डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला – विचार, चिन्तन-अनुचिन्तन, ध्यान, ख़याल, भाव, मनन, स्मरण

विचार :– यह संस्कृत-भाषा का पुल्लिंग-शब्द है। शब्द-भेद की दृष्टि से यह संज्ञा-शब्द है। विचार में ‘वि’ उपसर्ग लगा हुआ है। वि का अर्थ ‘विशिष्ट’ है। यह ‘चर्’ धातु का शब्द है, जिसका अर्थ ‘चलना’ है। इस चर् धातु में ‘घञ्’ प्रत्यय लगा हुआ है। विचार की परिभाषा है : जब किसी विषय के सम्बन्ध में मन-ही-मन तर्क-वितर्क करते हुए, मनुष्य सोचने-समझने की प्रक्रिया के साथ जुड़ता है तब वह स्थिति ‘विचार’ की होती है। इसी विचार से विचारक, विचारज्ञ, विचारवान, विचारण, विचारना, वैचारिक, वैचारिकी, विचारणीय, विचारित, विचारी, विचार्य, विचरण इत्यादिक शब्दों का सर्जन होता है।

चिन्तन-अनुचिन्तन : ‘चिन्तन’ संस्कृत-भाषा का संज्ञा, पुल्लिंग-शब्द है। यह ‘चिन्त्’ धातु का शब्द है। ‘चिन्त्’ का अर्थ ‘चिन्तन करना’ है। चिन्त् धातु से ‘चिन्तन’ की उत्पत्ति करने के लिए दो प्रत्यय लगे हुए हैं : णिच्’ और ‘ल्युट्’। इनके लगते ही ‘अन’ का सर्जन होता है। इस प्रकार ‘चिन्त्’ और ‘अन’ मिलकर ‘चिन्तन’ की व्युत्पत्ति करते हैं। चिन्तन की परिभाषा है :– जब किसी विषय पर सोचने-समझने के लिए मन-ही-मन बार-बार विवेचन किया जाता है तब वह ‘चिन्तन’ कहलाता है। इसे इस तरह से समझें :– जब किसी वस्तु अथवा विषय का स्वरूप जानने अथवा समझने के लिए रह-रहकर उसका ध्यान अथवा स्मरण किया जाता है तब वह ‘चिन्तन’ कहलाता है। इस ‘चिन्त्’ धातु से कई शब्दों का सर्जन होता है; उदाहरण के लिए :– चिन्त, चिन्तक, चिन्तना, चिन्तनीय, चिन्ता, चिन्तित, चिन्त्य इत्यादिक।

अनुचिन्तन :– ‘अनुचिन्तन’ संस्कृत-भाषा का संज्ञा, पुल्लिंग-शब्द है। यह भी ‘चिन्त्’ धातु का शब्द है। इस धातु से पूर्व ‘अनु’ उपसर्ग लगा हुआ है, जिसका यहाँ अर्थ ‘कई बार’ अथवा ‘बार-बार’ है। इस ‘चिन्त्’ धातु में ‘णिच्’ और ‘ल्युट्’ प्रत्यय के लगते ही ‘अन’ का सर्जन होता है, जिससे ‘चिन्तन’ की उत्पत्ति होती है और चिन्तन से पूर्व ‘अनु’ उपसर्ग लगते ही ‘अनुचिन्तन’ का प्रकटीकरण होता है। इसप्रकार हमने देखा कि उपसर्ग और प्रत्यय के संयोग से ‘अनुचिन्तन’ की उत्पत्ति होती है | विस्मृत बात अथवा विषय अथवा क्रिया का पुनर्स्मरण करना ‘अनुचिन्तन’ कहलाता है।
ध्यान :— ‘ध्यान’ संस्कृत-भाषा का संज्ञा, पुल्लिंग-शब्द है। यह ‘ध्यै’ धातु का शब्द है, जिसका अर्थ ‘ध्यान करना’ है। इस धातु में ‘ल्युट्’ प्रत्यय लगा हुआ है, जिससे ‘अन’ की प्राप्ति होती है। इस प्रकार ‘ध्यान’ शब्द का आविर्भाव होता है। ध्यान की परिभाषा है :– मन की वह स्थिति, जिसमें मनुष्य किसी विषय के सम्बन्ध में चिन्तन, मनन अथवा विचार करने की स्थिति में आता है, ‘ध्यान’ कहलाता है। इसे इस तरह से समझें :– मन जब किसी विशिष्ट कार्य की ओर लगता है तब वह ‘ध्यान’ कहलाता है। इस धातु से ध्यात, ध्यानस्थ, ध्याना, ध्यानिक, ध्यानी, ध्येय इत्यादिक शब्द-सर्जन होते हैं।

ख़याल :– ‘ख़याल’ अरबी-भाषा का पुल्लिंग-शब्द है। इसे हिन्दी में ‘ध्यान’ कहा जाता है | ‘ख्याल’ अथवा ‘ख़्याल’ अशुद्ध शब्द है। मुहम्मद रफ़ी साहिब (‘साहब’, ‘साहेब’ अशुद्ध शब्द हैं।)-द्वारा गायी गयी एक ग़ज़ल बहुत मशहूर हुआ है, ” उनके ख़याल आये तो आते चले गये।” इस ख़याल शब्द से ख़यालात, ख़याली इत्यादिक हैं।

भाव :– ‘भाव’ संस्कृत-भाषा का संज्ञा, पुल्लिंग-शब्द है। यह ‘भू’ (होना) धातु का शब्द है। इस धातु में दो प्रत्यय लगे हुए हैं, जो हैं : ‘णिच्’ और ‘अच्’। भाव की परिभाषा है :– किसी वस्तु के अस्तित्व में आने, रहने अथवा होने की अवस्था ‘भाव’ है। काव्य में भाव को ‘रस’ की संज्ञा दी गयी है। सूरदास कहते हैं, ”स्याम को भाव दै गई राधा।” इस ‘भू’ धातु से भव, भवक, भवत्, भवती, भावता, भावक, भावता, भावना, भावनीय इत्यादिक का सर्जन होता है।

मनन :– ‘मनन’ संस्कृत-भाषा का संज्ञा, पुल्लिंग-शब्द है। यह ‘मन्’ धातु का शब्द है, जिसका अर्थ ‘मानना’ है। इस धातु में ‘ल्युट्’ प्रत्यय जुड़कर ‘अन’ की उत्पत्ति करता है। इस प्रकार ‘मनन’ शब्द उत्पन्न होता है। मनन की परिभाषा है :– जब किसी विषय के सर्वांग पक्षों पर विचार करते हुए, उसे समझने का प्रयास किया जाता है तब वह ‘मनन’ कहलाता है। दूसरे शब्दों में :– जब तत्परता के साथ किसी कार्य के विषय में सोचा-समझा जाता है तब वह ‘मनन’ का रूप ले लेता है।

स्मरण :– ‘स्मरण’ संस्कृत-भाषा का संज्ञा, पुल्लिंग-शब्द है। स्मरण की परिभाषा है :– जब मनुष्य किसी देखी-सुनी अथवा अनुभव की हुई बात को पुनः अपने स्मृति-पटल अथवा मानस-पटल पर लाता है तब वह ‘स्मरण’ कहलाता है। दूसरे शब्दों में :– किसी बात, विषय, घटना अथवा किसी क्रिया को पुनः अपनी स्मृति में लाने की की स्थिति ‘स्मरण’ है।


(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; १६ मार्च, २०१८ ईसवी)
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