आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

'केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय' की ओर से मानकीकृत शब्दों पर प्रश्नचिह्न और घोर आपत्ति (?)

जो भी लोग :– साहित्यकार, लेखक, कवि, पत्रकार, अध्यापक-अध्यापिकाएँ, प्रकाशक, प्रूफ़-संशोधक आदिक ‘गया’ से ‘गये’, ‘दिया’ से ‘दिये’, ‘लिया’ से ‘लिए’, ‘बताया’, ‘दिलाया’, ‘हिलाया’, ‘रुलाया’ का क्रमश: बताए’, ‘दिलाए’, ‘हिलाए’, ‘रुलाये’; ‘हुए’ का ‘हुये’, ‘हूँ’ का ‘हूं’, ‘कविताएँ का ‘कविताएं’, ‘कवितायें’ आदिक का ‘मानकीकरण’ की दुहाई देते हुए प्रयोग करते आ रहे हैं, उन्हें एक भाषाविज्ञानी ललकारते हुए प्रश्न कर रहा है– किस नियम के अन्तर्गत उपर्युक्त मानकीकृत शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है? आश्चर्य तब होता है, जब पूर्णत: अशुद्ध उपर्युक्त शब्दों का उक्त कोटि के लोग शुद्ध उच्चारण करते आ रहे हैं; किन्तु लेखन-स्तर पर अशुद्ध लेखन करते दिख रहे हैं। ऐसे लोग की संख्या विस्फोटक स्थिति को प्राप्त करनेवाली है, जो ‘रंग’ और रँग’, ‘हंस’ और ‘हँस’, ‘यहाँ और यहां’ आदिक शब्दों को लिखना नहीं जानते; क्योंकि उन सभी के लिए ‘अनुस्वार’ और ‘अनुनासिक’ का कोई महत्त्व नहीं है।

उत्तर दीजिए– ‘गये’, ‘धमकाया’, ‘गिराया’, ‘उठाया में जब अन्तिम वर्ण ‘य्’ व्यंजन है तो किस शब्दानुशासन के अन्तर्गत ‘य्’ के स्थान पर ‘ए’ स्वर का प्रयोग किया जा रहा है?

ऐसे सभी लोग “भेड़िया धसान” की प्रवृत्ति का त्याग कर शुद्ध शब्दों को ही ग्रहण करने का स्वभाव बनायें, तभी हमारी ‘हिन्दी-भाषा’ के साथ न्याय हो पायेगा। ऐसी ही विद्रूपता की स्थिति में मानकीकरण के पक्षधरों में से ऐसा एक भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति नहीं है, जो सार्वजनिक रूप से ‘अंकन’, ‘चंचल’, ‘संसार’, ‘संन्यासी’, ‘इकतीस’, ‘बत्तीस’, ‘उनतीस’ आदिक सहस्रों शब्दों के शुद्ध उच्चारण कर सके। यह कथित निदेशालय की ओर से उन भाषाविज्ञानियों के अशुद्ध व्याकरण-बोध का दुष्परिणाम है, जिन्होंने नतमस्तक होकर हमारी भाषा-शुचिता के साथ बलप्रयोग कर अपने मस्तक पर ‘कलंक के अमिट टीके’ लगवा लिये हैं।

शैक्षिक जगत् में लगभग सभी हिन्दी और संस्कृत-अध्यापक अपने आयोजनों में ‘दो दिवसीय’, ‘डॉ.’, ‘प्रो.’, ‘आयोजित किये ‘जाएंगे’ आदिक अशुद्ध शब्दों के प्रयोग कर, अपने शैक्षिक योग्यता पर प्रश्नचिह्न तो खड़े कर ही रहे हैं, हमारे विद्यार्थीवृन्द को मिथ्या ज्ञान भी बाँट रहे हैं। यह प्रयोग तो इसी का उदाहरण है :– श्वान और बिल्ली, गदहा और शार्दूल, भैंस और स्वान रेगिस्तान में दूर्वा का सेवन कर रहे हैं। इस उदाहरण को मैं ‘दो दिवसीय’, ‘चार दिवसीय’ के समानान्तर प्रस्तुत करता हूँ।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २ जून, २०२१ ईसवी।)