनको देखकर हमारे क़दम बढ़े हैं।”
काव्यधर्मी शिवराम गुप्त ने कहा, “नीरज सदैव जीवित रहेंगे। उनके लेखनी और कर्म से हमारी अनवरत मुलाक़ात होती रहेगी।”
कवि-कहानीकार कैलाशनाथ पाण्डेय का मत था, “वे श्रेष्ठ गीतकार थे; मिलनसार थे तथा हिन्दी-साहित्य की सेवा अनवरत करते रहे।”
इस श्रद्धांजलि-सभा का संयोजन डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने किया था।