हमें ‘राजनीतिक’ आरक्षण नहीं, ‘वास्तविक’ आरक्षण चाहिए

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


वर्तमान सरकार बहुत ही ढीठ और ख़ुदगर्ज़ है। सत्ता की राजनीति के अलावा अब तक जनहित में कुछ नहीं कर पायी है। उसे मालूम है कि अब तक जिनको आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है, वे खाये-पिये-अघाये हैं और उनकी चमड़ी इतनी मोटी हो गयी है कि खुले आम गुण्डागर्दी करने पर उतारू हैं। इतना ही नहीं, उनकी भाषा भी उनके जातीय संस्कार के अनुरूप ‘दलित’ हो चुकी है।
आश्चर्य इस बात का है कि उन दलितों की मानवीय संवेदना कहाँ गयी? हम तो मात्र इतना चाहते हैं कि व्यक्ति किसी भी जाति-धर्म का हो, यदि समाज में वह सम्मानपूर्वक जीने में समर्थ नहीं है तो आरक्षण का लाभ उसे ही दिया जाये, न कि मात्र राजनीतिक जातीय शब्दावली ‘दलित’ का पोषण किया जाये।
सबसे पहले देश से ‘दलित’ शब्द को सिपुर्दे ख़ाक किया जाये और उसके कायाकल्प के रूप में ‘सर्वहारा-वर्ग’ शब्द की प्रतिष्ठा की जाये, जो समस्त जातियों-धर्मों के उन भारतीय नागरिकों पर लागू हो, जो आर्थिक रूप में अत्यन्त दुर्बल हैं और येन-केन-प्रकारेण अपना जीविकोपार्जन कर पा रहे हैं।
समाज का एक विद्यार्थी ५०० अंक पाता है और दूसरा मात्र १०० अंक। पाँचगुणा अधिक अंक पानेवाले विद्यार्थी के लिए प्रवेशद्वार बन्द हो जाता है और पाँचगुणा अंक कम पानेवाले के लिए स्वत: खुला रहता है।
देश के सारे ग़द्दार नेताओ! इतना अधिक अन्याय योग्यता और प्रतिभा के साथ हो रहा है और तुम सबके-सब ख़ामोश बैठे हो!..? धिक्कार है, तुम सबको।

इसके बाद भी देश की सरकार में बैठे हुए ठीकेदार, पहरेदार, चौकीदार, जनसेवक, प्रधान जनसेवक नहीं मानते हैं; अपनी राजनीति चमकाने के लिए हमारे राष्ट्रवाद को आग में झोंकना चाहते हैं तो हम सबको चाहिए, इन काले अँगरेजों की कालर पकड़कर सत्ता-सिंहासन से उतार फेंके, क्योंकि ये सबके-सब सत्तामद में चूर दिख रहे हैं; इन्हें मात्र सत्ता प्यारी है, किन्तु हमारी राष्ट्रीयता हमारे लिए जान से भी बढ़कर है।

नहीं भूलना चाहिए कि क्रान्ति सदैव ‘अभाव’ की कोख से जन्म लेती आ रही है; अब उस अभाव की संवेदना चरम पर पहुँचकर छटपटा रही है; आन्दोलित और उद्वेलित हो रही है। ऐसे में, जाति-धर्म के कुत्सित-कुण्ठित राग को छोड़कर हम “सर्वे भवन्तु सुखिन:” नामक सर्वलोककल्याणार्थ अपनी वैचारिक और बौद्धिक ऊर्जा और शक्ति के साथ उस वर्ग को जोड़ें, जो राष्ट्रीयता की रक्षा करते हुए, “सर्व मंगलमांगल्ये”, अर्थात् सभी की प्रगति में अपनी प्रगति देख रहा हो, की कामना के साथ जन-जन का प्रतिनिधित्व करते हुए, राजनीतिक आरक्षण को ध्वस्त करने हेतु कृत-संकल्प है।

आइए! हम अपनी सात्त्विक और राजसी आन्दोलन से तामसिक वृत्तिवाले एकाक्षियों (काने लोग) की सत्ता उखाड़ फेंकने के लिए संघटित हों।