करिश्माई भाजपा नेता अरुण जेटली की तीसरी पुण्यतिथि पर नमन

अगस्त का महीना एनडीए सरकार और भाजपा के लिए कुछ ज्यादा ही उल्लेखनीय रहा है। जहाँ एक ओर अनुच्छेद 370 की समाप्ति, राम मंदिर का शिलान्यास जैसे युगान्तकारी कार्य अगस्त के महीने में हुए । वहीं दूसरी ओर लोकसभा में भाजपा का नेतृत्व करने वाली तेज़तर्रार नेत्री सुषमा स्वराज जी का देहावसान और राज्यसभा में भाजपा की आवाज, रणनीतिकार और संकटमोचक जेटली जी का स्वर्गवास भी इसी महीने में हुआ था। युगपुरुष अटल जी भी इसी माह परलोक सिधार गए थे।

हालांकि जेटली जी जन नेता नहीं थे। उनमें अटल जी जैसा करिश्मा और सुषमा जी जैसी आक्रमकता भी नहीं थी। लेकिन उचित समय पर, उचित बात, उचित शब्दों में व्यक्त करने वाला उनके जैसा तीक्ष्ण बुद्धि वाला, हरफनमौला, कुशाग्रबुद्धि नेता वर्तमान राजनीति में दूर- दूर तक नजर नही आता है।

छात्र नेता के रूप में अपनी वक्तृत्व कला और अधिवक्ता के रूप में विरोधी को अपने सधे हुए तर्को से नेस्तनाबूद कर देने की विशिष्टता उन जैसे कुछ विरले लोगों में ही पाई जाती है। यही गुण उनको राजनीति के शिखर तक ले गए और उन्होंने अपनी गहरी, अमिट छाप छोड़ी।

उनके अकाट्य तर्को के पीछे उनकी कड़ी मेहनत और गहन होमवर्क हुआ करता था। याद करिये कि उन्होंने एक बार सदन में कहा था कि सिर्फ इस बहस के लिए उन्होंने 30,000 रुपये की किताबें खरीदी हैं। राजनीति को वे एक परीक्षा मानते थे, जिसकी तैयारी भी बखूबी करते थे। इसीलिए वे हर परीक्षा में अव्वल दर्जे से उत्तीर्ण हुए।

अपने तर्कों को वो इतनी सटीकता से रखते थे कि झूंठ भी सत्य जैसा लगने लगता था। जब वे जीएसटी का विरोध कर रहे थे , तब ऐसा लगता था कि इस से बुरा आर्थिक क़दम हो ही नहीं सकता और जब इसके समर्थन में आए तो यह सिद्ध कर दिया कि मानो देश की आर्थिक प्रगति जीएसटी के कारण ही रुकी हुई थी।

लेकिन मैं जिन कारणों से उनका प्रशंसक हूँ, वह राजनीतिक नहीं बल्कि मानवीय हैं। मंत्री पद छोड़ते ही अपना बंगला खाली कर देना, अपनी पार्टियों का व्यय ख़ुद वहन करना, इतने लंबे राजनीतिक जीवन के बाद भी भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं होना आदि (याद करिए कि कट्टर ईमानदार केजरीवाल को उन पर आरोप लगाकर माफ़ी तक मांगनी पड़ी थी।)। आज के कम ही राजनेता इस शुचिता पर खरे उतरेंगे।

प्रख्यात पत्रकार रजत शर्मा की फीस भरना, विराट कोहली के पिता की मृत्यु पर उनके पंजाबी बाग में चौथी मंजिल स्थित घर जाकर शोक प्रकट करना और उन्हें भारतीय टीम में लाना, वीरेंद्र सहवाग की शादी के लिए अपना आधिकारिक घर उपलब्ध कराना, अपने ड्राइवर और कुक के बच्चों को उसी विद्यालय में पढ़ाना जहां वह खुद पढ़े थे; उनके जीवन के कुछ अति माननीय पहलू थे।

उनके परिवार ने जेटली जी की मृत्यु के बाद उनकी पेंशन को राज्यसभा के ग्रुप डी कर्मचारियों को दान करके उनकी महान परंपरा को आगे बढ़ाया और उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी।

लिखने को बहुत कुछ है लेकिन संक्षेप में कहें तो 24 अगस्त 2019 को भारतीय राजनीति में शुचिता, ईमानदारी और विद्वता के ‘अरुण’ का अवसान हो गया था।

–भावभीनी श्रद्धांजलि–

–विनय सिंह बैस