डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
आज गुवाहाटी में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को ‘द्वितीय टी-20’ क्रिकेट मैच में ८ विकेटों से पराजित कर, तीन मैचों की श्रृंखला १-१ से बराबर कर ली है। ऑस्ट्रेलिया ने टॉस जीतकर पहले क्षेत्ररक्षण करते हुए भारत को २० ओवरों में ११८ रनों पर आल आऊट करने के बाद मात्र १५.३ ओवरों में २ विकेटों पर १२२ रन बनाकर अपनी महत्ता सिद्ध कर दी है। बेहरनडॉर्फ़ ने ४ विकेट लिये थे।
टॉस हारने के बाद भारत के हाथों से १५% मैच निकल चुका था। बल्लेबाज़ी के लिए मैदान पर उतरे खिलाड़ियों की रणनीति समझ में नहीं आ रही थी। सारा परिदृश्य ठीक उसी तरह का था, जिस तरह का लगातार तीन टेस्ट मैच जीतने के बाद विराट कोहली को चतुर्थ मैच में मुँह की खानी पड़ी थी। भारतीय खिलाड़ी मात्र प्रति ओवर ५ रन का औसत लेकर आराम से खेल सकते थे, परन्तु अतिरिक्त उत्साह की मानसिकता के कारण अति शीघ्र २ विकेट खो चुके थे। उसके बाद शिखर धवन अपनी आदत से मज़बूर दिखे और पैवेलियन की ओर मुड़ते देखे गये। ऐसी स्थिति में भारतीय कप्तान विराट कोहली अपने खिलाड़ियों का उचित निर्देश करने में विफल क्यों रहे? परिणाम यह रहा कि १३ मिनट के भीतर भारत के ४ विकेट गिर चुके थे। बल्लेबाज़ आत्मसमर्पण की मुद्रा में अपना प्रदर्शन करते दिखे और आयाराम-गयाराम का खेल चलता रहा; बामुश्किल सैकड़ा बना पाये। विकेट बल्लेबाज़ी के लिए बहुत अच्छा था।
भारतीय गेंदबाज़ों के लिए इतने रन नहीं थे कि वे ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ों को जीत से दूर रखने के लिए जूझ सकें। इसके बाद भी जल्दी ही ऑस्ट्रेलिया के २ विकेट गिर चुके थे। भुवनेश्वर ने ३ ओवरों में ९ रन देकर १ विकेट लिया था। ऐसे मे, कप्तान विराट को भुवनेश्वर की गेंदबाज़ी से अलग नहीं रखना चाहिए थे। भारत के पास बहुत कम रन थे। ऐसे में, जब कुलदीप यादव और हार्दिक पण्ड्या की गेंदों की जमकर पिटाई की जा रही थी तब भी लगातार उन्हें ओवर दिये गये। यदि भुवनेश्वर और बुमराह को ओवर दिये गये रहते तो ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ों पर नियन्त्रण किया जा सकता था। यहाँ अपनी रणनीति बनाने में विराट पूरी तरह से असफल रहे।
बहरहाल, इस पराजय से श्रृंखला में रोचकता आ गयी है। तृतीय और अन्तिम मैच दोनों दलों के लिए “करो या मरो” का रहेगा; साथ ही अपने को सिद्ध करने का भी