आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

कृपया ध्यान करें (‘ध्यान दें’ अशुद्ध प्रयोग है; क्योंकि ध्यान क्रियात्मक शब्द है। ध्यान किया जाता है; दिया नहीं जाता।)

१- यथोचित स्थलों पर तिथि के बाद अल्प विरामचिह्न (,) लगाकर वर्ष लिखा जाता है; जैसे– १० जून, २०२०
२- नगर और संस्करण के मध्य में योजक-चिह्न (-) लगता है, तभी ‘नगर का संस्करण’ का अर्थबोध होगा; जैसे– नगर-संस्करण, पर्यावरण-संरक्षण इत्यादिक।
३- गोकशी शब्द का प्रयोग अशुद्ध है। शुद्ध शब्द ‘गोकुशी’ है, जैसे ख़ुदकुशी। इसमें दो शब्द हैं :– पहला, गो और दूसरा कुशी। पहला शब्द संस्कृतभाषा का है, जिसका अर्थ ‘गाय’ है, जबकि दूसरा शब्द ‘कुशी’ फ़ारसी का है, जिसका अर्थ ‘मार डालना’ है; जैसे– ख़ुदकुशी– स्वयं को मार डालना, आत्महत्या।
४- अँगरेजी में साइंटिस्ट की हिन्दी ‘विज्ञानी’ है, न कि वैज्ञानिक। साइंटिफ़िक को ‘वैज्ञानिक’ कहते हैं। ऐसा इसलिए कि साइंटिस्ट संज्ञा-शब्द है, जबकि साइंटिफ़िक विशेषण-शब्द है। उदाहरण के लिए– (१) वह भाषाविज्ञानी है। (२) भाषावैज्ञानिक दृष्टि से भी यह शब्द व्याकरण-सम्मत है। (३) डॉ० हरगोविन्द खुराना एक विज्ञानी थे। (४) उस विज्ञानी के तर्क के पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। (५) फ्रायड के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक हैं। (६) अपना उपचार किसी मनोविज्ञानी से कराओ।
५- ‘दूसरे प्रदेशों में’ का प्रयोग अनुपयुक्त है। इसके स्थान पर ‘दूसरे राज्यों’ में होगा। ऐसा इसलिए कि हमारे संविधान में ‘केन्द्र और राज्य-सरकार’ का प्रयोग है, न कि ‘प्रदेश-सरकार’ का, फिर उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु आदिक राज्य हैं, न कि प्रदेश।
६- भिन्न-भिन्न स्थानों से प्रतियोगियों ने भाग लिया।– यदि ये सभी प्रतियोगी एक ही दिन और एक ही समय पर भाग लेंगे तभी ‘भाग लिया’ का प्रयोग होगा, अन्यथा ‘भाग लिये’ होगा। ‘इस्तीफ़ा दिया’, ‘आवेदनपत्र भरा’, ‘परीक्षा दिया’ इत्यादिक के सन्दर्भ में भी यही नियम लागू होगा।
७- दुख शब्द अशुद्ध है, शुद्ध शब्द ‘दु:ख’, ‘दु:खद’, ‘दु:खी’। मूल शब्द ‘दु:ख’ है, जो ‘अच्’ प्रत्यय के योग से हमें प्राप्त होता है। ‘दु:’ उपसर्ग है, जो बुरा, कठिन आदिक के अर्थ में प्रयुक्त होता है
८- ‘छह’ अशुद्ध शब्द है। शुद्ध शब्द ‘छ:’ है। छ में (:) विसर्ग की ‘अहह’ की ध्वनि लेकर ‘छह’ बना दिया गया है, जो कि हास्यास्पद प्रयोग बन गया।
९- ‘सुख और दु:ख दोनों हमारे जीवन में हैं।’ यहाँ ‘दोनों’ का प्रयोग अशुद्ध है। ऐसा इसलिए कि जब हमें ‘सुख’ और ‘दु:ख’ ‘दो’ दिख ही रहे हैं तब ‘दोनों’ के प्रयोग का कोई औचित्य नहीं है, फिर व्यावसायिक दृष्टि से ‘एक शब्द’ कम भी हो जाता है।
१०- ‘जब’ के साथ ‘तब’; ‘यदि’ के साथ ‘तो’; ‘यद्यपि’ के साथ ‘तथापि’; ‘भले ही’/’हालाँकि’ के साथ ‘फिर भी’ का प्रयोग होगा।
११- ‘लेकिन’ के आगे अल्प विरामचिह्न (,) का प्रयोग नहीं होता; जैसे– उसे बहुत समझाया लेकिन, उसने मेरी बात नहीं मानी। इसके स्थान पर होगा– उसे बहुत समझाया, लेकिन उसने मेरी बात नहीं मानी।
१२- ‘उसने ख्याल नहीं किया।’ यहाँ ‘ख्याल’ के स्थान पर ‘ख़याल’ होगा; क्योंकि ‘ख्याल’ संगीत की एक पारिभाषिकी है।
१३- ‘रुखसत’ का प्रयोग अशुद्ध है; शुद्ध शब्द ‘रुख़्सत’ है, जो कि अरबी-भाषा का शब्द है।
आज इतना ही।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १० जून, २०२० ईसवी)