आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

■ यदि आपको इसमे से किसी भी प्रकार की अशुद्धि दिखे तो हमारा समुचित मार्गदर्शन करें, स्वागत है।
◆ यहाँ वे शब्द हैं, जिनका विश्व-समाज जाने-अनजाने (‘अंजाने’ और ‘अन्जाने’ अशुद्ध हैं।) अशुद्ध और अनुपयुक्त व्यवहार करता आ रहा है।
शब्द :– शुभ रात्रि; शुभ दिन; गुड नाइट; गुड मॉर्निंग; गुड डे; अभिवादन तथा आदाब।

ये सभी शब्द-प्रयोग ‘अर्थहीन’ हैं; क्योंकि शुभ का अर्थ ‘कल्याण’ है और रात्रि का ‘रात’। ‘सु’ का अर्थ ‘अच्छा’ और ‘सुन्दर’ है। इन दोनो शब्दों के क्रमश: अर्थ हैं, ‘कल्याण रात’ और ‘अच्छी’/’सुन्दर रात’। अब प्रश्न है, इन शब्दों के प्रयोग का औचित्य क्या है? जिस भाव, अर्थ तथा आशय के लिए इनका प्रयोग किया जाता है, क्या इनकी सार्थकता है? इसका उत्तर उन लोग के पास नहीं है, जो ‘गुड मॉर्निंग’, ‘गुड नाइट’, ‘सुप्रभात’, ‘शुभ प्रभात’, ‘शुभ रात्रि’ इत्यादिक शब्दों का व्यवहार करते आ रहे हैं।

शुद्ध और उपयुक्त प्रयोग हैं :–
१– आपकी रात्रि शुभमयी हो!
२–आपकी रात्रि कल्याणकारिणी हो!
३– आपकी शुभमयी रात्रि की कामना करता हूँ।
४– आपकी रात्रि कल्याणमयी हो!

यहाँ ‘शुभमयी’, ‘कल्याणकारिणी’ तथा ‘कल्याणमयी’ का प्रयोग इसलिए किया गया है कि विशेष्य-शब्द ‘रात्रि’ स्त्रीलिंग है; इस कारण विशेषण-शब्द भी उसी लिंग का होगा।

इसी तरह से वाक्य मे पिरोते हुए, ‘सुप्रभात’ और ‘शुभ प्रभात’ का भी व्यवहार किया जायेगा।

! यह चिह्न इच्छासूचक/कामनाबोधक तथा आज्ञाबोधक वाक्य के अन्त मे लगता है, जिसे ‘इच्छासूचक’ और ‘आज्ञासूचक-चिह्न’ कहते हैं। ‘गुड नाइट’ और ‘गुड डे’ के प्रयोग भी अर्थहीन हैं और आपत्तिजनक भी। आप अब शुद्ध और उपयुक्त प्रयोग देखें :–
१– यू हैव ए गुड नाइट।
२– यू हैव ए गुड मॉर्निंग।
३– यू हैव ए गुड डे।

इनका क्रमश: अर्थ है :–
१– आपकी भली रात्रि हो!
२– आपकी सुब्ह (‘सुबह’ अशुद्ध है।) भली हो।
(अथवा)
आपका उत्तम/भला/अच्छा प्रात: हो।
३– आपका भला दिन हो!

कुछ लोग ‘हैव ए गुड डे’, ‘हैव ए गुड मॉर्निंग’ तथा ‘हैव ए गुड नाइट’ का प्रयोग करते हैं। ये तभी तक शुद्ध और उपयुक्त प्रयोग माने जायेंगे जब तक दो मित्र/शुभचिन्तक आमने-सामने हों वा (अथवा) दो के मध्य प्रत्यक्ष-परोक्ष संवाद (कथोपकथन) किया जा रहा हो। (अथवा) एक मित्र दूसरे मित्र को पत्र लिख रहा हो।

अब ‘अभिवादन’ शब्द पर विचार करते हैं। यह ‘मुक्त मीडिया’ (सोसल मीडिया) मे ‘कोविड’ और ‘कोरोना’-रोग की तरह से व्याप्त हो चुका है। अभिवादन का शाब्दिक अर्थ है, ‘सश्रद्धा (श्रद्धापूर्वक/श्रद्धासहित) किया जानेवाला प्रणाम अथवा नमस्कार’। इसके अन्य अर्थ ‘प्रशंसा’ और ‘स्तुति’ हैं। ‘नमस्कार’ का अर्थ है, ‘झुककर अभिवादन करना’। इन शब्दों का जिस भाव और अर्थ मे प्रयोग किया जाता है, वह व्यर्थ है। हम जब केवल ‘नमस्ते’ शब्द का व्यवहार करते हैं तब वह पूर्ण अर्थ को व्यक्त करता है; क्योंकि वह एक वाक्य है :– नमस्ते।

नमस्ते की रचना ‘नम:+ते’ के योग से होती है। यह विसर्ग सन्धि का उदाहरण है, जिसका अर्थ है– ‘आपको नमस्कार है।’

‘अभिवादन’ के अन्तर्गत ‘नमन’ (‘नमन्’ अशुद्ध है।), ‘नमस्कार’ अथवा ‘प्रणाम’ किये जाते हैं; परन्तु इसका शुद्ध प्रयोग है :–
१– प्रणमामि। (प्रणाम करता हूँ।)
२– नमस्करोमि। (नमस्कार करता हूँ।)
३– आपको प्रणाम/नमस्कार/नमन करता हूँ। (अथवा) मेरा प्रणाम/नमस्कार/नमन स्वीकार करें।

यदि किसी ने कहा :– मै आपको नमस्ते करता हूँ। (अथवा) मेरा नमस्ते स्वीकार करें तो उसका यह प्रयोग हास्यास्पद हो जाता है। आप कह सकते हैं :– मेरा यथोचित (जैसा उचित हो।) अभिवादन अङ्गीकार/स्वीकार करें (‘स्वीकारें’ अशुद्ध है।)। आपने यदि किसी को केवल ‘अभिवादन’ अथवा ‘नमस्कार’ वा (अथवा) ‘प्रणाम’ कहा तो आपका कथन अर्थहीन माना जायेगा। इसके साथ कर्त्ता और क्रिया का प्रयोग अनिवार्य है।

आप भली प्रकार से समझ लें कि ‘प्रणाम’, ‘नमन’ तथा ‘नमस्ते’ अवस्था मे स्वयं से ज्येष्ठ और सुयोग्य व्यक्ति को किया जाता है, जबकि ‘नमस्कार’-शब्दप्रयोग स्वयं से कनिष्ठ अथवा सम-अवस्था और सम-स्तर के व्यक्ति को किया जाता है।

बहुसंख्य लोग अपने परिचितजन को ‘आदाब’ कहते हैं। यह भी ग़लत लफ़्ज़ का इस्तेमाल है। इस शब्द को व्यवहार मे लानेवाले लोग मे से बहुत कम ऐसे हैं, जो न तो इसकी उत्पत्ति से वाक़िफ़ (अभिज्ञ, जानकार तथा परिचित) हैं और न ही इसका शाब्दिक अर्थ जानते हैं। ‘आदाब’ अरबी-भाषा का शब्द है, जिसकी रचना ‘अदब’ (शिष्टता, शिष्टाचार) से हुई है। आदाब-शब्द (आदाब का शब्द) ‘अदब’ का बहुवचन है, जिसका अर्थ ‘अभिवादन’, ‘प्रणाम’, ‘नमन’ तथा ‘नमस्कार’ है। ऐसी स्थिति मे, सामनेवाले को कहना होगा :– आदाब अर्ज़ करता हूँ। ‘अर्ज़’ का अर्थ है, ‘एक बार ज़ाहिर (प्रकट/व्यक्त) करना’। इस प्रकार इसका अर्थ हुआ :– अभिवादन व्यक्त/प्रकट करता हूँ।

◆ आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला’ नामक प्रकाशनाधीन पुस्तक से सकृतज्ञता गृहीत। (लिया गया।)

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २९ दिसम्बर, २०२२ ईसवी।)