जो रावण है मन के भीतर कैसे उसे जलाएँ?
इस बहुरंगी दुनिया मे अपना किसे बताएँ?
जो रावण है मन के भीतर कैसे उसे जलाएँ?
सबके मन मे बसे राक्षस सत्य और शुचिता गायब है।
चीख-चीखकर झूठ बन गया सच्चाई का नायब है।
फंसा झूठ के जो चंगुल में कैसे उसे बचाएँ?
जो रावण है मन के भीतर कैसे उसे जलाएँ?
बात बनाने मे जो माहिर वह सच्चाई के वाहक हैं।
समयचक्र के ख्यात खेलाड़ी जीवित जन के दाहक हैं।
मेरी दुनिया लुटी जा रही कैसे इसे बचाएँ?
जो रावण है मन के भीतर कैसे उसे जलाएँ?