आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

अशुद्ध और अनुपयुक्तशब्द-प्रयोग से बचें

अशुद्ध और अनुपयुक्तशब्द-प्रयोग–
शुभ कामना, शुभकामनाएं, शुभकामनाएँ, शुभ कामनाएँ, हार्दिक शुभकामना, हार्दिक शुभ कामना, हार्दिक शुभकामनाएं तथा हार्दिक शुभकामनाएँ।
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ऊपर अशुद्ध और अनुपयुक्त शब्दप्रयोग के अन्तर्गत जितने भी शब्द दिख रहे हैं, वे सभी-के-सभी [यहाँ दो शब्दों के मध्य ‘योजकचिह्न’ का प्रयोग इसलिए है कि तीनो शब्द एक-दूसरे के साथ (यहाँ ‘साथ’ के स्थान पर ‘से’ का प्रयोग अशुद्ध है।) जुड़े हुए हैं।] शब्द पढ़े-लिखे लोग (‘लोगों’ अशुद्ध है; क्योंकि बहुवचन के शब्दों का पुन: ‘बहुवचन’ नहीं बनाया जाता।) बेहिचक प्रयोग करते आ रहे हैं। इनमें दो शब्द प्रयोग किये गये हैं :– पहला, शुभ कामना। इसके दोनो शब्द सार्थक हैं, जिनका पृथक्-पृथक् अर्थ है :– मङ्गल/मंगल/कल्याण और इच्छा/चाह। इसके अतिरिक्त इन शब्दों का कोई समन्वित/सम्मिलित/मिला हुआ अर्थ नहीं है। एक अन्य शब्द ‘शुभकामनाएं’ भी अशुद्ध है; क्योंकि ‘कामना’/’इच्छा’/’चाह’ एक प्रकार का भाव है और भाव का कभी अलग से बहुवचन मे परिवर्त्तन नहीं होता। ‘शुभ’ के साथ जुड़ा शब्द ‘कामनाएं’ है और कामनाएँ’ भी। वहीं ‘शुभ’ और ‘कामनाएँ’ अलग-दिख रहे हैं। इस तरह एक ही शब्द में अनेक प्रकार की अशुद्धियों के प्रयोग हैं। पहली बात, शुद्ध शब्द ‘शुभकामना’/ ‘शुभ-कामना’ है, न कि ‘शुभकामनाएं’, ‘शुभकामनाएँ’।’ ‘शुभकामना’ एक प्रकार के समास का उदाहरण है, जिसका विग्रह करते हुए, ‘शुभ-कामना’ लिखा जायेगा, जिसका अर्थ है, ‘शुभ/मंगल/कल्याण की कामना’। यहाँ इसका अर्थ ‘कल्याण के लिए कामना’ नहीं होगा। शुभकामना वा (अथवा) शुभ-कामना ‘षष्ठी तत्पुरुष’ समास का उदाहरण है और ‘सम्बन्धबोधक कारक’ का भी।

आप उपर्युक्त (‘उपरोक्त’ शब्द अशुद्ध है; क्योंकि आप इसका अर्थसहित विभाजन नहीं कर सकते, जबकि ‘उपरि+उक्त = उपर्युक्त विच्छेद और सन्धि’ के रूप मे शुद्ध शब्द ‘उपर्युक्त’ शब्द का बोध करते हैं।) शब्दप्रयोग/शब्द-प्रयोग/शब्द के प्रयोग मे से कुछ पल के लिए ‘शुभ’ शब्द को हटा लें। अब आप कहें– ‘मेरी कामनाएँ/ इच्छाएँ/अभिलाषाएँ हैं’। आपको ये शब्द-प्रयोग अटपटे लगेंगे। एक अन्य शब्द ‘प्रार्थना’ का एक वाक्य मे प्रयोग करते हुए आप कहें– ‘मेरी ‘प्रार्थनाएँ’ आप सभी के उत्तम स्वास्थ्य के लिए हैं।’ इन्हें देखते ही आप तुरन्त कह देंगे कि ये दोनो (‘दोनों’ अशुद्ध है; क्योंकि किसी पंचमाक्षर पर अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता; प्रत्येक पंचमाक्षर ‘अनुस्वारयुक्त होता है।) ही शब्द-प्रयोग अशुद्ध हैं।

जो लोग ‘शुभकामनाएँ’ और ‘शुभ कामनाएँ’ का प्रयोग करते हैं, वे ‘आशीर्वादें’, ‘प्रसन्नताएँ’, ‘वेदनाएँ’ आदिक के प्रयोग करने से कतराते क्यों हैं? इस प्रश्न का उत्तर ही ‘अशुद्धि का कारण’ प्रकट करता है।

आप यदि ‘हार्दिक शुभकामना’/’शुभ-कामना’ का सेवन/व्यवहार करते हैं तो आपका यह प्रयोग अशुद्ध माना जायेगा; क्योंकि ‘शुभ की अवधारणा’ हृदयगत ही होती है; वह हृदयपक्ष का ही विषय होता है। इसी से मिलता-जुलता एक अन्य उदाहरण है। जैसे ही आप लिखेंगे– ‘सविनय निवेदन है कि……’ वैसे ही आपका लेखन अशुद्ध और अनुपयुक्त माना जायेगा; क्योंकि ‘निवेदन’ शब्द मे ही ‘विनयशीलता’/’विनम्रता’ निहित है, इसलिए पृथक् से ‘सविनय’ का प्रयोग सर्वथा अनुचित और अनुपयुक्त है। क्या आप लाठी-डण्डा के साथ निवेदन करते हैं?

‘आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला’ नामक प्रकाशनाधीन कृति से साभार गृहीत। (ग्रहण किया गया/लिया गया।)

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २७ अक्तूबर, २०२२ ईसवी।)