उप-राष्ट्रपति पद से विदा हो रहे हामिद अंसारी ने कहा कि मुस्लिमों में बेचैनी का अहसास है । सवाल उठना लाजिमी है कि कि क्या उप-राष्ट्रपति पद छोड़ते ही उन्हें यह महसूस हुआ ? वैसे यह सब जो उन्होंने कहा है इसे कहने से उन्हें न तो कोई रोके था और न ही कभी रोक सकता है । पर वे एक राजनयिक रहे हैं जिन्हे आँखों में से काजल चुराने की क़ाबलियत का पाठ पढ़ाया जाने के बाद दूतावास दिया जाता है। पर लगता है बुज़ुर्ग दस साल में यह पाठ भूल गए और विदाई के मौक़े पर खुल कर अंदर बाहर एक हैं -जता गए। सच्चाई की क़दर नहीं करनी चाहिए क्या ? बोल गए तो कुछ दे गए हैं चुरा कर तो नहीं ले गए , वर्ना देश मुग़ालते में ही रहता कि अंसारी साहब को देश की आबोहवा के बारे में क्या महसूस होता है ? श्री अंसारी के बयान पर निर्वाचित उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने बिना नाम लिए कहा कि देश में अल्पसंख्यकों के बीच असुरक्षा की भावना महज राजनीतिक प्रचार भर है । वैसे भी श्री अंसारी पद मुक्त होने के बाद घर तो बैठेंगे नहीं । आगे की राजनीति का शुभारम्भ इसी तरह सही ।