वैचारिक प्रदूषण से बचने के लिए धैर्य और संयम को सन्मित्र बनाना चाहिए– निशा पाण्डेय

वैचारिक प्रदूषण : संकट और संत्रास' विषयक एक राष्ट्रीय आन्तर्जालिक बौद्धिक परिसंवाद का हुआ आयोजन

आज (४ जून) 'सर्जनपीठ', प्रयागराज के तत्त्वावधान मे 'विश्वपर्यावरण-दिवस' की पूर्व-संध्या मे 'वैचारिक प्रदूषण : संकट और संत्रास' विषयक एक राष्ट्रीय आन्तर्जालिक बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया, जिसमे देश के अनेक प्रबुद्धजन की प्रभावकारी सहभागिता रही। 
   
भोपाल (म० प्र०) से प्रकाशित 'अक्षरा' की सम्पादक जया केतकी ने निराकरणपरक मार्ग सुझाते हुए बताया, "अभी देर नहीँ हुई है। इस संवादहीनता को बढ़ने से रोकने के लिए यदि हम स्वयं नियन्त्रित होँगे तो इसे रोका जा सकता है। कम-से-कम शाम की आरती मे सभी एक साथ रहेँ। दोपहर का भोजन न सही, रात का भोजन सब एक साथ करेँ। प्रतिदिन न सही, छुट्टी के दिन सब एक साथ मिलकर कैरम, चंगे-अष्टे, ताश, लूडो इत्यादिक खेलेँ और अपनी युवा- पीढ़ी को संवादहीन होने से बचायेँ।"
 
प्रयागराज से शिक्षिका निशा पाण्डेय ने कहा, "आज वैचारिक प्रदूषण समस्त प्रदूषण मे सर्वाधिक घातक है, इसलिए संयम और धैर्य को सन्मित्र बनाकर चलना चाहिए; क्योँकि यही दोनो मानव-विवेक को सही दिशा मे ले जाते हैँ। पहला पक्ष उकसाता हो तो शालीन रहकर सुनना चाहिए, फिर एकान्त मे स्वयं से संवाद करना चाहिए। इससे द्वितीय पक्ष तनाव से बचा रहेगा और सकारात्मक दिशा मे उसका चिन्तन चलता रहेगा।"
 
आयोजक और भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया, "क्रोध उचित और अनुचित मार्गदर्शन करता है; क्योँकि कहीँ-कहीँ पर क्रोध और आक्रोश व्यक्ति को संकट और संत्रास से रक्षा करता है और कहीँ-कहीँ घातक सिद्ध होता है। इसके लिए शालीनतापूर्वक विवेक का आश्रय लेना चाहिए।''

बालामऊ, हरदोई से सहायक अध्यापक आदित्य त्रिपाठी ने कहा, "भगवान् श्रीकृष्ण का संदेश गीता के माध्यम से लोक मे सम्प्रेषित किया गया है, "न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।" इसलिए हम सात्त्विक ज्ञान और परिचर्चा के सहारे ही गिरते सामाजिक माहौल मे संवादहीनता से बच सकते हैँ, साथ ही हम अपने मन-मस्तिष्क को बुहार कर, उसमे जमे कचरे का उचित निराकरण कर, सामाजिक पर्यावरण स्वच्छ रख सकते हैँ। यह हम सबकी नैतिक ज़िम्मादारी भी है।''

अन्त मे, आयोजक ने समस्त श्रोता-दर्शकोँ और वैचारिक अतिथिवृन्द के प्रति अपना कृतज्ञता-ज्ञापन किया।