‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज का आन्तर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद


आचार्य पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी-आलोचना के प्रथम प्रणेता थे ।

बौद्धिक, शैक्षिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक मंच ‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज के तत्त्वावधान में द्विवेदी-युग के प्रवर्तक आचार्य पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी की निधनतिथि २१ दिसम्बर के अवसर पर ‘आचार्य पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी की हिन्दी-साधना का वर्तमान परिदृश्य’ विषयक एक आन्तर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन प्रयागराज में हुआ।

डॉ० रामनरेश त्रिपाठी

‘भारतीय विद्याभवन’, प्रयागराज के निदेशक डॉ० रामनरेश त्रिपाठी ने बताया, “प्रयाग से प्रकाशित सरस्वती पत्रिका संपूर्ण हिंदी-जगत् के लिए एक अनूठा उदाहरण था, जिसमें उन्होंने शब्दानुशासन को अपनाकर हिंदी-जगत् के लिए एक आदर्श उपस्थित किया था। यदि बाद के साहित्यकारों, लेखकों, चिंतकों ने उसके प्रति अपनी सजगता प्रदर्शित की रहती तो आज हिंदी लोक-कल्याण की भाषा बनकर जन-जन को आलोकित करती रहती।”

डॉ० विभुराम मिश्र

पूर्व-प्राध्यापक और चिन्तक डॉ० विभुराम मिश्र ने कहा, “आचार्य द्विवेदी ने हिन्दी-भाषा का मानक रूप स्थिर किया था। उन्होंने हिन्दी, आधुनिक विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र तथा अन्य विषयों पर महत्त्व की कृतियों का प्रणयन कर यह सिद्ध कर दिया था कि हिन्दी-वाङ् मय केवल ललित साहित्य नहीं है।”

डॉ० नीलम जैन

पूर्व-प्राध्यापक और विचारक डॉ० नीलम जैन (पुणे) ने कहा, ” आचार्य द्विवेदी वैज्ञानिक चेतना के प्रबल पक्षधर थे और शब्दसंधान-स्तर पर आचरण को अर्थ देकर शब्दों को जीवन्त करने में सिद्धहस्त थे। उन्होंने एक कुशल सम्पादक, साहित्यकार, आलोचक, निबन्धकार आदि की भूमिका का निर्वहण कर अपनी अपरिहार्यता सिद्ध की है।”

रमाशंकर श्रीवास्तव

वरिष्ठ पत्रकार-चिन्तक रमाशंकर श्रीवास्तव ने कहा, “जो कालिदास की साहित्य-रचना की निरंकुशता पर लेखन कर सके, उसका चिन्तन-फलक कितना विस्तीर्ण होगा, इसे सहज ही समझा जा सकता है। आचार्य द्विवेदी की शैलियों में आलोचना, गवेषणा, व्यंजना तथा समास की प्रमुखता रही है। यही कारण है कि वे सार्वकालिक शब्दानुशासक हैं।”

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

परिसंवाद-आयोजक भाषाविद्-समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, “आचार्य पं० द्विवेदी आलोचना के प्रथम प्रणेता थे। आलोचना के क्षेत्र में नीतिवादी थे और निर्णयात्मक आलोचना करते थे। आज जो हिन्दी में उपन्यास, नाटक, राजनीति, दर्शन, इतिहास विषयों पर अधिकाधिक लेखन हो रहा है, उसकी रुचि उन्होंने ही उत्पन्न की थी।”

प्रो० शिवप्रसाद शुक्ल

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी-विभाग में प्राध्यापक प्रो० शिवप्रसाद शुक्ल ने कहा, “आचार्य महावीर द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका को ऊँचाई प्रदान करते हुए, स्त्री, दलित-विमर्श को विविध आयाम दिये थे। सरस्वती पत्रिका के माध्यम से भाषा को प्रसंस्कृत करने हिन्दी-आलोचना को नई दिशा देने का श्रेय उन्हें जाता है।”

डॉ० प्रदीप चित्रांशी

साहित्यकार डॉ० प्रदीप चित्रांशी, प्रयागराज ने कहा, हिन्दी-साहित्य के युगद्रष्टा आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने अपने समय के हिन्दी- समाज की समस्याओं और संभावनाओं पर गहन शोध करते हुए, खड़ी बोली को पद्य और गद्य की भाषा बनाने के साथ-साथ हिन्दी को नई राह दिखायी थी।”

डॉ० कृपाशंकर पाण्डेय

मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर में हिन्दी के सहायक प्राध्यापक डॉ० कृपाशंकर पाण्डेय ने कहा, “आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने अपनी साहित्य-साधना के द्वारा हिन्दी को न केवल समृद्ध किया, अपितु उसके प्रचार-प्रसार में भी अतुलनीय योगदान किया था।”

राजश्री यादव ‘राज’

शिक्षिका-साहित्यकार राजश्री यादव ‘राज’ (आगरा) ने कहा, “आचार्य द्विवेदी ने भाषा के लिए जो मानक निर्धारित किये थे, उसकी खुली अवहेलना की जा रही है, जो कि चिन्तनीय है।”

आरती जायसवाल

साहित्यकार आरती जायसवाल (रायबरेली) ने कहा, आचार्य द्विवेदी जी हिन्दी के प्रति अपनी निष्ठा, अनुशासन, भाषा की शुद्धता एवं प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते रहे हैं। हिन्दी के नवीन स्वरूप और खड़ी बोली के जनक माने जाने वाले आचार्य द्विवेदी जी का अनुकरण एवं अनुसरण करने वाले विद्वान एक-दो ही हैं।”