भयंकर आशंका से भरपूर दिखती, ‘आस्था’ की अपार भीड़!

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

पुरी की इस वार्षिक रथयात्रा मे भगदड़ मचने से कम-से-कम १० लोग की मृत्यु हो चुकी है और लगभग ५० लोग घायल हो चुके हैं। इतना ही नहीं, अन्य राज्यों से निकाली गयीं जगन्नाथ की यात्राओं मे भी कई लोग ‘सुरधाम’ पहुँच चुके हैं और विकलांग भी हो चुके हैं। प्रतिवर्ष लोग इन यात्राओं मे मरकर-कटकर, कुचलकर-पिसकर ‘देवलोक’ को प्राप्त करते आ रहे हैं। वैसे यहाँ लाखों की संख्या मे दिख रही तथाकथित ‘आस्था’ की भीड़ मे प्रतिपल घातक अनिष्ट सूचना मिलने की सम्भावना बनी रहती है, इसलिए इस पर ‘वैधानिक’ नियन्त्रण करने की आवश्यकता है। जो भी लोग ऐसी रथयात्रा निकलवाने के पक्षधर हैं, यदि उनके मा-बाप, भाई-बहन, बेटी-बेटे-पत्नी आदिक कुचल कर जब मरेंगे तब समझ मे आयेगा कि ‘आस्था’ के नाम पर देश मे ऐसी यात्राओं का औचित्य क्या है। ऐसा किसी भी समुदाय की ओर से प्रदर्शन करने पर पूर्णत: रोक लगायी जानी चाहिए।

निस्सन्देह, यह दृश्य मनोरम है; परन्तु यदि लाखों लोग के बीच किसी तरह का दुष्प्रचार होता है और लोग जान बचाने के लिए भागते हैं तो कैसा परिदृश्य होगा, इसे बहुत आसानी से समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए :– अरे भागो-भागो! इस यात्रा मे आतंकी घुसे हैं; देखो! उस काले बैग मे बम रखा हुआ है, भागो! अथवा अनियन्त्रित भीड़ एक-दूसरे को धक्का देते हुए, एक-पर-एक चढ़ती जाये अथवा अन्य कोई घटना घट जाये। ऐसे मे क्या होगा :– लोग एक-दूसरे को धक्का देते, कुचलते भागते दिखेंगे। उनमे से जो सुदृढ़ होगा, वह तो ज़िन्दे-मरे लोग के शरीर को कुचलते हुए, बच निकलने की हर मुमकिन कोशिश करेगा; परन्तु ‘आस्था’ के नाम पर जो अशक्त और दुर्बल आबाल वृद्ध नर-नारी होंगी, उनका बचकर निकल पाना, कितना मुश्किल होगा, इसे भी समझा जा सकता है। हम कई शताब्दी (‘शताब्दियों’ अशुद्ध है।) से ऐसी दुर्व्यवस्था से उपजी रक्तिम घटनाओं के साक्षी बनते रहे हैं; परन्तु भीड़ की आँखों मे ‘आस्था’ की जो ‘हिंस्र पट्टी’ लगा दी गयी है, उसके कारण वह ‘कल’ घटनेवाले शोचनीय दृश्य को देख नहीं पा रही है।

दिख रहीं ऐसी नितान्त घातक यात्राओं के लिए वहाँ का जिला-प्रशासन पूरी तरह से उत्तरदायी है, जिसने इस प्रकार की संकटपूर्ण यात्रा निकालने की अनुमति दी थी और जिन-जिन लोग ने अपनी हठधर्मिता का प्रदर्शन करते हुए, यात्राओं का आयोजन किया था, वे भी कम ज़िम्मादार नहीं हैं। केन्द्र और राज्य की सरकारें तो कुत्सित-कलुषित-गर्हित-घृणित-विकृत ‘धर्म’ और ‘आस्था’ के सम्मुख ‘बौनी’ बनी रहती हैं।

कथित यात्राएँ निकाल दी गयी थीं और कुछ लोग की जान लेने के साथ पूर्ण भी हो गयी थीं; परन्तु भविष्य मे इन यात्राओं के आयोजकों पर कैसे नियन्त्रण किया जाये, इस पर शासन और प्रशासन के उच्चपदस्थ अधिकारियों को गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २२ जून, २०२३ ईसवी।)