उच्च न्यायालय, इलाहाबाद का अप्रत्याशित निर्णय!?

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- 


आरुषि-हेमराज की हत्या आरुषि के मम्मी-पापा ने नहीं की थी।
निर्णय के विरुद्ध हमारा प्रश्न : फिर आरुषि और हेमराज का हत्यारा कौन?
‘सन्देह का लाभ’ के आधार पर ‘आरुषि और हेमराजहत्या-प्रकरण’ के दोषी तलवार-दम्पती (नूपुर तलवार-राजेश तलवार) को अभी-अभी (१२ अक्तूबर, २०१७ ई०) उच्च न्यायालय, इलाहाबाद ने अपराधमुक्त करने का निर्णय सुनाते हुए, दोनों को ‘आजीवन कारावास’ से ससम्मान मुक्त करने का आदेश किया है।
उल्लेखनीय है कि ग़ाज़ियाबाद सी०बी०आई० के ट्रायल न्यायालय ने आरुषि-हेमराज के हत्याप्रकरण में तलवार-दम्पती को ‘आजीवन-कारावास’ का दण्ड सुनाया था और उक्त दम्पती ‘डासना-कारागार’ में आजीवन कारावास का दण्ड भुगत रहे थे।
निर्णय के मुख्य बिन्दु :—————–
० पूरे प्रकरण में प्रत्यक्षत: ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध कराने में सी०बी०आई० सफल नहीं है, जिसके आधार पर नूपुर-दम्पती को हत्यारा सिद्ध नहीं किया जा सकता।
० परिस्थितिजन्य साक्ष्यों में क्रमबद्धता का न होना, ‘वास्तविक साक्ष्य’ नहीं माना जा सकता।
विशेष तथ्य :————————
० हत्या के समय पुलिस और सी०बी०आई० ने घटना का समुचित निरीक्षण-परीक्षण कर साक्ष्यों को सार्थक ढंग से प्रस्तुत नहीं किया था; कोई रुचि नहीं दिखायी थी। यदि हत्या की घटना के समय ही साक्ष्यों को सुरक्षित कर लिया गया रहता तो आज निर्णय कुछ और ही होता।
० साक्ष्यों के अभाव में सी०बी०आई० ८ सितम्बर, २०११ ई० को ‘क्लोजर रिपोर्ट’ लगाकर इस पूरे प्रकरण को समाप्त करना चाहती थी, जिसका आधार उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने बना लिया।
० इससे भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि सी०बी०आई० की लचर भूमिका रही है।
० वैज्ञानिक साक्ष्यों को सुरक्षित नहीं किया गया था।
० पुलिस और सी०बी०आई० ने साक्ष्यों को एकत्र करने में बहुत अधिक शिथिलता बरती थी, इसलिए परीक्षण करनेवालों के विरुद्ध न्यायिक परीक्षण किया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई परीक्षणतन्त्र प्रमादी न बन सके।