
● आपने २३ अक्तूबर की विलम्ब रात्रि मे ‘दीपावली-दीवाली’, ‘दीया-दिया’ तथा ‘प्रज्वलन’ शब्दप्रयोग की जानकारी अर्जित की थी।
आज आप (२४ अक्तूबर) ‘वर्तिका’ (बाती) और ‘तैल-घृत’ शब्दों को समझें।
शुद्ध और उपयुक्त शब्द :–
वर्तिका और तैल-घृत
★ वर्तिका– यह संस्कृत-भाषा से उत्पन्न शब्द है और शब्द-भेद की दृष्टि से विकारी ‘संज्ञा-शब्द’। लिंग-प्रकारानुसार यह ‘स्त्रीलिंग’ का शब्द है। ‘वर्तिका’ (बत्ती से युक्त) की रचना को समझने के लिए पहले ‘वर्तिक’ को समझें। ‘वर्तिक’ ‘वृत्त्’ धातु का शब्द है, जिसका अर्थ है, ‘वर्तमान रहना’। ‘बटेर’ का तत्सम शब्द भी ‘वर्तिक’ कहलाता है। इसी ‘वर्तिक’ मे जैसे ही ‘टाप्’ प्रत्यय का योग होता है वैसे ही ‘वर्तिका’ शब्द का सर्जन (‘सृजन’ शब्द अशुद्ध है।) (रचना) होता है। बत्ती को ‘वर्तिका’ कहते हैं, जो कि ‘बत्ती’ का तत्सम शब्द भी है।
★ तैल-घृत– हम जिसे ‘तेल’ कहते हैं, वह शुद्ध शब्द ‘तैल’ का विकृत रूप है और तद्भव भी। ‘तैल’ शब्द संस्कृत-भाषा का है। शब्द-भेद के विचार से यह ‘संज्ञा’ का शब्द है और लिंगानुसार ‘पुंल्लिंग’ कहलाता है। जब ‘तिल’ शब्द मे ‘अञ्’ प्रत्यय जुड़ता है तब ‘तैल’ की उत्पत्ति होती है। ‘तैल’ का अर्थ है, ‘तिल से सम्बन्धित’। वास्तव मे, तैल/तेल वही है, जो तिल के दानो को पेरकर निकाला जाये। ‘तिल’ का माहात्म्य (‘महात्म, महात्म्य’ अशुद्ध हैं।) दान, तर्पण, होमादिक करने का है।
अब ‘घृत’ को समझें। यह ‘घृ’ धातु का शब्द है, जिसका अर्थ ‘सींचना’ है। इसी धातु मे ‘क्त्’ प्रत्यय के योग से ‘घृत’ की रचना होती है, जो कि ‘घी’ का तत्सम शब्द है। ‘घृत’ संस्कृत-भाषा का शब्द है, जो कि ‘संज्ञा’ का ‘स्त्रीलिंग’ है।
महाकवि वृन्द कहते हैं, “सीधी अँगुरी घी जम्यो क्योंहूँ निकसति नाहिं।”
प्राकृत मे इसे ‘घीअ’ और भोजपुरी मे ‘घीव’/’घीउ’ कहते हैं। यह एक प्रकार का खाद्य पदार्थ है, जिसे मक्खन को तपाकर बनाया जाता है। यह वर्तिका (बाती)-प्रज्वलन (‘प्रज्जवलन’ अशुद्ध है।) करने के लिए भी उपयोगी है। इसका एक भिन्न अर्थ ‘पानी’ भी है।
★ ‘आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला’ नामक प्रकाशनाधीन पुस्तक से साभार)
सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २४ अक्तूबर, २०२२ ईसवी।)