आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

शुद्ध और उपयुक्त शब्द-प्रयोग :–

दीपावली-दीवाली, दीया-दिया, प्रज्वलन, अधिकांश-अधिकतर, अवतरण-जन्म।

★ दीपावली-दीवाली– इन दोनों ही शब्द-प्रयोग को लेकर लोग भ्रम और संशय की स्थिति में रहते हैं। यही कारण है कि कुछ लोग ‘दीपावली’ तो कुछ ‘दिपावली’; वहीं कुछ लोग ‘दिवाली’ तो कुछ ‘दीवाली’ का प्रयोग करते हैं। यहाँ यह जान लेना ज़रूरी है कि प्रत्येक शुद्ध शब्द-प्रयोग उसके अर्थ पर निर्भर करता है। शुद्ध शब्द ‘दीपावली’ है, जो ‘दीप’ (दीपक) और ‘आवली’ (पंक्ति) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है, ‘दीपों की पंक्ति’। यहाँ ‘दीप’ है, जिससे ‘दीपक’ शब्द की रचना होती है। मूल शब्द ‘दीप’ है, न कि ‘दिप’ है। इसी अर्थ में ‘दिवाली’ शब्द का भी प्रयोग होता है, जो कि ग़लत है; क्योंकि उपयुक्त शब्द ‘दीवाली’ है। दिवाली का तो इससे भिन्न अर्थ है। जिस पट्टे/पट्टी को किसी यन्त्र से खींचकर खराद, सान आदिक चलाये जाते हैं, उसे ‘दिवाली’ कहते हैं। यद्यपि अनेक शब्द-कोश में ‘दिवाली’ का भी ‘दीपावली’ के अर्थ में प्रयोग किया गया है, जो कि व्याकरण के विरुद्ध है। कोशकार कोश को भरने के लिए सभी प्रचलित शब्दों को उसी अर्थ में ग्रहण कर लेते हैं, जो लोक-व्यवहार में होते हैं। लोक-व्यवहार और शुद्ध-उपयुक्त प्रयोग दो अलग-अलग विषय हैं। इसका स्थानिक प्रयोग ‘दिवारी’ है और दिपालि-दीपाली भी। ‘उद्धव शतक’ में वर्णन है, “आवति दिवारी बिलखाइ ब्रजवासी कहै।” दीपावली का बिगड़ा हुआ रूप ‘दीवाली’ है, दिवाली नहीं; परन्तु विशुद्ध और उपयुक्त शब्द ‘दीपावली’ ही है।

★ दीया-दिया– ‘दीपक’ के अर्थ में अधिकतर लोग ‘दिया’ का प्रयोग करते हैं, जबकि दीया का ही प्रयोग होना चाहिए। ‘दीया’ संज्ञा का शब्द है। बत्ती (वर्तिका)/-तेल (तैल)/घी (घृत) से युक्त मिट्टी (मृत्तिका) के एक लघु पात्र को ‘दीया’ कहते हैं। इसी दीया से ‘दीयासलाई’ की रचना हुई है; ‘दियासलाई’ अनुपयुक्त शब्द है। जैसे– ‘दीया’ जल रहा है। दीया के अर्थ में स्थानिक प्रयोग ‘दियरी-दियरा’, ‘दियवा-दिअली’, ‘दियला’ भी होते हैं। छोटा दीया ‘दियरी’ और बड़ा दीया ‘दियरा’ हैं। भोजपुरी में प्रयोग मिलता है :– जा बबुआ! दुअरा आ डेरा पर ‘दियरी आ दियरा’ जराइ आव। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं, “सुभग सकल अंग अनुज बालक संग देखि नरनारि रहै ज्यों कुरंग दियरे।” ‘दिया’ क्रिया का शब्द है, जिसका ‘देने’ के अर्थ में व्यवहार होता है। जैसे– मैंने उसे एक फल ‘दिया’।

★ प्रज्वलन– प्राय: लोग इसकी वर्तनी अशुद्ध लिखते हैं। इस शब्द की शुद्ध वर्तनी लिखना बहुत आसान है। इसे शुद्ध लिखने के लिए पहले आप ‘ज्वलन’ लिखें। इसके बाद ‘ज्वलन’ से ठीक पहले ‘प्र’ लगा दें। इस तरह से आपका शुद्ध शब्द ‘प्रज्वलन’ बन गया। अधिकतर लोग ‘दीप’ के साथ ‘प्रज्वलन’ को जोड़ते समय अशुद्धियाँ करते हुए, ‘दीप प्रज्जवलन’ लिखते हैं। अब आप शुद्ध शब्द ‘दीप-प्रज्वलन’ का प्रयोग करना आरम्भ कर दें।

★ अधिकतर-अधिकांश– प्राय: लोग ‘अधिकतर’ और ‘अधिकांश’ को समानार्थी शब्द मानकर प्रयोग करते हैं, जबकि यह ग़लत है। जहाँ ‘दूसरे की अपेक्षा अधिक’ का भाव हो वहाँ ‘अधिकतर’ का प्रयोग होता है। जैसे– उनमें से अधिकतर लोग उस सभा में नहीं थे। किसी समूह के आधे से अधिक अंश अथवा भाग को ‘अधिकांश’ कहा गया है। जैसे– कृषकों की अधिकांश खेती व्यर्थ जा रही है। यह शब्द ‘अधिक+ अंश’ के योग से बना है। ऐसे में, अंश का अर्थ संख्यावाची न होकर, अंशवाची/भागवाची होगा। अधिकतर लोग ‘अधिकांश भाग’ का भी प्रयोग करते हैं, जो कि ग़लत है; क्योंकि अधिकांश में ही ‘भाग’ शब्द निहित है। ‘अधिकतर’ शब्द में ही ‘संख्या’ का बोध होता है।; जैसे– अधिकतर लोग। ‘अधिकांश भाग’ का प्रयोग अनुपयुक्त और अशुद्ध है।

★ अवतरण-जन्म– इन दिनों ‘मुक्त मीडिया’ (सोसल मीडिया) में लोग बिना सोचे-समझे किसी की जन्मतिथि पर बधाई देने के उद्देश्य से ‘अवतरण-दिवस’ का प्रयोग कर रहे हैं। जो अवतारी पुरुष होता है, उसी के लिए ‘अवतरण’ का प्रयोग होता है। जो महिला गर्भ धारण कर किसी सामान्य व्यक्ति को जन्म देती है, उसके लिए ‘अवतरण’ का प्रयोग हास्यास्पद है। अवतारी पुरुष यदि किसी के गर्भ से उत्पन्न होता है, वह उसके लिए ‘अवतरण’ है। ऊपर से नीचे की ओर आने को अवतरण कहते हैं।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १४ नवम्बर, २०२० ईसवी।)