हाँँ मैं पुलिस हूँ

शरदेन्दु मिश्र 'राहुल' (सब एडिटर IV24 NEWS)

शरदेन्दु मिश्र ‘राहुल’ (सह-सम्पादक IV24 News):

बहुत दिनों से कई मित्र कह रहे थे कि पुलिस विभाग के बारे में कोई लेख लिखो ! आज उन्हीं मित्रों की फरमाइश को पूरा करने की कोशिश कर रहा हूँ ।

प्राचीन काल में भारत में स्थानीय स्तर पर कानून व्यवस्था का पालन कराने के लिये जमींदारों के पास गुस्सैल युवाओं का दल होता था, जिन्हे स्थानीय भाषा में मुचडंडे कहा जाता था और जो निर्धारित नियमों का पालन कम कराते थे । देखा जाए तो यह सिपहसालार अपराधों (बलात्कार, डकैती, जबरदस्ती) को बढा़वा देते थे । लेकिन समाज में न्याय व्यवस्था इन्हीं लोगों के कन्धे पर थी।

आज से लगभग 163 साल पहले भारत में पहला स्वाधीनता संग्राम (1857 का गदर) हुआ, तब अंग्रेजो द्वारा समाज के निचले स्तर कानून का पालन कराने के लिए एक क्रूर व्यवस्था बनायी गयी । इस प्रकार वर्तमान पुलिस शासन की रूपरेखा तैयार हुई । इस व्यवस्था का जन्मदाता लार्ड कार्नवालिस था । वर्तमान काल में हमारे देश में अपराध निरोध संबंधी कार्य जिसका दायित्व पुलिस पर है, थाना अथवा पुलिस स्टेशन हैं । थाने में नियुक्त अधिकारी एवं कर्मचारियों द्वारा इन दायित्वों का पालन होता है । सन् 1861 के पुलिस ऐक्ट के आधार पर पुलिस शासन प्रत्येक प्रदेश में स्थापित है । इसके अंतर्गत प्रदेश में महानिरीक्षक की अध्यक्षता में और उपमहानिरीक्षकों के निरीक्षण में जनपदीय पुलिस शासन स्थापित है । प्रत्येक जनपद में सुपरिटेंडेंट पुलिस के संचालन में पुलिस कार्य करती है । सन् 1861 के ऐक्ट के अनुसार जिलाधीश को जनपद के अपराध संबंधी शासन का प्रमुख और उस रूप में जनपदीय पुलिस के कार्यों का निर्देशक माना गया है ।

अंग्रेजो ने अपने अनुसार कानून का बेहतर पालन कराने हेतु पुलिस विभाग में कुछ नियम बनाए थे, दुर्भाग्य से जो अब भी चल रहे हैं । उदाहरण स्वरूप अपने जनपद व घर परिवार से दूर रहना, जिससे कि उपरोक्त विभाग के कार्मिक चिड़चिड़े और खूंखार बन कर स्थानीय लोगों पर गुस्सा उतारें । ये नियम अंग्रेजों ने दमनकारी नीति के तहत बनाया था दुर्भाग्य से जो आज भी लागू है ।

पुलिस विभाग के खिलाफ व सबसे ज्यादा पीछे पड़ने वाला विभाग है मानवाधिकार विभाग । परन्तु इस मानवाधिकार संस्था को पुलिसकर्मियों के अधिकार नहीं दिखते । आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि मात्र आठ घण्टे प्रतिदिन के वेतन पर 24 घण्टे अपराध नियन्त्रण, लाश उठाना, स्थानीय स्तर पर कानून व्यवस्था का अनुपालन कराना आदि पुलिस विभाग के नियमित कार्यो में सम्मिलित है । कोई भी सेवा नियमावली प्रत्यक्ष क्रियान्वयन में नहीं है । न सोने का समय, न खाना खाने का और न ही कपडे़ धोने का । अपने आप समय मिले जो कर सकते हो करो । उसके बीच भी सूचना आने पर ड्यूटी पर दौडो़ ।

12 साल के पत्रकारिता के अनुभव में हमने कई बार ऐसा देखा है जो पुलिस के प्रति हमारा दृष्टिकोण बदलने वाला रहा । एक वाकया याद आ रहा है जब 2010 पंचायत चुनाव में लगातार 26 घण्टे ड्यूटी के बाद खाना खाते तत्कालीन थानाध्यक्ष को पुलिस अधीक्षक ज्ञान सिंह जी द्वारा डाँटा गया कि एक दिन नहीं खाओगे तो मर नही जाओगे। यह देख सुन कर बहुत तकलीफ हुई । जो विभाग दूसरों को न्याय दिलाने को मशहूर है वह स्वयं कमजोर है । राजनैतिक हस्तक्षेप की वजह से आज भी यह महकमा बदनामी व स्वयं के अधिकारो के लिए संघर्ष कर रहा है ।

प्रिय बडे़ भाई राकेश पाण्डेय अनुजवत भाई अंकुर यादव को समर्पित ।