राज सिंह चौहान (ब्यूरो प्रमुख हरदोई)-
तुम लहरों सी टकराती हो,
मैं मिट्टी सा बह जाता हूँ।
देखोगे सतह में आकर जो,
एक दूजे में मिल जाता हूँ।।1
तुम क्षण-क्षण में कता-कतरा,
मुझे काट-काट ले जाती हो।
यूं मुझे एकत्रित करके तुम,
ख़ुद सागर में मिल जाती हो।।2
तुम लहरों सी टकराती हो,
मैं मिट्टी सा बह जाता हूँ….
तुम अपनी लहरों के बल से,
मुझ पर जो रौब जमाती हो।
जाकर ख़ुद सागर की बाहों में,
तुम नतमस्तक हो जाती हो।।3
तुम लहरों सी टकराती हो,
मैं मिट्टी सा बह जाता हूँ….
क्या बतलाओगी तुम मुझको,
क्यों अपने साथ मिलाती हो।
कंकड़-कंकड़ मैं चलता हूँ,
तुम सागर संग मिल जाती हो।।4
तुम लहरों सी टकराती हो,
मैं मिट्टी सा बह जाता हूँ….