विद्यार्थियों के लिए घातक दिखता अध्यापकों का एक वर्ग– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ
“आज देश में सामान्य स्तर से विशेष स्तर तक के लिए जो भी परीक्षाएँ आयोजित की जा रही हैं, उनमें भाषा और व्याकरण की इतनी अधिक अशुद्धियाँ दिखती हैं कि प्रश्नों के चयन कर उन्हें प्रश्नपत्रों का रूप देनेवाले अध्यापकों की शैक्षिक योग्यता पर सहज ही एक साथ अनेक प्रश्नचिह्न लग जाते हैं। अध्यापकों के एक विशेष वर्ग-द्वारा किये जा रहे कुकृत्य हमारे विद्यार्थियों के भविष्य के लिए ‘घातक’ सिद्ध हो रहे हैं। प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं की दृष्टि से यह विषय अत्यन्त शोचनीय है। दशकों से संघ लोक सेवा आयोग से लेकर एक लिपिकस्तर तक की परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों, विशेषत: हिन्दीप्रश्नपत्रों में किये गये प्रश्नों, उनके उत्तर-विकल्प तथा सम्बन्धित संस्थानों-द्वारा सार्वजनिक की गयी उत्तरमाला में अशुद्धियाँ-ही-अशुद्धियाँ देखने में आ रही हैं। इतना ही नहीं, लगातार उन पर प्रहार करने के बाद भी सम्बन्धित परीक्षा-संस्थानों की आँखें बन्द-की-बन्द दिख रही हैं। इसके लिए शासन की ओर से कहीं कोई जागरूकता नहीं दिखती।”
मुख्य वक्ता के रूप में भाषाविज्ञानी और समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने आज (४ सितम्बर) ‘राष्ट्रीय शिक्षक-दिवस’ की पूर्व-संध्या पर ‘इण्टरनेशनल एजुकेशनल फोरम’, अहमदाबाद (गुजरात) की ओर से आयोजित एक आन-लाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी में उपर्युक्त विचार प्रकट किये थे।
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने ‘शोध’ की दिशा में दशकों से दिखती गिरावट के प्रति चिन्ता व्यक्त करते हुए बताया, “हमारे विद्यार्थी-वर्ग को यही नहीं मालूम कि उच्च शिक्षास्तर पर अध्यापन के लिए शोधकर्म क्यों अनिवार्य है? ऐसा इसलिए कि शोधनिर्देशक और शोधपरीक्षक ‘शोधकर्म’ के प्रति कर्त्तव्यरहित दिखते हैं। रुपये ले-देकर भी शोधकर्म किये-कराये जा रहे हैं। अब प्रश्न है, ऐसे अपरिपक्व लोग जब किसी महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में जायेंगे तो क्या पढ़ायेंगे? कोई प्रधानाचार्य का चाटुकार बना हुआ है तो कोई कुलपति का; और ये सभी अध्यापक विद्यार्थियों के भविष्य के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं। क्या यही अध्यापक-कर्म है?”