डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-
सुधा मिश्र द्विवेदी- पिछले दस साल बहुत अच्छे थे क्या ?
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- वर्तमान को देखिए। आप वर्तमान से सन्तुष्ट हैं ?
सुधा मिश्र द्विवेदी- जी पहले से बेहतर प्रतीत कर रही हूं, सुधार होगा तो कदम कडे होंगे ही ।
दिनेश शुक्ल- डॉक्टर साहब माफ कीजिएगा सरकार के हर काम का विरोध करने वाला सामाजिक चिंतक या एक अच्छा आलोचक नहीं हो सकता है। एक अच्छे आलोचक का काम गलत नीतियों की आलोचना करना है। आपके विचारों में केवल सरकार विरोधी शब्द होते हैं।
कही न कहीं निराशावादी लेखक की झलक दिख जाती है। भारत की आम जनता तो पिछले 70 सालों से झेल रही है इसमें नया क्या है।
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- दिनेश शुक्ल जी! बेहतर होता, आप विषय-केद्रित टिप्पणी करते। आपसे भी प्रश्न किया जा सकता है— सत्ता के प्रति आपकी यह अन्ध भक्ति किसलिए? निन्दा उसी की नीतियों की होती है, जो नीति-प्रतिपादन से च्युत रहता है और जिसके कथन-कर्म में अप्रत्याशित अन्तराल दिखता है। अब रहा विषय मेरे सामाजिक चिन्तन और आलोचना की आप-द्वारा समीक्षा करने की तो उसके लिए आपकी दृष्टि में वस्तुपरकता, निष्पक्षता, परिपक्वता तथा अनुभवसम्पन्नता चाहिए, जो पूर्णत: अन्तर्हित है। जब दर्पण सत्य को सामने लाता है तब उन सत्य में से अधिकतर ‘कटु सत्य’ होते हैं, जिन्हें असत्यवाहक लोग ‘निराशावाद’, ‘नकारात्मक सोच’, ‘कुण्ठा’ आदिक समझने की भूल करते हैं।
दिनेश शुक्ल- डॉक्टर साहब राहुल गांधी तो कह रहे हैं कि मोदी जी सत्ता छोंड़ दे तो हम सब कुछ छः महीने में ठीक कर देंगे आपकी क्या राय है। हालांकि अभी हाल ही में अमेरिका दौर से वापस आए हैं मुझे लगता है जरूर कोई जादू की छड़ी हाँथ लग गई है।
सत्यम गुप्त युवा- पहली बार नहीं है ऐसा हम वर्षो से करते आ रहे है।
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय– तो क्या अब यह परम्परा बन गयी है?
अवनीश यादव- कहना अतिशयोक्ति न होगा यह प्रायश्चित्त तन मन की मलिनता दूर करने की एक लम्बी और मुकम्मल खुराक रहेगी , शायद की यह रोग दुबारा पकडे हम अपनी साफ सफाई कर पास आने न देंगे ।
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- बेशक, देश बदल रहा है। देश की आर्थिक नीति पूर्णत: असफल है; देश का सामाजिक ढाँचा चरमराने की स्थिति में है; समुचित नियोजन के अभाव में देश का युवक दिशाहीन हो रहा है; और भी बहुत कुछ।
दिनेश शुक्ल- डॉक्टर साहब देश की आर्थिक नीति पूर्णतः असफल है, आपके इस वाक्य से मैं सहमत हूँ। बाकी वाक्य से असहमत हूँ। क्योंकि मुझे नहीं लगता कि सामाजिक ढाँचे में कोई बडी प्रलय आ गई है। ये सब वामपंथी दलों और विरोधियों का बनाया हुआ प्रोपेगैंडा है।
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- आर्थिक स्थिति जब चरमराने लगती है तब सामाजिक व्यवस्था भी डगमगाने लगती है। ऐसे में नियोजन की सम्भावनाओं पर धूलि पड़ जाती है; फिर रह क्या जाता है? आज देश का निम्न और मध्य-वर्ग आर्थिक दुश्चक्र में फँस चुका है।
दिनेश शुक्ल- मुझे लगता है सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत और भी बहुत कुछ आता है इस तरह से पूरी सामाजिक व्यवस्था चरमराने की बात अनुचित है। हाँ ये सच है कि मोदी सरकार के सबसे असफल नेता अरुण जेटली साबित हुए हैं । जो मोदी सरकार के पतन के लिए काफी है।