
■ आप सभी सीखिए (यहाँ ‘सिखिए’ अशुद्ध है।), ‘शुद्ध हिन्दी’ कैसे लिखी जाती है?
'होटल एमिनेण्ट', आगरा मे साहित्यकार और कवयित्री ('कवियित्री' अशुद्ध है।) प्रियवर डॉ० मधु भारद्वाज जी से भेंटकर आत्मिक सुख प्राप्त हुआ है। उन्होंने अपनी सद्य:-प्रकाशित (नवीनतम) दो कृतियाँ :-- (१) 'जियो तो कुछ ऐसे' (काव्यसंग्रह/काव्य-संग्रह) (२) 'कुछ निबन्ध आपके लिए' (निबन्धसंग्रह/निबन्ध-संग्रह) मुझे भेंटकर (अपने से छोटों को 'प्रदान' किया जाता है और बड़ों को 'भेंट' किया जाता है।) अपनी सारस्वत सदाशयता का परिचय प्रस्तुत किया है। ('परिचय दिया है।' अशुद्ध है।)
हमारी यह दूसरी भेंट रही है :-- (:-- यह 'विवरणचिह्न' है और यहाँ इसका प्रयोग इसलिए कि हमारी कब-कब भेंट हुई थी, इसका विवरण प्रस्तुत किया गया है।) पहली भेंट प्राकृतिक वैभवसम्पन्न स्थल 'शिमला', हिमाचलप्रदेश (सोलन) मे हुई थी और दूसरी भेंट ऐतिहासिक नगर 'आगरा' मे।
प्रियवर डॉ० मधु भारद्वाज जी ने एक ऐसे व्यक्ति से भी भेंट कराया था, जो 'आगरा पब्लिक स्कूल' के नाम से संचालित प्राथमिक-माध्यमिक-उच्चस्तरीय नौ शिक्षणसंस्थानों के स्वामी हैं और एक कुशल प्रबन्धक भी। सादगी से युक्त सम्मान्य महेश शर्मा जी मुझसे भेंट करने के लिए ही मेरे प्रवासस्थल 'होटल एमिनेण्ट' की कक्षसंख्या ('कक्षा' और 'कक्ष' मे अन्तर समझें।) मे पधारे थे। ('प्रवास' का प्रयोग कहाँ होता है, समझें।)।
७१ (इकहत्तर) (शब्दों मे शुद्ध 'इकहत्तर' कैसे लिखा जाता है, देखें।) वर्षीय श्रद्धेय शर्मा जी के (यहाँ 'की' का प्रयोग अशुद्ध है; क्योंकि अन्तिम कर्त्ता 'हिन्दी-अनुराग' पुंल्लिंग-शब्द (पुंल्लिंग का शब्द है।) ('पुलिंग', 'पुल्लिंग' अशुद्ध हैं।) विनयशीलता और हिन्दी-अनुराग के प्रति सजगता देखते ही बन रही थी। अकस्मात् प्रसंग छिड़ा और हम तीनो ('तीनों' अशुद्ध है; क्योंकि पंचमाक्षर अनुस्वारयुक्त होता है।) हिन्दी-भाषा के अन्तर्गत व्यवहृत शुद्धाशुद्ध/शुद्ध-अशुद्ध/ शुद्ध और अशुद्ध शब्दप्रयोग के विषय पर संवाद करने लगे थे।
मत-सम्मत का निष्कर्ष यह रहा कि देश के शिक्षक तथा शेष प्रबुद्धवर्ग उच्चारण (मौखिक भाषा) और लेखन (लिखित भाषा)-स्तर पर शुद्ध हिन्दीभाषा का व्यवहार करें और कुशलतापूर्वक हमारे विद्यार्थियों को शिक्षित-प्रशिक्षित करने का दायित्व-निर्वहण करें।
उपर्युक्त ('उपरोक्त' अशुद्ध है।) अनौपचारिक वैचारिक आयोजन के सम्पन्न होने के अनन्तर (पश्चात्) मित्र डॉ० मधु जी ने पेय पदार्थ 'कॉफ़ी' का प्रस्ताव किया था। (यहाँ 'दिया' और 'रखा' का प्रयोग अशुद्ध है।) हम तीनों आगरा के प्रतिष्ठित स्वल्पाहार-प्रतिष्ठान 'कैफ़े कॉफ़ी-डे', संजय पैलेस पहुँचे थे। शुभचिन्तक डॉ० भारद्वाज जी के सौजन्य से पेय और खाद्यपदार्थ की उत्तम व्यवस्था थी। आत्मीयतापूर्ण परिवेश मे हमने खाद्य और पेय पदार्थों के सेवन किये थे। (यहाँ 'सेवन किया था' अशुद्ध प्रयोग है; क्योंकि पेय और खाद्यपदार्थ हैं, फिर उनका एक साथ सेवन नहीं किया जा सकता।)
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ४ अक्तूबर, २०२२ ईसवी।)