इस्लामिक विश्व बनाने के हथियार हैं अशान्ति और ख़ौफ़

राघवेन्द्र कुमार “राघव”- 


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क्या आतंक के रास्ते आप वैचारिक शून्यता को दूर करने की कल्पना कर सकते हैं ? नहीं न ! तब आख़िर क्यों कट्टर इस्लामिक संगठन इस्लामियत फैलाने के लिए ऐसी धृष्टता कर रहे हैं । महान व कृपालु ईश्वर (अल्लाह) की सेवा में प्रार्थना करता हूं कि इस सामूहिक आतंकी प्रयास में बरकत न दें । वह सुनने और क़ुबूल करने वाला है । यदि ऐसा आश्चर्यजनक परिवर्तन जो ईश्वर की कृपा से सही और सुरक्षित है, हो गया तो वह दिन दूर नहीं जब यह बदलाव मुस्लिम समुदाय और फिर संपूर्ण मानवता के लिए शान्तिप्रिय सभ्यता का निर्माण कर देगा । आज पूरी दुनि‍या आतंक के साये में जीने को विवश है । समाचार पत्र चरमपंथ और उग्रवाद की घटनाओं से भरे रहते हैं । जिहाद के नाम पर अपनी बात को मनवाने का यह कैसा तरीका है, जिसमें आदमी जान लेने और देने पर आमादा है ! उन्माद का यह कैसा रूप है, जहां मानव स्वेच्छा से आत्मघाती बम के रूप में परिवर्तित होकर अपने ही साथियों की जान केवल इस लिए लेना चाहता है कि वे उसके चिंतन के अनुरूप कार्य नहीं करते हैं ! वर्तमान में जो कुछ हमारी दृष्टि के सामने है और जिससे समाज के सभी तबके के सचेत और समझदार व्यक्ति आहत हैं, वह क़ाफ़िरों के प्रति शत्रुतापूर्ण इस्लामिक सोच है । विश्व के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और वैज्ञानिक समीकरणों में हाशिए पर पड़े इस सम्प्रदाय के झण्डाबरदारों ने अशान्ति और ख़ौफ़ को इस्लामिक विश्व बनाने के लिए हथियार बना लिया है । ये साम्प्रदायिक ताक़तें कम्युनिज़्म और लिबरलिज़्म की विफलता के बाद वैश्विक स्तर पर अपनी विचारधारा को सामान्य जनों के जीवन से लेकर राजनीति और शासन तक फैलाने के लिए आतंकवाद को सामाजिक परिवर्तनों के मैदान में एक नयी कार्यशैली के रूप में प्रचारित कर रही हैं । आज एक पथच्युत विश्व के साथ न चलकर उसे बन्दूक और बम से डराकर अन्धेरी राह दिखाने का प्रयत्न कर रहा है ।