सीएम साहब हमारी शादी नही हो रही, गांव का विकास करा दो प्लीज

मनोज तिवारी-


-परेशान युवाओं ने योगी आदित्यनाथ को किया ट्वीट
-कलेक्ट्रेट पहुंच ग्रामीणों ने जमकर किया हंगामा
-ग्रामीणों ने कहा जब यक विकास नही वोट नही
-मूलभूत सुविधाओं से वंचित गांव में लड़कों के साथ लड़कियों की भी नही उठती डोली


                परेशानी कोई एक हो तो बताएं। सड़क नहीं खेती के लिए पानी नहीं और बिजली के लिए तो गांव तरसता ही रह गया। दिल तब कचोटता है जब बिजली न होने से कई मौक़े पर शादी-ब्याह के रिश्ते टूट जाते है बेटी की शादी हो भी गई तो दामाद आना नहीं चाहते और बेटों की शादी के लिए जल्दी कोई लड़की नहीं देना चाहता और करीब 2 साल से गांव में डोली नही उठी है।एक बार में यह सब बोलकर एक युवक खामोश हो जाता हैं।यह कहानी है टोडरपुर विकास खण्ड की ग्राम सभा काजीबाड़ी की।आखिर अधिकारियों ,नेताओं के झूठे वादों से परेशान होकर गांव के एक युवक रियाज ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ट्वीटर पर टैग करके लिखा है कि हमारी शादी नही हो रही आप विकास करा दीजिये शादी हो जाये।इसके साथ ही ग्रामीण कलेक्ट्रेट पहुंचे और नारेबाजी करते हुए विकास कार्य कराए जाने की मांग की।हालांकि सीडीओ ने मामले की जांच कराए जाने के आदेश बीडीओ टोडरपुर को दिए है।
         टोडरपुर विकास खण्ड की ग्राम सभा काजीबाड़ी ग्राम सभा मे जब हम उबड़-खाबड़, पथरीले रास्तों से होकर गांव पहुंचे, तो हमारी मुलाक़ात कई युवाओं से हुई जिनका दर्द था कि करीब दो हजार से अधिक आबादी वाले इस गांव में रोज़ी-रोज़गार का संकट है और बड़ी परेशानी का सबब है बिजली सड़कें।गांव के किसी घर में टीवी नहीं है।सांझ ढलते ही पूरा गांव वीरान हो जाता है चिंता इसकी है कि बच्चों का भविष्य चौपट हो रहा है।यहां लोग सवाल भी पूछते हैं वे जानना चाहते हैं कि सरकार और उनके मुलाजिम दंभ भरते हैं कि राज्य में विकास का पहिया तेज़ी से घूम रहा है, तो वह पहिया उनके गांव क्यों नहीं पहुंचा।
             बिजली न होने से क्या शादी के रिश्ते भी टूट जाते हैं, इस सवाल पर रियाज अपने एक मित्र के बारे में बताने लगे जिनकी शादी की सारी बात पक्की हो गई थी लड़की के भाई जब गांव आए, तो बिजली और गांव की तालाब बनी सड़क का हाल देखकर रिश्ते से मना कर दिया।महिलाएं भी कहती हैं कि ढिबरी युग में जीना ही हमारा नसीब है, बिजली के बिना हम मानों जंगली ही रह गए।
          जब भी विकास की बात होती है तो गांव और शहर दोनों के विकास के दावे किए जाते हैं। पर हकीकत यह है कि विकास की दौड़ में गांव हमेशा पीछे ही रह जाते हैं और शहरों में सुविधाओं का जाल बिछ जाता है। गांव अपनी धीमी गति के साथ ऊंघ रहे होते हैं। चारों तरफ सन्नाटा-सा पसरा रहता है। शहरों में विकास की गतिविधियां चलती हैं, तो गांव धीरे-धीरे अपना पारंपरिक स्वरूप खोने लगते हैं।आजादी के बाद विकास की जो संकल्पना की गई थी, उसमें रोजगार के अवसरों के विकेंद्रीकरण का विचार प्रमुख था। उद्योग-धंधे केवल महानगरों तक सीमित न हों। उन्हें दूर-दराज के इलाकों में स्थापित किया जाए, ताकि उन इलाकों तक अच्छी सड़कें पहुंच सकें, शिक्षा की अच्छी सुविधा उपलब्ध हो सके, स्थानीय लोगों को रोजगार के लिए दूर-दूर शहरों में न भागना पड़े। मगर यह विचार पल्लवित नहीं हो सका।ग्राम पंचायतों को देश की रीढ़ माना जाता है और देश के विकास का रास्ता भी गांव की गलियों से होकर ही गुजरता है। अगर देश को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाना है तो सबसे पहले गांवों का विकास जरूरी है और गांवों का विकास ग्राम पंचायतों की जागरूकता के बिना संभव नहीं है।लेकिन गांव की तस्वीरें बताती है कि सिर्फ कागजों पर गांवों का मौसम गुलाबी है।ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट में भी अपनी हक की गुहार लगाई है।हालांकि सीडीओ आनंद कुमार का कहना है कि वह मामले की जांच कराएंगे औऱ विकास की योजनाओं से गांव को संतृप्त कराया जाएगा।